मल्टीमीडिया डेस्क। 24 सितंबर से श्राद्ध पक्ष शुरू हो रहे हैं। श्राद्ध का अर्थ है, अपने पितरों के प्रति श्रद्धा प्रगट करना। पुराणों के अनुसार, मृत्यु के बाद भी जीव की पवित्र आत्माएं किसी न किसी रूप में श्राद्ध पक्ष में अपनी परिजनों को आशीर्वाद देने के लिए धरती पर आते हैं। पितरों के परिजन उनका तर्पण कर उन्हें तृप्त करते हैं।
ऐसी मान्यता है कि आश्विन कृष्ण पक्ष के 15 दिनों में (प्रतिपदा से लेकर अमावस्या) तक यमराज पितरों को मुक्त कर देते हैं और समस्त पितर अपने-अपने हिस्से का ग्रास लेने के लिए अपने वंशजों के समीप आते हैं, जिससे उन्हें आत्मिक शांति प्राप्त होती है।
मान्यताओं के अनुसार, मरने के बाद पिंडदान करना आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति कराता है। पिंडदान करने का सबसे ज्यादा महत्व बिहार के गया का है। इसी जगह पर भगवान राम ने राजा दशरथ का पिंडदान किया था। हालांकि, इसके अलावा देश में कुछ अन्य जगहों पर भी पिंडदान किया जाता है।
पितृ पक्ष के दौरान यहां हजारों की संख्या में लोग अपने पितरों का पिण्डदान करते है। मान्यता है कि यदि इस स्थान पर पिण्डदान किया जाय, तो पितरों को स्वर्ग मिलता है। माना जाता है कि स्वयं विष्णु यहां पितृ देवता के रूप में मौजूद हैं, इसलिए इसे पितृ तीर्थ भी कहा जाता है।
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