Saturday, 24th May 2025

छत्तीसगढ़ में उत्पात से बचने व्रत रखकर मनाया गया हाथी त्योहार

Tue, Sep 18, 2018 7:17 PM

वेद राम पटेल, महासमुंद। छत्तीसगढ़ राज्य और यहां की संस्कृति में जल, जंगल, जमीन और वन्यजीवों के प्रति लगाव का अनूठा भाव देखने को मिलता है। यहां की आदिवासी संस्कृति में कई ऐसी मान्यताएं प्रचलित हैं जो हमें प्रकृति और जीव-जन्तुओं का सम्मान करने की सीख देती हैं। यहां के कई गांव ऐसे हैं जहां जंगली हाथियों का आतंक होता है। हर साल हाथी हजारों एकड़ फसल को रौंध देते है और कई ग्रामीणों को मौत के घाट भी उतार देते हैं।

प्रकृति और मनुष्य के इस संघर्ष में अपने आप को विनम्रता के साथ ढ़ालने की कला यहां के लोगों ने सीखी है और इसे अपनी संस्कृति का हिस्सा बनाया है। यहां के सीमावर्ती जिले महासमुंद के एक गांव में हर साल गणेश चतुर्थी पर्व के दौरान ग्रामीण हाथी तिहार मनाते हैं।

इस त्योहार में हरियाली देवी की पूजा की जाती है साथ ही विघ्नहर्ता गणेश से विनती की जाती है कि वे गजराजों को सही मार्ग दिखाएं, ताकि वे फसल को बिना नुकसान पहुंचाए गांवों से होते हुए जंगल की ओर चले जाएं।

बिरबिरा गांव में उत्सव का माहौल

महासमुंद जिले के ग्राम बिरबिरा में 17 सितंबर को ग्रामीणों ने'हाथी त्योहार" मनाया। छत्तीसगढ़ के अन्य पारंपरिक पर्वों की तरह ही 'हाथी त्योहार" को लेकर ग्रामीणों में अलग ही उत्साह देखने को मिला। उपवास रखकर नशापान से दूर रहने के साथ ही ग्रामीणों ने सामूहिक रूप से पूजा-अर्चना कर एकजुटता का परिचय दिया। गांव के सभी लोग सुबह से गजराज की पूजा-अर्चना की तैयारी में जुटे रहे। सभी घरों में खीर-पूड़ी का प्रसाद बनाया गया।

 

दोपहर दो बजे सभी ग्रामीण एकत्रित होकर नाली खार स्थित देवस्थल जराही-बराही के पास पहुंचे। यहां अच्छी फसल तथा हाथियों के आतंक से गांव के लोगों और फसल को बचाए रखने की कामना की गई। उपरांत लाल रंग के झंडे को खेत में गाड़ दिया गया। खास बात यह रही कि स्कूल-कॉलेज में पढ़ने वाले बच्चों और युवाओं को छोड़ अन्य कोई भी महिला या पुरुष गांव से बाहर काम करने के लिए नहीं गए।

द्वंद को जीतने के लिए आस्था का मार्ग

बिरबिरा खैरवार डेरा में 52 और बस्ती पारा में 25 मिलाकर कुल 77 मकान वाला गांव है। यहां की आबादी करीब 400 है। दो-तीन वर्षाें से हाथियों के आतंक से परेशान होने के बाद ग्रामीणों ने आस्था और श्रद्धा का मार्ग अपना लिया है और गजराज की पूजा-अर्चना कर फसल और गांव की खुशहाली की कामना करने में लग गए हैं।

 

यहां 'हाथी त्यौहार" का यह लगातार दूसरा वर्ष है। दरअसल, सिरपुर क्षेत्र के जंगल में हाथियों का दल स्वच्छंद विचरण कर फसल को नुकसान पहुंचा रहे हैं। हाथियों के हमले से जिले में अब तक नौ लोगों की जान जा चुकी है। वहीं दो अन्य लोग घायल भी हुए हैं।

ये जंगली हाथी लोगों के आवागमन और खेती-किसानी के कार्य सहित दैनिक कामकाज में बाधक बन रहे हैं। वन विभाग के मंत्री और अधिकारियों से जंगली हाथियों को खदेड़ने की मांग करते ग्रामीण थक चुके हैं। इसके बाद भी किसी तरह से ठोस कार्रवाई नहीं हुई है। विवश होकर ग्रामीण फसल को हाथियों से बचाने आस्था और श्रद्धा का मार्ग अपना लिए हैं।

 

इस तरह शुरू हुई यह परंपरा

 

 

गांव के बुजुर्ग गोवर्धन पाइक, मनोहर पटेल, गणेशराम पाइक, गोवर्धन पाइक, रामकुमार पाइक ने बताया कि कुछ दिन पहले गांव में बैठक आयोजित की गई। जिसमें गणेश पूजा पक्ष में 17 सितंबर को गांव में कामकाज बंद रखकर गजराज की विशेष पूजा-अर्चना करने का निर्णय लिया गया। इसे ग्रामीणों ने 'हाथी त्यौहार" का नाम दिया।

सर्वसम्मति से लिए गए निर्णय के अनुसार इस दिन गांव के सभी घर के एक-एक सदस्य उपवास रखकर खेतों में पहुंचे और फसल एवं लोगों को हाथियों के आतंक से बचाए रखने की कामना करने के बाद गणेश भगवान की विशेष पूजा-अर्चना की गई। इसके बाद देवस्थल से लाए गए झंडे को खेतों में गाड़ दिया गया। ग्रामीण मानते हैं कि जिस खेत में लाल झंडा गड़ा रहता है। वहां हाथी नुकसान नहीं पहुंचाते हंै।

 

और ऐसे बढ़ती गई श्रद्धा

 

ग्रामीणों ने बताया कि पिछले वर्ष भी गांव के सभी लोगों ने मिलकर 'हाथी त्यौहार" मनाया। हाथियों ने आस-पास के गांव में किसानों की फसल को जमकर नुकसान पहुंचाया था। जबकि बिरबिरा के खेतों में लगी फसल को किसी तरह से नुकसान नहीं पहुंचाया। इसी वजह से पिछले वर्ष की तुलना में इस वर्ष अधिक आस्था और श्रद्धा देखने को मिला। इस वर्ष भी अब तक गांव के खार में हाथी नहीं आये हैं। जबकि आसपास के गांव पिरदा, बंदोरा, छपोराडीह, लहंगर, मालीडीह में हाथियों ने उत्पात मचाते हुए किसानों को बहुत नुकसान पहुंचाया है।

नशे से रहते हैं दूर

 

हाथी त्यौहार के अवसर पर गांव में किसी भी व्यक्ति ने नशा पान नहीं किया। खेती आदि से संबंधित किसी तरह का कामकाज भी नहीं किया। सर्वसम्मति से निर्णय लिया गया था कि शराब पीने वाले व्यक्ति को सार्वजनिक रुप से दंडित किया जाएगा। इसी वजह से ग्रामीण जन नशा से दूर रहे। श्रद्धा और एकता से हाथी की समस्या से छुटकारा पाने ग्रामीण प्रयास कर रहे हैं।

हाथियों के खिलाफ बातें भी नहीं करते

 

ग्रामीणों ने यह भी बताया है कि गांव का कोई भी व्यक्ति हाथियों के संबंध में अनर्गल बातचीत, टीका-टिप्पणी नहीं करते हैं। और न ही हाथियों के लिए अपशब्द का प्रयोग करते हैं। ग्रामीण ऐसा मानते हैं कि जो व्यक्ति या गांव के लोग हाथी के खिलाफ किसी प्रकार से बुरा-भला कहते हैं, वहां हाथियों का दल कहर बरपाता है। इसे ग्रामीणों की मान्यता कहें अथवा अंध श्रद्धा पूरा गांव अब हाथियों के प्रति अगाध श्रद्धा भाव से पूजा करने में जुटा है।

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