हर साल 17 सितंबर को विश्वकर्मा जयंती मनाई जाती है। मान्यता है कि इसी दिन निर्माण के देवता विश्वकर्मा का जन्म हुआ था। विश्वकर्मा को देवशिल्पी यानी कि देवताओं के वास्तुकार के रूप में पूजा जाता है। पौराणिक काल में विशाल भवनों का निर्माण भगवान विश्वकर्मा करते थे। यह मंदिर देवी-देवताओं,राजा-महाराजाओं द्वारा बनवाए जाते थे। सोने की लंका के अलावा विश्वकर्मा जी ने ऐसे कई भवनों का निर्माण किया था जो उस समय वास्तु, स्थापत्य और सुंदरता में अद्वितीय माने जाते थे।
1 नहीं 5 थे विश्वकर्मा
हिन्दूधर्म ग्रथों के अनुसार विश्वकर्मा के पांच अवतार का उल्लेख मिलता है जो क्रमशः सृष्टि के रचयिता 'विराट विश्वकर्मा', महान शिल्प विज्ञान विधाता 'धर्मवंशी विश्वकर्मा', 'अंगिरावंशी विश्वकर्मा' जिन्हें विज्ञान विधाता वसु पुत्र बताया गया है। महान शिल्पाचार्य विज्ञान जन्मदाता अथवी ऋषि के पौत्र 'सुधन्वा विश्वकर्मा' थे। 'भृंगुवंशी विश्वकर्मा' जिन्हें धर्म ग्रंथों में उत्कृष्ट शिल्पशुक्राचार्य के पौत्र के रूप में उल्लेखित किया गया है।
वास्तुदेव के पुत्र थे 'विश्वकर्मा'
सृजन का देवता 'विश्वकर्मा', वास्तुदेव के पुत्र थे। और उनकी माता का नाम अंगिरसी था। विश्वकर्मा जी ने इन्द्रपुरी, यमपुरी, वरुणपुरी, कुबेरपुरी, पाण्डवपुरी, सुदामापुरी और शिवमण्डलपुरी का निर्माण किया था।
'स्कंद पुराण' में उल्लेख है कि वे शिल्प शास्त्र के इतने बड़े मर्मज्ञ थे कि जल पर चल सकने वाला खड़ाऊ बनाने की सामर्थ्य रखते थे। मान्यता है कि भगवान विश्वकर्मा के पूजन के बिना तकनीकी कार्य शुभ नहीं माना जाता।
ऋग्वेद में मिलता है उल्लेख
ऋग्वेद मे विश्वकर्मा सुक्त के नाम से 11 ऋचाएं लिखी गई हैं। जिनके प्रत्येक मंत्र पर लिखा है ऋषि विश्वकर्मा भवन देवता हैं। वहीं, सुक्त यजुर्वेद अध्याय 17, सुक्त मन्त्र 16 से 31 तक 16 मन्त्रो मे आया है। लेकिन महाभारत सहित सभी पुराणकार प्रभात पुत्र विश्वकर्मा को आदि विश्वकर्मा मानते हैं।
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