मल्टीमीडिया डेस्क। किसी भी चीज की अति यानी ज्यादा होना नुकसानदेह होता है। इसीलिए कहा गया है- 'अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप। अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप।' इसका आशय यह है कि जो लोग ज्यादा बोलते हैं, उन्हें मूर्ख समझा जाता है। वहीं कम बोलने वाले को लोग गूंगा या बेवकूफ समझते हैं। जब बारिश अधिक होती है, जो फसलें बर्बाद हो जाती हैं और जब धूप ज्यादा पड़ती है, तो जमीन बंजर हो जाती है।
मगर, इस अति के अलावा एक और चीज है, जो दूसरों को ही नहीं बल्कि खुद के लिए भी नुकसानदेह होती है। वह है गुस्सा यानी क्रोध। गुस्सैल व्यक्ति चिल्लाकर सामने वाले को तो परेशानी में डाल ही देता है, अपना भी नुकसान कर लेता है। मगर, इस पर काबू करना इतना मुश्किल भी नहीं है, जितना लोग समझते हैं।
एक महिला के लिए भी अपने गुस्से को काबू करना काफी मुश्किल था। गुस्से में वह अपने सामने पड़ने वाले हर किसी को उल्टा-सीधा बोल देती थी। उसकी इस आदत की वजह से पड़ोसी, नाते-रिश्तेदार और यहां तक कि घर के लोग भी उससे दूर हो गए। हालांकि, गुस्सा शांत होने के बाद उसे अपनी गलती का एहसास होता था, लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी होती थी।
एक दिन महिला को पता चला कि शहर में एक नामी संत आए हैं। वह महिला उनसे मिलने गई। महिला ने कहा महाराज मेरे क्रोध करने की आदत की वजह से सभी मुझसे दूर हो गए हैं। मुझे अपनी गलती का एहसास भी होता है, लेकिन जिस वक्त यह होता है परिस्थितियां मेरे नियंत्रण में नहीं होती हैं, मैं क्या करूं।
महिला की बात सुनकर संत मुस्कुराने लगे। उन्होंने महिला को एक शीशी में दवा भरकर देते हुए कहा कि जब भी तुम्हें गुस्सा आए, तो इसे पी लेना। महिला ने संत की बात मानते हुए, जब भी गुस्सा आए, उस दवा को पीना शुरू कर दिया। एक हफ्ते में ही महिला को इसका नतीजा दिखने लगा और उसका गुस्सा कम हो गया।
महिला वापस संत के पास गई और बोली कि आपने जो दवा दी उससे मेरा क्रोध बहुत कम हो गया है। आप मुझे बताते जाएं कि यह कौन सी दवा है, ताकि आपके जाने के बाद मैं इस दवा का ले सकूं और गुस्से को शांत कर सकूं।
महिला की बात सुनकर संत फिर मुस्कुराए और बोले- जिसे तुम दवा समझ रही थी, वह पानी था। तुम्हें क्रोध आने पर अपनी वाणी को शांत रखना था, इसलिए क्रोध आने पर इसे पीने के लिए कहा था। इस दौरान कुछ समय निकल जाने पर तुम्हारा गुस्सा शांत हो जाता था।
दूसरा, तुम्हें विश्वास था कि संत ने जो दवा दी है, वह काम कर रही है। इसलिए अपने विश्वास को मजबूत रखो कि तुम्हें गुस्सा नहीं आता है। यह बात जब तुम्हारे मन में बैठ जाएगी, तो तुम्हें गुस्सा नहीं आएगा।
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