काठमांडू. नेपाल चीन के साथ संयुक्त युद्धाभ्यास करेगा। सागरमाथा फ्रेंडशिप-2 का यह युद्धाभ्यास 17-28 सितंबर के बीच चीन के चेंगदू में होगा। नेपाल आर्मी के प्रवक्ता ब्रिगेडियर जनरल गोकुल भंडारी ने कहा कि इस युद्धाभ्यास का मकसद आतंवाद निरोधक ऑपरेशन को मजबूत करना होगा। नेपाल ने पुणे में चल रहे बिम्सटेक देशों के युद्धाभ्यास में सेना नहीं भेजने का फैसला किया था। नेपाली मीडिया के मुताबिक, सैन्य अभ्यास को लेकर सत्तारुढ़ दल के नेताओं में असंतोष था।
चीन के साथ नेपाल ने पहला संयुक्त युद्धाभ्यास पिछले साल अप्रैल में किया था। इसके बाद से सुरक्षा को लेकर भारत की चिंताएं बढ़ गई थीं। बिम्सटेक देशों के पहले युद्धाभ्यास में नेपाल का शामिल न होना कई सवाल खड़े कर रहा है।
नेपाल-भारत के रिश्तों में दूरी अच्छी नहीं : रिपोर्ट्स के मुताबिक- नेपाल, बिम्सटेक में भारत द्वारा सुरक्षा सहयोग की कोशिशों को लेकर बहुत संतुष्ट नहीं है। बताया जा रहा है कि नेपाल ने आखिरी मौके पर बिम्सटेक के युद्धाभ्यास से हाथ तब खींचे, जब काठमांडू से सैन्य दल भारत आया था। पूर्व विदेश सचिव कंवल सिब्बल के मुताबिक, "ये दुर्भाग्यपूर्ण है कि नेपाल को भारत को बेवजह उकसाने में खुशी मिलती है।'' सिब्बल ने कहा, "नेपाल ने बिना सोचे-समझे यह कदम उठाकर भारत का भरोसा और कम किया है। उसे इसका अहसास तब होगा जब वह भविष्य में संकट में होगा। उसे भारत से रिश्तों में बिगाड़ के बजाय उन्हें सहेजना होगा।"
मोदी ने किया था बिम्सटेक के युद्धाभ्यास का ऐलान : नेपाल के ब्रिगेडियर जनरल भंडारी ने साफ किया है कि चेंगदू के युद्धाभ्यास में 20 से ज्यादा सैनिक शामिल नहीं होंगे। जबकि भारत के साथ सूर्यकिरण एक्सरसाइज में उसके 300 सैनिक शामिल हुए थे। पिछले महीने नेपाल में हुई बिम्सटेक की बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ही सदस्य देशों के संयुक्त युद्धाभ्यास की बात कही थी। इसके बावजूद नेपाल ने युद्धाभ्यास से बाहर रहने का फैसला किया। नेपाल के प्रधानमंत्री केपी ओली चीन के हिमायती माने जाते हैं। अप्रैल में मोदी के नेपाल दौरे के वक्त ओली ने सार्क समिट बाधित न किए जाने की बात कही थी। ओली ने कहा था कि सार्क की इसलिए अहमियत है क्योंकि वह क्षेत्र के नेताओं को साझा हितों पर बातचीत के लिए मंच देता है।
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