भोपाल/दमोह. जैन मुनि तरुण सागर महाराज का 51 वर्ष की उम्र में शनिवार की सुबह निधन हो गया। बताया जाता है कि 20 दिन पहले पीलिया की बीमारी से वे ग्रस्त थे जिसके बाद उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था। हालत नाजुक होने के बाद गुरुवार से उन्हें फिर से डॉक्टरों की निगरानी में रखा गया था। दमोह जिले के गुंहची गांव में जन्मे राष्ट्रीय संत तरुण सागर महाराज के निधन की खबर से गांव व समूचे जिले में लोग गमगीन हैं। शुक्रवार तक लोग उनके जल्द स्वस्थ होने की प्रार्थनाएं करते रहे। गांव से परिवार के लोग और बड़ी संख्या में भक्त उनके दिल्ली स्थित तरुणधाम आश्रम पहले से पहुंच गए थे।
बहुत कम ही लोगों को मालूम होगा कि दिगंबर को मानने वाले जैन मुनि तरुण सागर का असली नाम कभी पवन कुमार जैन हुआ करता था। इनका जन्म मध्य प्रदेश के दमोह जिले में 26 जून 1967 को हुआ था। इनके माता-पिता का नाम श्रीमती शांतिबाई जैन और प्रताप चन्द्र जैन था। कहा जाता है कि 14 साल की उम्र में ही इन्होंने घर-बार छोड़ दिया था। ये 8 मार्च 1981 को घर छोड़ संन्यास जीवन में आ गए थे। इनकी शिक्षा-दीक्षा छत्तीसगढ़ में हुई है।
मुख्यमंत्री ने कहा, ऐसे संत सदियों में एक बार आते हैं : मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा, "दमोह की धरती को नमन करता हूँ, जो श्रद्धेय जैन मुनि तरुण सागरजी महाराज जैसे ईश्वर तुल्य विराट व्यक्तित्व की जननी है। अपने "कड़वे प्रवचन" से हमारे जीवन को सार्थक स्वरूप प्रदान करने वाले ऐसे संत सदियों में एक बार धरती पर आते हैं। गुरुदेव कृपावर्षा से आप हमारे ह्रदय में अमर रहेंगे। आज हम सभी ने ऐसे महान मार्ग दर्शक व्यक्तित्व को खो दिया, जिनके प्रखर विचारों-वचनों ने राष्ट्र सेवा, कर्तव्यनिष्ठता व जीवन मूल्यों के प्रति करोड़ों लोगों को नई दिशा दी।"
क्रांतिकारी संत का मिला तमगा : इनके प्रवचनों को खूब सुना जाता है। अपने प्रवचनों के वजह से ही इन्हें 'क्रांतिकारी संत' का तमगा मिला हुआ है। 6 फरवरी 2002 को इन्हें मध्य प्रदेश शासन द्वारा 'राजकीय अतिथि' का दर्जा मिला। इसके बाद 2 मार्च 2003 को गुजरात सरकार ने भी उन्हें 'राजकीय अतिथि' के सम्मान से नवाजा। जैन धर्म में ही नहीं उनके शिष्यों की संख्या दूसरे समुदायों में भी काफी है। 20 जुलाई 1988 को राजस्थान के बागीडोरा में 20 वर्ष की उम्र में उनके गुरु पुष्पदंत सागर ने उन्हें दिगंबर मोंक की उपाधि दे दी।
शुक्रवार को आश्रम की बालकनी में आकर दिए थे दर्शन : शुक्रवार को तरुण सागर महाराज ने आश्रम की बालकनी में आकर भक्तों को दर्शन भी दिए। वहीं सोशल मीडिया में महाराजजी के संलेखना व्रत रखने की खबर चल रही है, हालांकि इसे लेकर अभी तक कोई आधिकारिक जानकारी नहीं दी गई है। महाराज ने 13 साल की उम्र में ब्रहम्चर्य व्रत लेकर संत वेश धारण किया था। संत बनने के बाद तरुण सागर महाराज तीन बार ही अपने गांव गुंहची आए थे।
तरुण सागर महाराज गांव और देश के गौरव रहेंगे : तरुण सागर महाराज की बहन अनीता जैन ने बताया कि वे मंगलवार को ही दिल्ली में उनके पास से लौटी हैं और उसी रात उनका स्वास्थ्य खराब होने की जानकारी मिली। बड़े भाई बृजेश जैन जो अभी दिल्ली में महाराजजी के पास रुक गए थे। महाराज को कक्षा आठवीं तक की शिक्षा देने के वाले शिक्षक राम प्रसाद यादव ने जब से उनकी मौत की खबर सुनने के बाद से ही दुखी हैं। उन्होंने कहा कि मुझे इस बात पर हमेशा गर्व रहेगा कि उन्हें शुरुआती शिक्षा मैंने दी। गुंहची गांव में रहने वाले महाराज के बचपन के साथी रोशन यादव, चक्रेश जैन, प्रमोद गुजर ने बताया कि तरुण सागर महाराज उनके गांव और देश का गौरव हैं और सदा रहेंगे।
अपने कड़वे प्रवचनों के लिए प्रसिद्ध : तरुण सागर जी अपने कड़वे प्रवचनों के लिए प्रसिद्ध हैं। इसी वजह से उन्हें क्रांतिकारी संत भी कहा जाता है। कड़वे प्रवचन नामक उनकी पुस्तक काफी प्रचलित है। समाज के विभिन्न वर्गों को एकजुट करने में उन्होंने काफी प्रयास किए हैं। मुनिश्री मध्यप्रदेश और हरियाणा विधानसभा में प्रवचन भी दे चुके हैं। हरियाणा विधानसभा में उनके प्रवचन पर काफी विवाद हुआ था, इस पर संगीतकार विशाल ददलानी की टिप्पणी पर बवाल हुआ। तब विशाल को माफी मांगनी पड़ी थी।
पवन कुमार जैन से मुनि तरुण सागर महाराज तक
बचपन का नाम- पवन कुमार जैन
जन्म तिथि- 26 जून, 1967, ग्राम गुहजी, जिला दमोह मध्यप्रदेश
माता- महिलारत्न श्रीमती शांतिबाई जैन
पिता- श्रेष्ठ श्रावक श्री प्रताप चन्द्र जी जैन
लौकिक शिक्षा- माध्यमिक शाला तक
गृहत्याग- 8 मार्च, 1981
छुल्लक दीक्षा- 18 जनवरी , 1982, अकलतरा ( छत्तीसगढ़) में
मुनि दीक्षा- 20 जुलाई, 1988, बागीदौरा (राजस्थान)
दीक्षा- गुरु आचार्य पुष्पदंत सागर जी मुनि
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