- मंगलवार को 6 शहरों में छापे मारे गए थे, पांच की गिरफ्तारी हुई
- वकील सुधा भारद्वाज घर में ही नजरबंद
नई दिल्ली. भीमा-कोरेगांव हिंसा मामले में गिरफ्तार पांच में से तीन वामपंथी विचारकों को बुधवार को पुणे की अदालत में पेश किया जाएगा। वहीं, इनकी गिरफ्तारी के विरोध में इतिहासकार रोमिला थापर और 4 कार्यकर्ताओं तरफ से सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई है। याचिका में कार्यकर्ताओं की रिहाई की मांग की गई है। सुप्रीम कोर्ट में मामले की सुनवाई आज शाम को होगी।
मंगलवार को नक्सलियों से रिश्ते रखने के आरोप में जिन पांच लोगों को गिरफ्तार किया गया था, उनमें अरुण फरेरा, वेरनन गोंजालेस, वारवरा राव, गौतम नवलखा और वकील सुधा भारद्वाज हैं। छत्तीसगढ़ से अरेस्ट सुधा को फिलहाल उनके घर में नजरबंद रखा गया है। सुधा को गुरुवार को हाईकोर्ट में पेश किया जाएगा।
जिस कानून के तहत गिरफ्तारी हुई, वह विवादों में रहा : गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) 1967 में लाया गया था। कानून के तहत अधिकारियों के अधिकार दिया गया कि वे छापेमारी कर बिना वारंट के किसी भी आदमी को इस आधार पर गिरफ्तार कर सकते हैं कि उसके आतंकियों से रिश्ते हैं या फिर वह गैरकानूनी गतिविधियों में संलिप्त है। छापेमारी के दौरान अफसर किसी भी चीज को जब्त कर सकते हैं। इस कानून के तहत गिरफ्तार व्यक्ति के पास जमानत के लिए आवेदन करने का अधिकार नहीं होता। पांचों कार्यकर्ताओं को इसी कानून के तहत गिरफ्तार किया गया है।
यूपीए सरकार के वक्त भी हो चुकी है गिरफ्तारी : वकील प्रशांत भूषण ने बताया कि यूएपीए के तहत अरुण फरेरा को 2007 में भी गिरफ्तार किया गया था और उन्हें शहरी नक्सली करार दिया गया था। उन्हें सभी केसों से बरी कर दिया गया लेकिन उन्हें 5 साल जेल में बिताने पड़े। एक बार फिर फरेरा समेत पांच लोगों को शहरी नक्सली बताकर गिरफ्तार किया गया है।
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