Saturday, 24th May 2025

दोरनापाल : नक्सलियों के डर से जहां पढ़ाई नहीं होती, वहां की बेटी बनेगी पहली डॉक्टर

Fri, Aug 24, 2018 6:04 PM

हौंसला : मुश्किल हालातों से में प्राप्त किया अपना लक्ष्य, एमबीबीएस में मिला दाखिला

दोरनापाल। सुकमा जिले का धुर नक्सल प्रभावित इलाका दोरनापाल। जहां नक्सली घटनाएं और पुलिस-नक्सली मुठभेड़ आम बात है। नक्सलियों की इतनी दहशत है कि करीब 3 हजार बच्चों को शासन-प्रशासन हॉस्टलों में रखकर शिक्षा दे रहा है। माहौल ऐसा कि कोई यहां नौकरी करने को तैयार नहीं, ऐसे में यहां पढ़ाई करना किसी चुनौती से कम नहीं है। इन सबके बीच माया कश्यप उम्मीद की किरण बन गई है। दोरनापाल की यह बेटी पहली डॉक्टर बनेगी। उसने अपनी मेहनत और लगन से साबित कर दिया है कि पंखों से कुछ नहीं होता, हौसलों से उड़ान होती है। अगर लक्ष्य पाने की इच्छा हो तो कोई भी लक्ष्य बड़ा नही।

 

 

- बचपन से डॉक्टर बनने की इच्छा मन मे पाले एक सरकारी स्कूल से अपनी पढ़ाई शुरू करने वाली दोरनापाल निवासी माया कश्यप ने आज वो मुकाम हासिल कर लिया है। जिसकी चर्चा पूरे नगर में होने लगी है। माया कश्यप  दोरनापाल की पहली डॉक्टर बनने जा रही है। उसको एमबीबीएस में दाखिला मिल चुका है। वह जल्द ही अपनी पढ़ाई पूरी कर डॉक्टर भी बन जाएगी। यह बात अपने में इसलिए और भी खास है कि किसी समय यहां डॉक्टर भी ड्यूटी के लिए आने से डरा करते थे। 

 

बचपन में उठ गया था पिता का साया

- माया के टीचर पिता रामचंद्र कश्यप का 2009 में निधन हो गया था। उस समय वह 6वीं कक्षा में पढ़ती थी। इसके चलते आर्थिक स्थिति बहुत कमजोर हो गई। उसे लगा कि अब आगे की पढ़ाई करना नामुमकिन है। ऐसे में उसकी मां ने साथ दिया और अपनी दृंड इच्छा शक्ति से माया ने एमबीबीएस में सेलेक्ट होकर दिखाया। वह अब अपनी आगे की पढ़ाई अंबिकापुर के सरकारी मेडिकल कॉलेज करेगी। 

 

बड़े  भाई और भाभी ने उठाया आगे पढाई का खर्च

- जब माया का चयन मेडिकल के लिए हुआ तो उसके साथ पूरा परिवार भी बहुत खुश हुआ, लेकिन फीस की बात सामने आते ही उनकी खुशी चिंता में बदल गई। परिवार को पेंशन के रूप में सिर्फ 12 हजार रुपए मिलते हैं। इसी से उसकी, उसकी दो बहनें और छोटे भाई की पढ़ाई और पूरे घर का खर्च चलता है। इस पर बड़ा भाई अनूप कश्यप और भाभी रत्ना सामने आए। अनूप छत्तीसगढ़ पुलिस में सिपाही है और दंतेवाड़ा में तैनात है। दोनों ने अपने करीब और मित्रों से रुपए उधार लेकर माया का दाखिला करवाया।

 

महज पांच सौ रुपये में गुजारना पड़ता था एक महीना

- माया ने बताया कि मां नीलावती सब बच्चों की पढ़ाई का खर्च उठाना पड़ता था। पूरा परिवार भी चलाना था। ऐसे में खर्च के लिए 500 रुपए मिला करते थे। जिसके साथ मुझे पूरा महीना चलाना पड़ता था। पढ़ाई के दौरान मुझे पैसों की काफी कमी रहती थी,  लेकिन मेरा मुख्य लक्ष्य डॉक्टर बनना था। इसलिए सिर्फ पढ़ाई में ध्यान केंद्रित किया और अपने सपनों को पूरा करने में जुटी हुई थी। आज मेडिकल कॉलेज में मेरा चयन होना जैसे मेरा सपना पूरा हुआ जैसे है। बचपन से इस क्षेत्र को देख रही हूं। अगर मैं भविष्य में डॉक्टर बन के आती हूं और इसी क्षेत्र में सेवा का मौका मिले तो मुझे ज्यादा खुशी होगी। 

 

Comments 0

Comment Now


Videos Gallery

Poll of the day

जातीय आरक्षण को समाप्त करके केवल 'असमर्थता' को आरक्षण का आधार बनाना चाहिए ?

83 %
14 %
3 %

Photo Gallery