- शहरी इलाकों में दैनिक वेतन ग्रामीण इलाकों का दोगुना
- 7% ग्रोथ, फिर भी वेतन में असमानता बरकरार
नई दिल्ली. अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन यानी आईएलओ का कहना है कि 1993 के बाद दो दशक तक भारत की औसत सालाना ग्रोथ 7% रही, फिर भी कम वेतन और असमानता की समस्या बनी हुई है। असमानता स्त्री-पुरुष, नियमित-अनियमित और शहरी-ग्रामीण सभी मामलों में है। 1993-94 में स्त्री-पुरुष के वेतन का अंतर 48% था। यह 2011-12 में घटने के बावजूद 34% था। ग्रामीण इलाकों में कैजुअल यानी अनियमित वर्कर के तौर पर काम करने वाली महिलाओं का वेतन देश में सबसे कम 104 रुपए रोजाना है। उन्हें शहरों में संगठित क्षेत्र के पुरुषों की तुलना में सिर्फ 22% सैलरी मिलती है।
सोमवार को जारी इंडिया वेज रिपोर्ट के अनुसार संगठित क्षेत्र में औसत दैनिक वेतन 513 रुपए है। असंगठित क्षेत्र में यह सिर्फ 166 रुपए यानी संगठित क्षेत्र का 32% है। विकास से रोजगार के पैटर्न में बदलाव आया। फिर भी 45% श्रमिक कृषि क्षेत्र में हैं।
2011-12 में औसत दैनिक वेतन
श्रेणी | औसत दैनिक वेतन (रुपए) |
सभी कैटेग्री | 247 |
ग्रामीण | 175 |
शहरी | 384 |
नियमित | 396 |
अनियमित | 143 |
1993-94 में 29.8% नियमित और 70.2% अनियमित वेतनभोगी थे। 2011-12 में नियमित 37.9% और अनियमित 62.1% हो गए। राष्ट्रीय आय में श्रमिकों के वेतन की हिस्सेदारी कम हुई है। यह 1981 में 38.5% थी, जो 2013 में घटकर 35.4% रह गई। आईएलओ ने वेतन कानून को मजबूती से लागू करने की सिफारिश की है। सभी कर्मचारियों को लीगल कवरेज देने, न्यूनतम वेतन का ढांचा आसान बनाने और प्रभावी कदम उठाने की बात भी कही है।
देश में न्यूनतम वेतन के 1709 रेट, सिर्फ 66% को लाभ: भारत न्यूनतम वेतन लागू करने वालों में है। यहां 1948 में न्यूनतम वेतन कानून लागू हुआ था। लेकिन वर्करों को अभी तक फायदा नहीं मिला। इसकी प्रणाली जटिल है। राज्य इसे अपने हिसाब से तय करते हैं, इसलिए देश में न्यूनतम वेतन के 1,709 रेट बन गए हैं। फायदा भी सिर्फ 66% श्रमिकों को मिलता है। राष्ट्रीय स्तर पर 90 के दशक में न्यूनतम वेतन लाग हुआ था। यह बढ़ते-बढ़ते 2017 में 176 रु. रोजाना हो गया। पर इसकी कानूनी बाध्यता नहीं है। इसलिए 2009-10 में 15% नियमित और 41% अनियमित कर्मचारी राष्ट्रीय न्यूनतम वेतन से कम पैसे पाते थे। अब भी 6.22 करोड़ श्रमिकों को राष्ट्रीय स्तर से कम वेतन मिलता है।
Comment Now