रायगढ़।शहर के दो बहुचर्चित मामलों में हाईकोर्ट और जिला न्यायालय ने महत्वपूर्ण फैसला दिया है। शहर की प्रसिद्ध लेकिन बंद हो चुकी मोहन जूट मिल में मजदूरों के बकाया भुगतान पर लगी रोक हाईकोर्ट ने हटा दी है। दूसरे फैसले में सालों से इतवारी बाजार के बड़े हिस्से पर 34 लोगों के बेजा कब्जे को हटाने के संबंध में जिला न्यायालय ने फैसला दिया है। जूट मिल मामले में 1300 मजदूरों के परिवार सालों से संघर्ष कर रहे हैं।
- शहर की मोहन जूट मिल के 1333 मजदूरों की बकाया 68 लाख रुपए की तनख्वाह के भुगतान पर पहले कोर्ट ने स्टे लगाया हुआ था। हाईकोर्ट ने ये स्टे हटा कर बकाया राशि के भुगतान के निर्देश दिए हैं। जिला प्रशासन ने मजदूरों की मांग पर बंद जूट मिल की आरआरसी जारी कर जूट मिल की संपत्ति कुर्क करने की प्रक्रिया शुरू की थी।
- संपत्ति कुर्क होने से पहले ही मोहन जूट मिल प्रबंधन हाईकोर्ट पहुंचा और स्टे आर्डर ले लिया। इसके चलते मजदूरों को बकाया राशि का भुगतान नहीं किया जा सका, लेकिन 9 जुलाई को हाईकोर्ट ने स्टे आर्डर को हटा दिया है। कलेक्टर व तहसीलदार को मजदूरों को बकाया भुगतान कराने के आदेश दिए।
- हाईकोर्ट द्वारा रोक हटाने के बाद जूट मजदूर संघ के महामंत्री जगदीश सिंह ने रायगढ़ तहसीलदार को ज्ञापन सौंपकर आरआरसी को वसूल कर मजदूरों को बकाया राशि भुगतान करवाने की मांग की है। दूसरी तरफ जिला सत्र न्यायाधीश द्वारा कृषि उपज मंडी के पक्ष में फैसला सुनाने के बाद मंडी सचिव ने कृषि उपज मंडी की जमीन पर 34 लोगों द्वारा किए गए कब्जा को हटाने की मांग कलेक्टर से की है।
18 साल पहले मिल में लग गया था ताला
- मजदूर संघ के नेता जगदीश सिंह ने बताया कि मोहन जूट मिल में अवैध रूप से सन 2000 में ताला बंदी की गई थी। बकाया भुगतान को लेकर जूट मिल के कामगारों ने तात्कालीन कलेक्टर से मदद की गुहार लगाई थी। साथ ही मामला श्रम न्यायालय में लेकर गए थे।
- जिसके बाद श्रमायुक्त ने आरआरसी जारी करने का निर्देश दिया था लेकिन इसके पहले की जिला प्रशासन कुछ कार्रवाई पूरी करता इसके पहले मिल प्रबंधन ने इस मामले में उप श्रमायुक्त के आदेश के विरुद्ध कोर्ट में याचिका दाखिल कर स्टे आर्डर ले लिया।
5 साल पहले फिर ले आया स्टे
- श्रमायुक्त के निर्देश पर भी जब मजदूरों को उनकी बकाया राशि नहीं मिली तो उन्होंने हाईकोर्ट में वर्ष 2001 में याचिका लगाकर मजदूरी भुगतान करने की मांग रखी थी। इस मामले में करीब 12 सालों तक लंबी बहस चलने के बाद हाईकोर्ट ने 14 मार्च 2013 को बार जिला प्रशासन को मोहन जूट मिल की संपत्ति कुर्क कर मजदूरों को बकाया मजदूरी दिलवाने का आदेश जारी किया था, मगर जिला प्रशासन द्वारा प्रक्रिया पूरी करने में लेटलतीफी की की वजह से मिल प्रबंधन कोर्ट से दोबारा स्टे आर्डर ले आया।
14 सालों से इतवारी बाजार की जमीन पर कब्जा, मंडी सचिव ने कहा अतिक्रमण हटाकर कर कब्जा दिलाएं
इधर, इतवारी बाजार की जमीन को लेकर पिछले 14 सालों से नगर निगम और कृषि उपज मंडी के बीच मालिकाना हक का लेकर मामला सिविल कोर्ट में था। जिसमें जिला सत्र न्यायाधीश ने कृषि उपज मंडी के पक्ष में अपना फैसला सुनाने के बाद मंडी सचिव ने कलेक्टर को पत्र लिख कर मंडी की जमीन पर 34 लोगों द्वारा किए गए कब्जा को हटाकर जमीन मंडी के स्वामित्व में दिलाने की मांग रखी है।
मध्य प्रदेश सरकार ने घोषित किया था मंडी प्रांगण
कृषि उपज मंडी समिति की मूल मंडी प्रांगण नया गंज इतवारी बाजार की भूमि खसरा नंबर 1987/15 रकबा 0.67 एकड़, खसरा नंबर 1992/16 रकबा 1.52 एकड़, खन 1993 रकबा 3.01 एकड़ नया प्लाट नंबर 253,255,256, एवं 257 कुल 5.17 एकड़ शासकीय व नजूल भूमि को मध्य प्रदेश शासन कृषि विभाग की अधिसूचना क्रमांक 2451-8063, 26 अप्रैल 1969 को मंडी प्रांगण घोषित किया था। इस जमीन को निगम अपनी संपत्ति बताकर मालिकाना हक जता रहा था। इसी को लेकर पिछले 14 सालों से प्रकरण कोर्ट में लंबित था।
2004 में लीज नवीनीकरण नहीं होने पर किया था निरस्त: कृषि उपज मंडी समिति द्वारा 11 लोगों को मंडी की जमीन को लीज पर दिया गया था। इसके लिए एक राशि निर्धारित कर इकरारनामा निष्पादित किया था। लेकिन इनके द्वारा लीज का नवीनीकरण नहीं कराने पर 19 सितंबर 2004 को लीज निरस्त कर दी गई थी।
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