रायपुर । राजधानी के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल बूढ़ातालाब के समीप स्थित बूढ़ेश्वर महादेव मंदिर शहर का दूसरा सबसे बड़ा पुराना मंदिर है, जहां जलाभिषेक करने दूर-दूर से भक्तगण पहुंचते हैं।
ऐसा है इतिहास
आदिवासी समाज के इष्टदेव बूढ़ा देव के नाम पर स्थित बूढ़ा तालाब के कारण शिवलिंग का नाम बूढ़ेश्वर महादेव पड़ा। मान्यता है कि स्वयंभू शिवलिंग पर सांप लिपटे रहते थे, जिसे देखकर श्रद्धालुओं ने मंदिर का निर्माण करवाया।
देश की आजादी के बाद 1950 के आसपास श्री पुष्टिकर समाज ने मंदिर का जीर्णोद्धार कर विशाल मंदिर बनवाया। प्रतिदिन दर्शन करने सैकड़ों भक्त आते हैं। सावन महीने में जलाभिषेक करने हजारों भक्त उमड़ते हैं।
बूढ़ेश्वर मंदिर के गर्भगृह में शिवलिंग के साथ शिव परिवार प्रतिष्ठापित है। इनमें गणेश, कार्तिकेय, पार्वती का दर्शन एक साथ किया जा सकता है। गर्भगृह के बाहर मंदिर के चारों ओर राधा-कृष्ण, राम-सीता, नरसिंगनाथ, हनुमान, संतोषी माता की प्रतिमाएं प्रतिष्ठापित हैं।
इनके अलावा भगवान शिव के अवतार भैरव बाबा खुले आसमान तले विराजे हैं। मंदिर प्रांगण में स्थित कुआं सैकड़ों साल पुराना है जिसके बारे में कहा जाता है कि यह कुआं कभी नहीं सूखा। 12 महीने लबालब पानी भरा रहता है।
मंदिर में प्रत्येक सोमवार को सुबह से दोपहर तक जलाभिषेक की विशेष व्यवस्था की गई है। गर्भगृह के बाहर बड़े से बर्तन में जल अर्पित किया जाता है जो पाइप से होते हुए शिवलिंग पर अर्पित होता है। शाम को महाश्रृंगार का दर्शन किया जा सकता है। प्रत्येक सोमवार को अलग-अलग श्रृंगार दर्शन के बाद ठंडाई का प्रसाद वितरित करने की व्यवस्था की गई है।
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