इस्लामाबाद. पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ के प्रमुख इमरान खान (65) का मुल्क का नया वजीर-ए-आजम (प्रधानमंत्री) बनना तय माना जा रहा है। पड़ोसी देश में सत्ता का यह बदलाव भारत के लिए कैसा रहेगा? इस पर पीटीवी की पॉलिटिकल जर्नलिस्ट मोना आलम कहती हैं कि इस जीत के बावजूद इमरान पर आर्मी का दबाव रहेगा, जिससे भारत के प्रति उनका रुख नकारात्मक ही रहने का अनुमान है। विदेश मामलों के जानकार, रहीस सिंह कहते हैं कि पाकिस्तान की सेना हमेशा सरकार को अपनी कठपुतली बनाए रखना चाहती है। इमरान इसके लिए तैयार थे। नया कुछ नहीं होगा। भारत की चुनौतियां कम नहीं होंगी, क्योंकि इमरान का रुख भारत विरोधी है। पाकिस्तान के चुनावी विश्लेषक सैयद मसरूर शाह का कहना है कि इमरान के आने से भारत के साथ रिश्ते बेहतर नहीं होंगे।
इमरान को सेना ने जिताया: रहीस सिंह कहते हैं कि इमरान को सेना ने जिताया है। पाकिस्तान की सेना हमेशा सरकार को अपनी कठपुतली बनाए रखना चाहती है। इमरान इसके लिए तैयार थे। उन्हें कट्टरपंथियों का भी समर्थन मिल गया। ऐसे में यह इमरान, डीप स्टेट (सेना+आईएसआई) और नॉन स्टेट (कट्टरपंथी) का त्रिकोण बन गया। इनमें डीप स्टेट भारत को दुश्मन नंबर एक मानता है। नॉन स्टेट भारत को सनातन शत्रु मानते हैं। इमरान भी भारत को मित्र नहीं मानते। ऐसे में इन ताकतों का मिल जाना भारत के लिए बेहतर नहीं है। रही बात नवाज की तो वे भारत के हिमायती होते हुए भी उसके हित में सेना की वजह से कुछ नहीं कर पाए। भ्रष्टाचार के मामले में नवाज का नाम न होते हुए भी उन्हें प्रधानमंत्री पद से हटाया गया। ऐसा इसलिए क्योंकि सेना उन्हें अगला प्रधानमंत्री नहीं बनने देना चाहती थी।
कट्टरपंथियों को मुख्यधारा में लाने की कर चुके पैरवी : सैयद मसरूर शाह ने ‘भास्कर’ को बताया कि इस चुनाव में इमरान खान को सेना का समर्थन मिलने की बात कई बार सामने आ चुकी है। ऐसे में उनके साथ भारत के रिश्तों की उम्मीद बेकार साबित होगी। क्रिकेट से राजनीति में कदम रखने वाले इमरान कई मौकों पर जेहादियों से बातचीत शुरू करने और कट्टरपंथियों को मुख्यधारा में लाने की पैरवी कर चुके हैं। उनके विरोधी उन्हें ‘तालिबान खान’ के नाम से पुकारते हैं। इसके उलट नवाज शरीफ की पार्टी पीएमएल-एन और बिलावल भुट्टो के नेतृत्व वाली पार्टी की पिछली सरकारें भारत के साथ शांतिपूर्ण रिश्तों की पक्षधर रही हैं।
आर्मी के दबाव में ‘खामोश’ रहेंगे इमरान: पीटीवी की पॉलिटिकल जर्नलिस्ट मोना आलम कहती हैं कि इमरान के रूप में पाकिस्तान को नया चेहरा मिला है लेकिन हकीकत में जीत आर्मी की हुई है। इस जीत के बावजूद इमरान पर आर्मी का दबाव रहेगा, जिससे भारत के प्रति उनका रुख नकारात्मक ही रहने का अनुमान है। यह पहली बार है, जब इंटरनेशनल लेवल का कोई खिलाड़ी किसी देश का प्रधानमंत्री बनने जा रहा है। वैसे इस चुनाव को नवाज शरीफ की पार्टी के लिए क्लीन स्वीप जैसा नहीं कहा जा सकता। अखबारों के सर्कुलेशन पर बैन, न्यूज चैनल को विचार रखने से रोकने जैसे कई कारण इलेक्शन प्रक्रिया में आर्मी की संलिप्तता जाहिर करते हैं।
भारत के खिलाफ इमरान का रुख
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