रायगढ़. सेवानिवृत्त होने के बाद अधिकांश शासकीय कर्मचारी पेंशन स्वीकृत कराने सरकारी दफ्तर के चक्कर काटने पर मजबूर हैं। इसी पर प्रसिद्ध रचनाकार हरिशंकर परसाई ने करारा व्यंग्य कसते हुए भोलाराम का जीव कहानी लिखी है। इसी कहानी पर आधारित नाटक का मंचन शहर के सांस्कृतिक संस्था गुड़ी द्वारा पालिटेक्निक ऑडिटोरियम में किया गया। इसके साथ ही इप्टा रायगढ़ द्वारा भी वर्तमान सत्ता पर कटाक्ष करते हुए अख्तर अली की कहानी पर अजब मदारी-गजब तमाशा की प्रस्तुति की गई।
सेवानिवृत्त कर्मचारियों को पेंशन की स्वीकृति के लिए काफी परेशान होना पड़ता है। इस मौजूदा व्यवस्था पर बड़ा सटीक व्यंग्य करते हुए प्रसिद्ध रचनाकार एवं व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई द्वारा भोलाराम का जीव कहानी लिखी गई है। कहानी के अनुसार भोलाराम के सेवानिवृत्त होने के पांच साल बाद भी उसकी पेंशन स्वीकृत नहीं हो पाती है और गरीबी से जुझते हुए आखिरकार वह दम तोड़ देता है, लेकिन परिवार के लालन पालन के लिए आवश्यक पेंशन राशि की स्वीकृति नहीं होने से उसकी आत्मा इसी लोक में भटकते रहती है। इधर मृत्यु के बाद जब उसका जीव यमलोक नहीं पंहुचता है तो यमराज द्वारा जीव को लाने की जिम्मेदारी नारद ऋषि को दी जाती है। नारद पृथ्वी पर आते हैं और उसके परिवार से मिलते हैं। परिवार की गरीबी की दास्तान सुन कर नारद का दिल पसीज जाता है और वे स्वंय ही पेंशन स्वीकृति के लिए भोलाराम के ऑफिस जाते हैं। जहां इस टेबल से उस टेबल नारद को भी घुमना पड़ता है और आखिरकार उसे पता चलता है कि भोलाराम ने रिश्वत नहीं दी थी। इसलिए उसकी फाईल अटक गई है। भोलाराम की आत्मा उन्हीं फाईलों के बीच ही पेंशन की खातिर भटक रही है। इसी कहानी पर आधारित नाटक का प्रभावशाली मंचन सांस्कृतिक संस्था गुड़ी द्वारा पालिटेक्रिक ऑडिटोरियम में किया गया। नाटक की परिकल्पना, संगीत व निर्देशन अंचल के कलाकार मोहन सागर द्वारा किया गया है। वहीं नाटक के पात्रों में जोकर के रूप में विवेक तिवारी, तरूण बघेल, सुत्रधार युवराज सिंह आजाद, यमराज तरूण बघेल, चित्रगुप्त विवेक तिवारी, नारद की भूमिका में राजेश जैन, पत्नी के रूप में शिवानी मुखर्जी, बेटी प्रेरणा देवांगन, अधिकारी की भूमिका में प्रेम शंकर मिश्रा, प्रितेश पाण्डेय, गौतम मोरकर, चपरासी के रूप में नरेश सहित अन्य कलाकारों ने भूमिका निभाई।
दर्शकों ने उठाया लुत्फ
संगीत में मोहन सागर के साथ लखन चौहान व गायन में शोभा साहू एवं शेखर गिरी थे। लाईट व्यवस्था श्याम देवकर के द्वारा की गई। कार्यक्रम के व्यवस्थापक के रूप में प्रताप सिंह खोडिय़ार, रविन्द्र चौबे, अनुपम पाल, टिंकू देवांगन थे। इसके पूर्व इप्टा रायगढ़ द्वारा लेखक अख्तर अली के नाटक अजब मदारी-गजब तमाशा का अजय आठले के निर्देशन में मंचन किया। यह नाटक की वर्तमान सत्ता पर करारा कटाक्ष है। दोनों ही नटकों का दर्शकों ने काफी लुत्फ उठाया और मुक्त कंठ से प्रशंसा की।
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