Monday, 26th May 2025

समलैंगिकता पर केंद्र ने दखल देने से किया इनकार, कहा- कोर्ट तय करे सही और गलत

Wed, Jul 11, 2018 9:30 PM

नई दिल्ली। समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी में डाला जाए या नहीं इस मामले से केंद्र सरकार ने अपना किनारा कर लिया है। सरकार का कहना है कि वह इस मामले में कोई भी दखल नहीं देना चाहती। मामले पर कोर्ट को अपने विवेक के आधार पर फैसला लेना होगा। बता दें धारा 377 को रद्द किये जाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई जारी है। इसके तहत यह तय किया जाना है कि समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी में रखा जाए या नहीं। इस मामले की सुनवाई पांच जजों की बेंच कर रही है।

 

इससे पहले मंगलवार को इस मामले में लंबी बहस हुई जिसमें याचिकाकर्ताओं की तरफ से अरविंद दातार पेश हुए थे, जिन्होंने बताया कि 1860 में समलैंगिकता का कोड भारत पर थोपा गया था।

उन्होंने कहा कि तब भारत में ब्रिटिश शासन था। उन्होंने कहा, ‘अगर यह कानून आज लागू किया जाता तो यह संवैधानिक तौर पर सही नहीं होगा।

सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने टिप्पणी की कि यह मामला केवल धारा 377 की वैधता से जुड़ा हुआ है। इसका शादी या दूसरे नागरिक अधिकारों से कोई लेना-देना नहीं है।

 

वहीं दूसरी ओर केंद्र सरकार की तरफ से सहायक महाधिवक्ता तुषार मेहता ने कहा कि यह मामला धारा 377 तक सीमित रहना चाहिए। उन्होंने कहा कि इसका शादी और संभोग के मामलों पर कोई असर नहीं पड़ना चाहिए।

खबरों के मुताबिक़ सरकार की तरफ ने सहायक महाधिवक्ता तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि केंद्र सरकार चाहती है कि धारा 377 की संवैधानिकता का मामला कोर्ट तय करे।

दो दिनों से चल रही समलैंगिकता की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच को तय करना है कि समलैंगिकता अपराध है या नहीं।

सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ के पांच जजों में चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के अलावा चार और जज हैं, जिनमें आरएफ नरीमन, एएम खानविलकर, डीवाई चंद्रचूड़ और इंदु मल्होत्रा शामिल हैं।

आज दोपहर में शुरू हुई इस बहस को केंद्र सरकार की ओर से पेश हुए तुषार मेहता ने अपनी बात रखी। इस मामले में उन्होंने कहा कि सरकार चाहती है कि धारा 377 पर सुप्रीम कोर्ट अपने विवेक से फैसला ले।

वहीं केंद्र सरकार ने यह जरूर कहा कि सुप्रीम कोर्ट बच्चों के खिलाफ हिंसा और शोषण को रोकना सुनिश्चित करे।

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