Monday, 26th May 2025

दिल्ली के उपराज्यपाल स्वतंत्र फैसले नहीं ले सकते, वे सरकार के काम में बाधक नहीं बन सकते: सुप्रीम कोर्ट

Wed, Jul 4, 2018 9:59 PM

केजरीवाल कई बार दिल्ली के उपराज्यपाल पर केंद्र के इशारे पर काम करने का आरोप लगा चुके हैं।

- सुप्रीम कोर्ट ने कहा- न एलजी सभी मामले राष्ट्रपति को भेज सकते, न दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा मिल सकता

- पांच जजों की बेंच ने कहा- न किसी की तानाशाही होनी चाहिए, न अराजकता वाला रवैया होना चाहिए

- केजरीवाल सरकार ने उपराज्यपाल के पक्ष में आए दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी

नई दिल्ली.केंद्र और दिल्ली सरकार के बीच अधिकारों के विवाद पर बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया। कोर्ट ने कहा- दिल्ली के उपराज्यपाल अनिल बैजल स्वतंत्र फैसले नहीं ले सकते। उनकी भूमिका खलल डालने वाली नहीं होनी चाहिए। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान बेंच ने यह भी कहा कि उपराज्यपाल न तो हर मामला राष्ट्रपति के पास भेज सकते हैं, न ही दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिया जा सकता है।

सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देती केजरीवाल सरकार की अर्जी पर यह फैसला सुनाया। हाईकोर्ट ने कहा था कि दिल्ली के प्रशासनिक मुखिया उपराज्यपाल ही हैं। कोई भी फैसला उनकी मंजूरी के बिना नहीं लिया जाए।

सुप्रीम कोर्ट ने पांच टिप्पणियां कीं

1)"तीन मुद्दों यानी जमीन से जुड़े मामले, कानून-व्यवस्था और पुलिस को छोड़कर दिल्ली सरकार के पास अन्य मुद्दों पर शासन करने की शक्ति है।"

2)"एलजी मंत्रिपरिषद की सहायता और उसकी राय पर काम करने के लिए बाध्य हैं। दोनों के बीच मतभेद हों तो मामला राष्ट्रपति के पास भेजा जा सकता है, लेकिन वे ऐसा हर मामले में नहीं कर सकते।"

3)''मंत्रिपरिषद को अपने फैसलों की जानकारी एलजी को देना चाहिए, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि उन पर एलजी की सहमति जरूरी है। न किसी की तानाशाही होनी चाहिए, न अराजकता वाला रवैया होना चाहिए।''

4)''एलजी को मशीनी तरीके से काम करके मंत्रिपरिषद के हर फैसले पर रोक नहीं लगानी चाहिए।''

5) ''एलजी को यह समझना होगा कि मंत्रिपरिषद जनता के प्रति जवाबदेह है। एलजी के सीमित अधिकार हैं। वे अन्य राज्यों के राज्यपालों की ही तरह हैं।''

फैसले पर किसने क्या कहा?

दिल्ली सरकार :उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने कहा, "केंद्र सरकार को बड़ा झटका लगा है। कोर्ट ने दिल्ली की जनता को सुप्रीम बताया है।"

भाजपा : दिल्ली के भाजपा अध्यक्ष मनोज तिवारी ने कहा, "सुप्रीम कोर्ट ने केजरीवाल को आइना दिखा दिया। संविधान सहमत फैसले को उपराज्यपाल नहीं रोक सकते। लेकिन केजरीवाल के तानाशाही फैसले पर वे फैसला ले सकते हैं।"

कांग्रेस : दिल्ली के कांग्रेस अध्यक्ष अजय माकन ने कहा, सुप्रीम कोर्ट ने सबकुछ साफ कर दिया है। केजरीवाल जी अब सिर्फ मांग नहीं कर सकते। आप हमेशा धरना नहीं दे सकते। दिल्ली के लिए समय निकालें और लोगों के लिए काम करें।

संविधान बेंच ने की सुनवाई : दिल्ली सरकार की याचिकाओं पर सीजेआई दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच जजों की बेंच ने पिछले साल 2 नवंबर से सुनवाई शुरू की थी। महज 15 सुनवाई में पूरे मामले को सुनने के बाद 6 दिसंबर को फैसला सुरक्षित रख लिया था। आप सरकार की ओर से पी चिदंबरम, गोपाल सुब्रमण्यम, राजीव धवन और इंदिरा जयसिंह जैसे वकीलों ने दलीलें रखीं। एक सुनवाई में कोर्ट ने कहा था, ''चुनी हुई सरकार के पास कुछ शक्तियां होनी चाहिए, नहीं तो वह काम नहीं कर पाएगी।'' वहीं, केंद्र और उपराज्यपाल की ओर से दलील दी गई थी कि दिल्ली एक राज्य नहीं है, इसलिए उपराज्यपाल को यहां विशेष अधिकार मिले हैं।

तीन साल से एलजी-केजरी में चल रही जंग :फरवरी, 2015 में दूसरी बार सत्ता के आने के बाद से आप सरकार उपराज्यपाल के साथ अधिकारों की लड़ाई में उलझी है। पहले तत्कालीन एलजी नजीब जंग द्वारा नियुक्तियां रद्द करने पर केजरीवाल ने उन्हें केंद्र सरकार का एजेंट बताया। इसके बाद उन्होंने जंग की तुलना तानाशाह हिटलर तक से की। दिसंबर, 2016 में अनिल बैजल के एलजी बनने के बाद से अब तक अधिकारों की लड़ाई जारी है। मुख्य सचिव अंशु प्रकाश के साथ मारपीट के बाद अधिकारियों की हड़ताल और घर-घर राशन वितरण की योजना को मंजूरी नहीं देने पर भी विवाद रहा। इसे लेकर पिछले दिनों केजरीवाल ने 3 मंत्रियों के साथ 9 दिन तक उपराज्यपाल सचिवालय में धरना और भूख हड़ताल की थी।

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