बीजिंग. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शंघाई कोऑपरेशन आर्गनाइजेशन समिट में हिस्सा लेने शनिवार को चीन के किंगदाओ पहुंच गए। यहां वे पहले ही दिन चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात करेंगे। बीते दो महीनों में दोनों नेताओं की ये दूसरी मुलाकात होगी। समिट में पहली बार भारत-पाक सदस्य के तौर पर शामिल होंगे। वहीं, भारत ने साफ किया है कि पाक के साथ कोई आधिकारिक मुलाकात नहीं होगी। एससीओ समिट में भारत की रणनीति को लेकर दैनिक भास्कर ने विदेश मामलों के जानकार रहीस सिंह से बात की।
रहीस सिंह के मुताबिक, "एससीओ एक आर्थिक और सैन्य मंच है, जिसमें मध्य एशिया के अहम देश शामिल हैं। इसमें आपसी व्यापार और सुरक्षा मुख्य मुद्दा हैं। नाटो इस संगठन पर लगातार आरोप लगाता है कि ये एक प्रतिद्वंदी संगठन है, जो उसे ओवरटेक करना चाहता है। हमारे शामिल होने के बाद भी वहां मुद्दे तो वही रहेंगे जो पहले रहते थे।"
पाकिस्तान के मसले पर विरोधाभास
- "एससीओ के संविधान का आर्टिकल 1 कहता है कि समिट में कोई देश द्विपक्षीय बात नहीं करेगा यानी आप वहां पाकिस्तान की बात नहीं कर सकते।"
- "जब प्रधानमंत्री मोदी चीन के वुहान से लौटकर भारत आए थे तो ये बात आई थी कि आतंकवाद से लड़ने के लिए भारत पाक के साथ युद्धाभ्यास करेगा। अब जो देश आतंकियों को सहयोगी मानता हैं, उनके साथ आतंकवाद को खत्म करने का युद्धाभ्यास किया जाए, ये कैसे संभव है?"
- "चीन लगातार पाकिस्तान को समर्थन दे रहा है, क्योंकि वो जानता है कि पाक भारत को परेशान करता है फिर भी वो सपोर्ट कर रहा है। साथ ही मसूद अजहर और हाफिज सईद पर जब भी भारत कोई प्रतिबंध लाता है तो चीन उसको वीटो कर सकता है। क्या ये माना जाए कि भारत समिट के दौरान चीन के सामने वीटो ना करने का मुद्दा रखेगा। ऐसा लगता नहीं।"
हर समिट में अब आतंकवाद ही मुद्दा
- "आतंकवाद अब सदाबहार मुद्दा हो गया है। हर समिट में आतंकवाद की बात होती है चाहे जी-20 की बात हो या ब्रिक्स की, लेकिन प्रगति नहीं होती। चीन और पाकिस्तान जैसे देशों को जो करना है वो करते हैं। हम किसी भी पाकिस्तानी आतंकी को अदालतों में सजा नहीं दिला पाए हैं, क्योंकि वो सबूतों को नहीं मानते।"
- "भारत और पाक की इतनी दुश्मनी है कि हम लगातार कई सालों से सार्क बैठक में शामिल नहीं हो रहा। लेकिन हम एससीओ में पाक के साथ बैठेंगे। अगर वो इतना बड़ा दुश्मन है तो हमें एससीओ में भी उसके साथ नहीं बैठना चाहिए।"
भारत अपने मसले साफ रखे
- "हमारे डिफेंस चैलेंज मालदीव में हैं, नेपाल में हैं, चीन-पाक इकोनॉमिक कॉरिडोर (सीपीईसी) में हैं। जहां चीन फंडिंग कर रहा है। तो हम जब द्विपक्षीय बात करें तो हमारे मुद्दे क्लियर होने चाहिए।"
- "हाल ही में वॉशिंगटन पोस्ट ने लिखा था- ‘डिप्लोमेसी विद प्रोपेगैंडा’। लेकिन डिप्लोमेसी विद प्रोपेगैंडा नहीं डिप्लोमेसी विद सब्जेक्ट होनी चाहिए, जिसमें देश का हित भी हो। लेकिन हम हर मंच पर बार बार विषय दोहराते हैं। हम विषयों का खुलासा भी नहीं करते हैं। हम उसकी समीक्षा भी नहीं करते कि उस विषय पर कितने कदम आगे बढ़ें।"
- "भारत सरकार की जवाबदेही होनी चाहिए कि जो चीन या किसी देश से जो पिछले समझौते हुए थे उनपर कुछ प्रगति हुई या नहीं। वर्ना मुद्दे हमेशा असमंजस की स्थिति में रह जाते हैं।
सीपैक और एनएसजी पर चीन का रुख
- "वन बेल्ट वन रोड सीपैक का एक फेस पार्ट है। चीन चाहता है कि भारत इससे जुड़ जाए। लेकिन भारत ने आधिकारिक तौर पर इसे चीन की साम्राज्यवादी नीति बताया है। ये बयान विदेश मंत्रालय की ओर से लिखित जारी किया गया था। साथ ही संसद में पूछे गए एक सवाल के जवाब में भी दिया गया था। यानी ऐसे में भारत चीन की इस नीति में शामिल नहीं हो सकता। अगर होता है तो इसका मतलब होगा कि भारत चीन की साम्राज्यवादी नीति में उसका साथ दे रहा है।"
- "एनएसजी (न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप) में चीन भारत का कतई समर्थन नहीं करेगा। हमारी मीडिया ने भी काफी लिखा कि दुनिया के कई देशों ने भारत का इस मामले पर समर्थन किया है। लेकिन अगर कोई एक देश भी इसमें भारत का विरोध करता है तो भारत इसमें शामिल नहीं हो सकता। दुनिया जानती है कि चीन इसमें भारत का साथ नहीं देगा।"
- "अगर भारत ने चीन से एनएसजी पर बात की है तो ये बताना जरूरी है कि उनके बीच क्या बात हुई। सिओल में एनएसजी को लेकर तब मोदी ने जिनपिंग से कहा था कि आप इस तरफ सकारात्मक कदम बढ़ाइए लेकिन जिनपिंग ने इसे गूढ़ विषय बताते हुए टाल दिया था।"
एससीओ में इस बार क्या रहेगा मकसद?
- चीन में भारत के राजदूत गौतम बंबावले के मुताबिक, "मोदी, शी जिनपिंग समेत कई नेताओं से मुलाकात करेंगे।"
- "इस बार की समिट में मुख्य मुद्दे सुरक्षा सहयोग, आतंकवाद, आर्थिक विकास के साथ सांस्कृतिक आदान-प्रदान होगा।"
- "भारत-चीन तरक्की के मुद्दे पर सहयोगी देश हैं। कई मसलों पर दोनों देशों के बीच सहमति है तो कुछ पर ही असहमति है। जहां पर दोनों देश एकराय हैं, उन मामलों पर दोनों देशों के नेता की आगे की रणनीति तय करेंगे।"
- "मई में सोची में व्लादिमीर पुतिन के साथ मोदी की अनौपचारिक मुलाकात हुई थी। चीन, रूस और भारत तीनों एससीओ के सदस्य हैं। ऐसे में ये संगठन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अहम भूमिका अदा कर सकता है।"
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