नई दिल्ली.प्रणब मुखर्जी के नागपुर में संघ मुख्यालय जाने को कांग्रेस ने आड़े हाथ लिया है। कांग्रेस नेता मनीष तिवारी ने अपने ट्वीट में प्रणब से 3 सवाल पूछे। उन्होंने कहा कि प्रणब ने राष्ट्रवाद पर बात करने के लिए संघ मुख्यालय को ही क्यों चुना? आज अचानक से संघ अच्छा कैसे हो गया? 7 जून को प्रणब संघ के दीक्षांत समारोह में शामिल हुए थे। संघ के मंच से उन्होंने राष्ट्रीयता, राष्ट्रवाद और देशभक्ति पर अपनी बात रखी। करीब 30 मिनट के भाषण के दौरान उन्होंने महात्मा गांधी, जवाहर लाल नेहरू, लोकमान्य तिलक, सुरेंद्र नाथ बैनर्जी और सरदार पटेल का जिक्र किया।
आरएसएस अच्छा कैसे हो गया: मनीष ने पूछे तीन सवाल, एक उदाहरण भी दिया
1. मनीष तिवारी ने प्रणब से पूछा, "आपने अभी तक धर्म निरपेक्ष लोगों को कोई जवाब नहीं दिया है। मैं पूछना चाहता हूं कि आपने राष्ट्रवाद पर अपनी बात रखने के लिए आरएसएस मुख्यालय को ही क्यों चुना?"
2. "आपकी पीढ़ी ने 80 और 90 के दशक में आरएसएस की सोच को लेकर चेतावनियां दी थीं। जब 1975 और फिर 1992 में आरएसएस पर प्रतिबंध लगाया था, तब आप उस वक्त सरकार का हिस्सा थे। क्या आपको नहीं लगता कि कभी गलत सोच रखने वाला संघ आज अच्छा कैसे हो गया। या फिर हम जो पहले कहते रहे वो गलत था या ये उधार लिया गया सम्मान है?"
3. "आरएसएस के कार्यक्रम में आपका शामिल होना वैचारिक पुनरुत्थान की कोशिश है या फिर राजनीति में आ रही गिरावट को दूर करना। क्या ऐसा करके क्या आप कड़वाहट दूर करना चाहते हैं? क्या आपकी कोशिश से आरएसएस को धर्मनिरपेक्ष और बहुलतावादी मान लिया जाएगा?"
- मनीष ने एक उदाहरण भी दिया, "इतिहास बताता है कि जब नाजी यूरोप में अपनी अकड़ दिखा रहे थे। चेंबरलेन (पूर्व ब्रिटिश प्रधानमंत्री) ने सोचा कि 1938 के म्यूनिख पैक्ट से उन्होंने अपने दौर में शांति को लेकर सबसे बड़ा काम किया है। कितनी गलत साबित हुई थी उनकी सोच।"
प्रणब ने अपने भाषण में भारत के स्वर्णिम इतिहास को बताया
- आरएसएस ने कहा कि प्रणब ने संघ मुख्यालय में दिए अपने भाषण के 5 हजार साल पुराने भारत के स्वर्णिम इतिहास को बताया। इसमें उन्होंने भारत की अनेकता में एकता को देश की नींव करार दिया।
- आरएसएस के प्रचार प्रमुख अरुण कुमार ने कहा, "मुखर्जी ने कहा कि हमारी व्यवस्था बदल सकती है लेकिन हमारी मूल्य बरकरार रहेंगे। उन्होंने भारत की बहुलतावादी संस्कृति को भी बताया।"
- "हम प्रणब मुखर्जी को धन्यवाद देते हैं कि वे यहां आए और देश, राष्ट्रवाद और देशभक्ति की बात की।"
प्रणब ने भाषण में कहा- राष्ट्रवाद की बात कहने आया हूं
- प्रणब ने कहा, ''मैं यहां राष्ट्र, राष्ट्रवाद और राष्ट्रीयता पर अपनी बात साझा करने आया हूं। तीनों को अलग-अलग रूप में देखना मुश्किल है। देश यानी एक बड़ा समूह जो एक क्षेत्र में समान भाषाओं और संस्कृति को साझा करता है। राष्ट्रीयता देश के प्रति समर्पण और आदर का नाम है।’’
- ‘‘यूरोप के मुकाबले भारत में राष्ट्रवाद का सिद्धांत वसुधैव कुटुंबकम से आया है। हम सभी को परिवार के रूप में देखते हैं। हमारी राष्ट्रीय पहचान जुड़ाव से उपजी है। ईसा पूर्व चौथी शताब्दी में महाजनपदों के नायक चंद्रगुप्त मौर्य थे। 550 ईसवीं तक गुप्तों का शासन खत्म हो गया। कई सौ सालों बाद मुस्लिम शासक आए। बाद में देश पर ईस्ट इंडिया कंपनी ने 1757 में प्लासी की लड़ाई जीतकर राज किया।’’
- ‘‘1895 में कांग्रेस के सुरेंद्रनाथ बैनर्जी ने अपने भाषण में राष्ट्रवाद का जिक्र किया था। महान देशभक्त बाल गंगाधर तिलक ने कहा था कि स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूंगा।’’
- ''हमारी राष्ट्रीयता को रूढ़वादिता, धर्म, क्षेत्र, घृणा और असहिष्णुता के तौर पर परिभाषित करने का किसी भी तरह का प्रयास हमारी पहचान को धुंधला कर देगा। हम सहनशीलता, सम्मान और अनेकता से अपनी शक्ति प्राप्त करते हैं और अपनी विविधता का उत्सव मनाते हैं। हमारे लिए लोकतंत्र उपहार नहीं। बल्कि एक पवित्र काम है। राष्ट्रवाद किसी धर्म, जाति से नहीं बंधा।’’
- ‘‘50 साल के सार्वजनिक जीवन के कुछ सार साझा करना चाहता हूं। देश के मूल विचार में बहुसंख्यकवाद और सहिष्णुता है। ये हमारी समग्र संस्कृति है जो कहती है कि एक भाषा, एक संस्कृति नहीं, बल्कि भारत विविधता में है। 1.3 अरब लोग 122 भाषाएं और 1600 बोलियां बोलते हैं। 7 मुख्य धर्म हैं। लेकिन तथ्य, संविधान और पहचान एक ही है- भारतीय।
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