नई दिल्ली. शहर की अर्पिता बंसल अपनी दोस्तों के साथ महिला सशक्तिकरण को लेकर काम करने वाले संस्थानों की अलग-अलग राज्यों में होने वाली सेमिनार में हिस्सा लेती थीं। एक सेमिनार में उन्हें पता चला कि झारखंड के लाल गुटवा गांव में इस कदर गरीबी है कि लोगों को खाने के लाले हैं। भूखे लोग चंद पैसों की खातिर बेटियों तक को बेचने के लिए मजबूर हैं। एक ही लड़की को कई-कई बार खरीदा और बेचा जाता है। ये बातें सुनकर अर्पिता विचलित हो गईं। उन्होंने इन बेटियों को बचाने का जिम्मा उठा लिया और गांव को गोद ले लिया और मानव तस्करी के खिलाफ अभियान छेड़ दिया। उन्होंने यहां पढ़ाई, नौकरी और शौचालय आदि बनाने का भी इंतजाम किया।
ऐसे की शुरुआत...पहले ह्यूमन ट्रैफिकिंग पर रिसर्च की, फिर छेड़ दिया अभियान
अर्पिता महिला सशक्तिकरण को लेकर लखनऊ में एक सेमिनार में हिस्सा लेने पहुंची थीं। इसमें उन्होंने जब पैसों की खातिर बेटियां बेचे जाने की बात सुनी तो उसी वक्त ठान लिया कि उन्हें इसके लिए कुछ करना है। उन्होंने दिल्ली आकर ह्यूमन ट्रैफिकिंग को लेकर रिसर्च शुरू की। छह माह में उसकी रिसर्च पूरी हुई। इसमें सामने आया कि देश में ओडिसा, झारखंड, बिहार, पश्चिम बंगाल सहित कई राज्यों से बच्चियों को अपहरण कर, काम दिलाने के बहाने या फिर उनके मां-बाप की गरीबी का फायदा उठाकर खरीद कर लाया जाता है और फिर बेच दिया जाता है।
अर्पिता को रिसर्च के दौरान पता चला कि देश में सबसे ज्यादा लड़कियों की ट्रैफिकिंग झारखंड से की जाती है। ऐसे में उन्होंने झारखंड से ही अपने अभियान की शुरुआत की और पहुंच गईं लाल गुटवा गांव।
ऐसे बढ़ाए कदम...सबसे पहले वहां स्वास्थ्य शिविर लगवाकर लोगों की जांच कराई
लाल गुटवा गांव पहुंचकर अर्पिता ने पाया कि गांव में न तो शौचालय है, न पीने का पानी और न कोई अस्पताल। जबकि गांव में बड़ी संख्या में लोग बीमार थे। ऐसे में अर्पिता रांची पहुंचीं और डॉक्टरों की टीम लाकर स्वास्थ्य शिविर लगाए। इन शिविरों में बड़ी संख्या में लोगों ने हिस्सा लिया। जहां उनके स्वास्थ्य की जांच के साथ ही उनका इलाज भी शुरू हुआ। उन्होंने इस गांव को गोद लेकर ग्रामीणों के जीवन स्तर में सुधार का संकल्प लिया। अर्पिता ने गांव में सार्वजनिक शौचालयों के निर्माण के लिए सरकारी प्रक्रिया पूरी कर ली है। जल्द ही उनके निर्माण की प्रक्रिया शुरू की जाएगी।
काम में मदद के लिए उन्होंने लाल गुटवा गांव में अपनी एक टीम भी बना ली है। इस टीम में रांची के सेंट जेवियर्स कॉलेज के वे बच्चे शामिल हैं, जो मानव तस्करी पर रिसर्च कर रहे हैं।
फिर तस्करों पर धावा...उस जगह तक पहुंच गईं, जहां से लड़कियों की तस्करी होती थी
अर्पिता अब उस जगह तक पहुंच गई थीं, जहां से लड़कियों की तस्करी की जाती थी। उन्होंने झारखंड पुलिस की मदद से लाल गुटवा गांव में दो लोगों को गिरफ्तार करवाया। जो वहां पैसों के खातिर बेटियों की तस्करी करते थे। अब तक वह दिल्ली में अपने दोस्तों व इलाके में मानव तस्करी रोकने के लिए काम करने वाले लोगों की नजरों में आ गई थीं। ऐसे में एक बार तीन दिन लगातार एक महिला उन्हें फोन करती और काट देती। चौथे दिन उस महिला ने उन्हें बताया कि उनके घर के सामने एक महिला को बंधक बनाकर रखा गया है। इसके बाद वह उस पते पर पहुंची। तो ये बात सही निकली।
उसके बाद अर्पिता ने पश्चिम विहार थाना के तत्कालीन एसएचओ अरविंद शर्मा की मदद से उस महिला को मुक्त कराया और नारी केंद्र पहुंचाया।
अगला टारगेट ये...झारखंड में बनाना है नारी केंद्र ताकि कोई दर-दर न भटके
अपने इस अभियान को लेकर अर्पिता बंसल बताती हैं कि देश में गरीबी की वजह से परिजन ही कई बार अपनी बेटियों का सौदा कर देते हैं। इतना ही नहीं अगर पुलिस ऐसी युवतियों को रेस्क्यू कराने के बाद उन्हें घर तक पहुंचा भी देती है तो परिजन उन्हें घर में नहीं रखते। ऐसे में ये लड़कियां या तो दर-दर की ठोकरें खाती हैं या खुदकुशी तक करने के लिए मजबूर हो जाती हैं। झारखंड के ज्यादातर इलाकों में ऐसे मामले सामने आए हैं। ऐसे में वह अब लाल गुटवा गांव में नारी केंद्र का निर्माण करवाना चाहती हैं। इससे अगर रेस्क्यू हुई युवतियों को उनके परिजन घर में न रखें तो उन्हें इस नारी केंद्र में रखा जा सके। इन केंद्रों में न केवल उनके रहने का अच्छा इंतजाम होगा बल्कि उन्हें प्रशिक्षण देकर अपने पैरों पर खड़े होने के काबिल भी बनाया जा सकेगा।
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