मल्टीमीडिया डेस्क। नवग्रहों में शनि को न्यायाधिपति माना गया है। ज्योतिष में शनि की स्थिति व दृष्टि बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है। शनि की तीन दृष्टियां होती हैं- तृतीय, सप्तम, दशम। शनि की दृष्टि अत्यन्त क्रूर मानी गई है। शनि की तीसरी दृष्टि विच्छेद करती है, सातवीं दृष्टि पीड़ित करती है और दसवीं दृष्टि मारक मानी गई है। अत: शनि जिस भी भाव या ग्रह पर अपनी दृष्टि डालते हैं उसकी हानि करते हैं। जानते हैं ऐसा क्यों है...
युवावस्था में उनके पिताश्री ने उनका विवाह चित्ररथ की कन्या से करवा दिया। उनकी पत्नी सती, साध्वी एवं परम तेजस्विनी थी। एक रात्रि वह ऋतु स्नान कर पुत्र प्राप्ति की इच्छा लिए शनिदेव के पास पहुंची, पर देवता तो भगवान के ध्यान में लीन थे। उनकी पत्नी प्रतीक्षा करके थक गई। उनका ऋतकाल निष्फल हो गया। इसलिए उन्होंने क्रुद्ध होकर शनिदेव को श्राप दे दिया कि आज से जिसे तुम देखोगे, वह नष्ट हो जाएगा।
ध्यान टूटने पर शनिदेव ने अपनी पत्नी को मनाया। उनकी धर्मपत्नी को अपनी भूल पर पश्चाताप हुआ, किंतु श्राप के प्रतिकार की शक्ति उनमें नहीं थी। तभी से शनिदेव अपना सिर नीचा करके रहने लगे, क्योंकि वे नहीं चाहते थे कि किसी का अनिष्ट हो।
शनि के कारण ही गणेशजी बने गजानन
स्कंदपुराण के अनुसार, देवों में प्रथम पूज्य गणेश के सिर कटने का कारण भगवान शिव को बताया गया है। मगर, ब्रह्मवैवर्तपुराण के अनुसार, गणेश के सिर कटने का कारण शनि को बताया गया है। इसके अनुसार माता पार्वती ने पुत्र प्राप्ति के लिए ‘पुण्यक’ नामक व्रत किया था और उनकी ये इच्छा पूरी करने के लिए भगवान विष्णु ने बालक रूप में उनकी कोख से जन्म लिया।
कथा के अनुसार, पूरा देवलोक भगवान शिव और पार्वती को बधाई देने और बालक को आशीर्वाद देने शिवलोक आ गया। अंत में सभी बालक गणेश से मिकलर और उसे आशीर्वाद देकर जाने लगे। मगर, शनिदेव ने बालक गणेश को न तो देखा और न ही उनके पास गए।
पार्वती ने इस पर शनिदेव को टोका। शनिदेव के न कहने पर जो पार्वती को यह बात अपने पुत्र का अपमान लगी और वो रुष्ट हो गईं। दरअसल, पार्वतीजी को श्राप की यह कहानी पता नहीं थी और उन्हें लगा कि शनि उनके पुत्र का अपमान कर रहे हैं।
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इसलिए उन्होंने शनि से कहा कि सबकुछ ठीक होगा, उनके देखने पर कुछ अमंगल नहीं होगा। इनकार की अवस्था में पार्वती का रुष्ट भाव समझकर शनिदेव ने बालक को देख लिया। मगर, शनि-दृष्टि पड़ते ही नवजात बालक का सिर धड़ से अलग हो गया। माता पार्वती अपने बालक की यह दशा देख मूर्छित हो गईं।
तब माता पार्वती को इस आघात से बाहर निकालने के मकसद से भगवान विष्णु अपने वाहन गरुड़ पर सवार हो बालक के लिए सिर की खोज में निकले और हाथी का सिर लेकर आए। उसे बालक के सिर पर लगाकर उसके प्राण वापस किए। इस कारण गणेश को गजानन भी कहा जाता है।
वैदिक मंत्र-
ॐ शं नो देवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये। शं योरभि स्त्रवन्तु न:।
पौराणिक मंत्र-
नीलांजनसमाभासं रविपुत्र यमाग्रजम, छायामार्तंड सम्भूतं नं नमामि शनैश्चरम।
बीज मंत्र-
ॐ प्रां प्रीं प्रौं स: शनैश्चराय नम: तथा
सामान्य मंत्र-
ॐ शं शनैश्चराय नम: है।
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