कांग्रेस के हाथ से कर्नाटक जैसा बड़ा राज्य फिसल गया। मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद कांग्रेस 14 से घटकर 3 राज्यों में सिमट गई। भाजपा-एनडीए चार साल में 8 से बढ़कर 21 राज्यों तक पहुंच गई। मोदी ने एग्रेशन के साथ कर्नाटक का चुनाव लड़ा। राहुल गांधीसिर्फ गुस्सा दिखा पाए। इस चुनाव नतीजों के मायनों पर पढ़ें, नेशनल एडिटर नवनीत गुर्जर का विश्लेषण...
1) कर्नाटक में कांग्रेस क्यों हारी?
एंटी इन्कम्बेन्सी।
2) वो तो गुजरात में भी तो थी?
इसीलिए तो वहां भाजपा मुश्किल से जीत पाई थी। लोग इसे राहुल गांधी का परफॉर्मेंस समझ रहे थे, लेकिन ऐसा था नहीं।
3) कर्नाटक में और क्या वजह रही?
एग्रेशन। मोदी जो बोलते हैं, वह एग्रेशन है। राहुल जो बोलते हैं, वह गुस्सा। लोग गुस्सा नहीं, एग्रेशन पसंद करते हैं। मोदी के इस एग्रेशन को पॉपुलर करने में मनमोहन सिंह का बड़ा हाथ रहा। वे दस साल तक अजीब चुप्पी साधे रहे। इसीलिए ज्यादा बोलने वाले मोदी प्रधानमंत्री के रूप में ज्यादा पसंद किए जाने लगे।
4) इसका असर?
लोकसभा चुनाव में तो कर्नाटक की जीत का कोई खास असर नहीं होगा। हां! जहां जिस पार्टी की सरकार होती है, वहां उसे अमूमन लोकसभा सीटें भी ज्यादा मिल जाती हैं। लेकिन राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में जहां अधिकतम सीटें भाजपा के पास हैं, वहां नुकसान तो तय है। भाजपा इस नुकसान को कितना कम कर पाती है, यही उसकी काबिलियत होगी।
5) चार राज्यों के चुनाव पर इसका असर?
इसका असर चार राज्यों के चुनाव पर एकदम साफ नहीं देखा जाता है। मिजोरम में कांग्रेस रहे या जाए, काेई फर्क नहीं पड़ता। भाजपा को तो बिल्कुल नहीं। हां! मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में चुनौती भाजपा के लिए है। मप्र, छत्तीसगढ़ में भाजपा जैसे-तैसे जीत भी सकती है क्योंकि यहां कांग्रेस की ताकत बिखरी हुई है। मप्र में कोई भी बड़ा कांग्रेसी एकदूसरे के साथ नहीं है। छत्तीसगढ़ में जोगी के अलग होने से कांग्रेस कमजोर हो गई है। राजस्थान में भाजपा का जीतना मुश्किल है। भाजपा अगर गहलोत और पायलट में इतना बैर करवा दे कि सीटों का बंटवारा ठीक नहीं हो पाए तो ही बात बनेगी, वर्ना नहीं।
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