रायपुर। छत्तीसगढ़ के आदिवासी क्षेत्रों विशेष रुप से जशुपर में आई पत्थलगड़ी की आंधी में एक पुस्तक 'संविधान सबके लिए' का जिक्र आ रहा है। कथित तौर पर आदिवासी इस पुस्तक में लिखी बातों को ही पत्थलगड़ी पर लिख रहे हैं।
आदिवासी मानव अधिकारों के लिए काम करने वाले व विधिक जानकार बीके मनीष ने इस पुस्तक को लिखा है। उनका कहना है कि इस पुस्तक में ऐसा कुछ नहीं है, उल्टे सर्व आदिवासी समाज ने पत्थलगड़ी के विरोध के कारण ही उन्हें समाज के विधिक सलाहकार के पद से हटा दिया है।
पूर्व आईएएस और सर्व आदिवासी समाज के अध्यक्ष बीपीएस नेताम कहा कि पत्थलगड़ी से उनके संगठन का कोई लेनादेना नहीं है। पत्थलगड़ी अभियान चला रहे लोग दूसरे हैं, उनके संगठन का नाम दूसरा है। उन्होंने कहा कि मनीष को पत्थलगड़ी के कारण नहीं हटाया गया है बल्कि इसलिए हटाया गया है, क्योंकि वे जिलों में जा-जाकर समस्या निवारण शिविर लगा रहे थे और लोगों से पैसे ले रहे थे। नेताम ने कहा कि हमारे संगठन में कई सेवानिवृत्त जज भी हैं, ऐसे में अब उनकी जरुरत नहीं है।
पत्थलगड़ी पर लिखी एक-एक बात गलत
आदिवासी मानव अधिकारों के लिए काम करने वाले व विधिक जानकार मनीष संविधान का हवाला देते हुए कहते हैं कि पत्थलगड़ी की पत्थर पर लिखी हर एक बात गलत है। पत्थलगड़ी मामले में अपनी पुस्तक 'संविधान सबके के लिए' को घसीटे जाने का विरोध करते हुए उन्होंने कहा कि इस पुस्तक में ऐसा कुछ नहीं है। कुछ लोग जानबूूझकर भ्रम फैला रहे हैं।
राजनीतिक प्रयोग की परंपरा नहीं
मनीष बताते हैं कि पत्थर गाड़ना कुछ आदिवासी समुदायों की 'सांस्कृतिक परंपरा' रही है, कोई भी आदिवासी एंथ्रोपोलोजिस्ट आपको बता देगा कि इसके राजनीतिक प्रयोग की कोई परंपरा नहीं रही है। यह वैसा ही है जैसे लोकमान्य तिलक ने गणपति पूजा को सार्वजनिक पंडाल में आयोजित करके अंग्रेजों की सेंसरशिप का तोड़ निकाला था। आदिवासी हमेशा से संगठित रहे हैं, फिर भी वे लुटते रहे। झूठ, बेईमानी और चालाकी से आदिवासी संघर्ष को आखिर कब तक चलाएंगे, अब तो यह संघर्ष सच से चले, सच पे बढ़े।
जागरुक करने सक्रिय हुए युवा
आदिवासी युवाओं का एक बड़ा वर्ग पत्थलगड़ी को लेकर समाज को जागरुक करने के अभियान में जुट गया है। इनमें आदिवासी छात्र संगठन के योगेश सिंह ठाकुर भी शामिल हैं। ठाकुर का कहना है कि कुछ लोग अपनी राजनीतिक रोटी सेंकने के लिए आदिवासियों के बीच भ्रम फैला रहे हैं।
उन्होंने कहा कि ग्रामसभा के पास फिलहाल कोई अधिकार नहीं है। ग्रामसभा को अधिकार दिए जाने का हम समर्थन करते हैं। उन्होंने बताया कि सोशल मीडिया समेत अन्य माध्यमों से हम अपने लोगों को जागरुक करने की कोशिश कर रहे हैं, क्योंकि जो चल रहा है, उससे आदिवासियों का कोई फायदा नहीं होगा।
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