वृद्धावस्था पर हमारी फिल्म इंडस्ट्री में कई सारी फिल्में बन चुकी हैं। घर के सबसे बुजुर्ग किस तरह अपनी जगह तलाशते हैं इस दृष्टिकोण को भी कई फिल्मों में दर्शाया गया है। मगर निर्देशक उमेश शुक्ला की फिल्म ‘102 नॉट आउट’ एक अलग ही आयाम को दर्शाती है।
यह कहानी है मुंबई के विले पार्ले में रह रहे 102 साल के दत्तात्रेय बखारिया (अमिताभ बच्चन) और 75 साल के उनके बेटे बाबूलाल बखारिया (ऋषि कपूर) की। दोनों अपनी ज़िंदगी हंसी-खुशी बसर कर रहे हैं। फर्क है तो सिर्फ इतना कि दत्तात्रेय 102 साल के होने के बावजूद अपनी ज़िंदगी को भरपूर ढंग से जी रहे हैं जबकि उनका 75 वर्षीय बेटा बाबूलाल अपने बुढ़ापे को ओढ़कर जी रहा है!
ऐसे में दत्तात्रेय अपनी पूरी कोशिश करते हैं कि उनका बेटा बाबूलाल मानसिक रूप से बुढ़ापे से बाहर आ जाए। इसके लिए वह कुछ शर्ते रखते हैं और जिसे अगर पूरा ना किया गया तो बाबूलाल को वृद्धाश्रम जाना होगा। ऐसे में जो सिचुएशंस पैदा होती हैं, इसी धागे को पकड़कर ‘102 नॉट आउट’ को बुना गया है! लोकप्रिय गुजराती नाटक पर आधारित यह फिल्म बेहद ही खूबसूरती से बुढ़ापे में आए एकाकीपन को दर्शाती है और साथ ही यह भी सिखाती है कि ज़िंदगी में किसी के होने या ना होने से हमें अपनी खुशियों से समझौता नहीं करना चाहिए।
निर्देशक उमेश शुक्ला ने फिल्म को कुछ इस तरह से गढ़ा है जो आपको कई बार ठहाके लगाने पर मजबूर करती है, तो कहीं-कहीं पर गुदगुदाती है तो कहीं आंखों से बरबस ही आंसू चुरा ले जाती है! इंटरवल के पहले स्क्रीनप्ले पर थोड़ा और काम किया जाता तो और बेहतर होता।
अभिनय की बात की जाए तो ऋषि कपूर और अमिताभ बच्चन जैसे दिग्गज जब मैदान में उतरते हैं तो उनके चौके-छक्के देख आंखें चौंधिया जाती हैं। पूरी फिल्म में कुल मिलाकर तीन अभिनेता हैं और तीनों ने ही फिल्म को पूरी तरह से बांधकर रखा है।
ऋषि कपूर का एक अलग ही अंदाज़ आपको इस फिल्म में देखने को मिलेगा। एक मजबूर पिता के तौर पर कई बार वह आपको रुलाने में कामयाब हो जाते हैं। दूसरी ओर अमिताभ बच्चन आपको गुदगुदाते हैं और ठहाके लगाने पर मजबूर कर देते हैं! इन दोनों के बीच पुल बनकर खड़े जिमित भी अपनी सशक्त उपस्तिथि दर्ज़ कराते हैं! कुल मिलाकर ‘102 नॉट आउट’ एक पारिवारिक मनोरंजक फिल्म है जिसे आप देख सकते हैं।
-पराग छापेकर
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