रायपुर। मंगलवार से शुरू हिन्दू पंचांग का ज्येष्ठ महीना इस साल दो बार पड़ रहा है। हिन्दू धर्म ग्रंथों के अनुसार जब किसी वर्ष कोई महीना दो बार पड़ता है तो बीच के दिनों को पवित्र पुरुषोत्तम मास के नाम से जाना जाता है। पुरुषोत्तम मास में भगवान की कथा सुनने, दान-पुण्य करने और तीर्थ क्षेत्रों की यात्रा करने को विशेष महत्व दिया गया है।
तीसरे साल बनता है पुरुषोत्तम मास का संयोग
हिन्दू पंचांग के अनुसार जब तिथियों में घट-बढ़ होती है, तब कोई महीना 30 का और कोई 28 या 29 दिन का होता है। इस तरह तीन साल में लगभग 30 दिनों की बढ़ोतरी होती है। इस वजह से तीन साल में एक बार अधिकमास (पुरुषोत्तम मास) मनाया जाता है।
लुनार (चन्द्र) पद्धति से हिन्दू पंचांग की गणना
ज्योतिषी डॉ.दत्तात्रेय होस्केरे के अनुसार हिन्दू पंचांग में दिनों की गणना लुनार पद्धति से और अंग्रेजी कैलेण्डर में सोलर पद्धति से की जाती है। हिन्दू पंचांग की गणना में दो पखवाड़े होते हैं। एक कृष्ण पक्ष और दूसरा शुक्ल पक्ष। हिन्दू पंचांग अर्थात लुनार पद्धति के कैलेण्डर में एक माह 29.5 दिन का होता है। कई बार ऐसा संयोग बनता है कि कोई तिथि दो दिन तक मनाई जाती है और किसी दिन दो तिथि एक ही दिन मनाई जाती है।
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इसके विपरीत सोलर पद्धति अर्थात अंग्रेजी कैलेण्डर में कोई माह 30 या 31 दिन का होता है। लुनार पद्धति के कैलेण्डर में एक साल में 354 दिन पड़ते हैं और सोलर कैलेण्डर में 365 दिन पड़ते हैं। दोनों पद्धतियों के बीच एक साल में 11 दिनों का अंतर आता है। इस तरह तीन साल में एक माह बढ़ जाता है। इसे ही पुरुषोत्तम मास के रूप में मनाया जाता है।
16 मई से 13 जून तक मनाएंगे पुरुषोत्तम मास
ज्येष्ठ महीना एक मई से शुरू होकर 28 जून तक रहेगा। ज्येष्ठ महीना शुरू होने के 15 दिनों बाद 16 मई से लेकर 13 जून तक की अवधि को पुरुषोत्तम मास (मल मास) के रूप में मनाया जाएगा। इस दौरान भगवान विष्णु की पूजा, विष्णु सहस्त्रनाम, श्रीमद्भागवत कथा का श्रवण करना, दान-पुण्य करना, ब्रज क्षेत्र की तीर्थ यात्रा करना अति पुण्यदायी माना गया है। पुरुषोत्तम माह शुरू होने के 15 दिन पहले और पुरुषोत्तम माह खन्म होने के बाद के 15 दिनों को साधारण ज्येष्ठ के रूप में मनाया जाएगा। इस तरह देखा जाए तो एक मई से 15 मई तक और फिर इसके बाद 14 जून से 28 जून तक की अवधि को साधारण ज्येष्ठ महीना के रूप में मनाया जाएगा।
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पुरुषोत्तम मास में क्या करें
- भूमि पर सोएं।
- एक समय सात्विक भोजन करें।
- श्रीकृष्ण, भगवान विष्णु के मंत्रों का जाप करें।
- पूरे माह व्रत का उद्यापन कर दान-पुण्य करें।
ये कार्य न करें
- विवाह संस्कार, मुंडन संस्कार, यज्ञोपवित संस्कार, वाहन खरीदी, नामकरण संस्कार, गृह प्रवेश आदि शुभ संस्कार न करें।
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