कांकेर। रविवार 22 अप्रैल को गढ़चिरौली के कसनासूर में हुए पुलिस नक्सली मुठभेड़ के बाद अब भी इंद्रावती नदी के आसपास जवानों की फौज सर्च पर है। नदी से अभी भी शव मिलने की उम्मीद या घायल साथियों की तलाश में घूम रहे नक्सलियों को अपने शिकंजे में लेने का कोई मौका महाराष्ट्र पुलिस के सी 60 के जवान हाथ से नहीं जाने देना चाहते।
गुरुवार 26 अप्रैल को भी इंद्रावती नदी में गोताखोर नक्सलियों के शवों और उनके हथियारों की तलाश करते रहे। नदी से अब तक 17 शव निकाले जा चुके हैं। इधर गढ़चिरौली के पुलिस अधीक्षक डॉ. अभिनव देशमुख को इस सफलता पर सभी तरफ से शाबासी मिल रही है।
महाराष्ट्र पुलिस के डीजी सतीश माथुर ने एलान किया है कि गढ़चिरौली में नक्सलवादियों के कमर तोड़ने वाले डॉ. देशमुख को इस वर्ष का पुलिस महासंचालक पदक देकर सम्मानित किया जाएगा।
क्या है सी 60
गढ़चिरौली में नक्सलियों के तीन दलम की कमर तोड़ने वाले ये जवान सी 60 के हैं। जिसका गठन 1992 में गढ़चिरौली में किया गया था। स्थानीय लोगों की भर्ती ज्यादा करते हुए नक्सलियों से सताए हुए ऐसे लोगों को भर्ती कर हथियारों का प्रशिक्षण दिया गया, जो गोरिल्ला युद्ध के साथ-साथ स्थानीय भाषाओं और भौगोलिक परिस्थितियों के भी जानकार हैं।
सी 60 कंपनी की अगुवाई में ही 2014, 15 और 16 में नक्सली मोर्चे पर कई सफलताएं मिली। अलग-अलग प्रदेशों से पहुंचे नक्सली मोर्चे के वरिष्ठ पुलिस अफसरों ने भी महाराष्ट्र पुलिस के इस रणनीति को अपनाने और समझने का प्रयास किया।
कमांडर सांईनाथ और नंदू के परिजन पहुंचे शव लेन
नक्सली कमांडर सांईनाथ और नंदू के परिजन अपने-अपने बेटों का शव लेने गढ़चिरौली पुलिस थाने तक पहुंच चुके हैं। नंदू के पिता बूधा आत्राम और सांईनाथ की बहन सर्वजणा आत्राम शवों को अंतिम संस्कार के लिए घर ले जाना चाहते है।
गौरतलब है कि सांईनाथ की बहन सर्वजणा ग्राम पंचायत वैडमपल्ली की सरपंच हैं। स्थानीय मीडियाकर्मियों ने नक्सलियों के परिजनों से प्रतिक्रिया लेनी चाही तो उन्होंने कहा कि उसने गलत किया लेकिन हम उनके शवों को लावारिस नहीं छोड़ सकते। हमने स्वयं ही कई बार समझाने का प्रयास किया था मगर जब तक ये लोग अपराध के दुनिया में दूर तक जा चुके थे।
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