मल्टीमीडिया डेस्क। वैशाख शुक्ल अष्टमी को देवी बगलामुखी का अवतरण दिवस कहा जाता है, जिस कारण इसे मां बगलामुखी जयंती के रूप में मनाया जाता है। इस वर्ष 2018 में यह जयंती 23 अप्रैल, को मनाई जाएगी।
शास्त्रों के अनुसार माता बगलामुखी ने इसी ‘राजी’ में रात्रि के समय प्रकट होकर विष्णु को इच्छित वर दिया और ब्रह्मा द्वारा रचित सृष्टि के विनाश को रोका। बगलामुखी साधना की सिद्धि के लिए ‘वीर राजी’ विशेष महत्वपूर्ण है, सूर्य मकर राशिस्थ हो, मंगलवार को चतुर्दशी हो उसे ‘वीर राजी’ के नाम से जाना जाता है।
मां बगलामुखी को पीले रंग से विशेष प्रेम है, जिसके कारण इनको मां पीताम्बरा भी कहा जाता है। माता बगलामुखी का रंग चमकते हुए स्वर्ण के समान है इसलिए माता की पूजा-अर्चना के लिए पीले रंग की सामग्री, फल-फूल आदि पीले रंग के ही होने चाहिएं और स्वयं साधक भी पीले रंग के वस्त्र धारण करने चाहिए।
ऐसे करें पूजन
घर की उत्तर दिशा में पीले वस्त्र पर देवी बगलामुखी का चित्र स्थापित करके देवी का विधिवत पूजन करें। घी में हल्दी मिलाकर दीपक करें, चंदन से धूप करें, हल्दी चढ़ाएं, दूध-शहद का भोग लगाएं, पीले फूल चढ़ाएं, बेसन के लड्डू का भोग लगाकर 108 बार विशिष्ट मंत्र का जाप करें। इसके बाद भोग गरीबों में बाटें।
पूजन मंत्र: मंत्र: ॐ ह्लीँ बगलामुखी सर्वदुष्टानाम् वाचम् मुखम् पदम् स्तंभय जिह्ववाम् कीलय बुद्धि विनाशय ह्लीँ फट स्वाहा।
पूजन मुहूर्त: प्रातः 09:30 से प्रातः 10:30 तक।
हर प्रकार की समस्या में देती हैं विजय
देवी बगलामुखी दसमहाविद्या में आठवीं महाविद्या हैं। संपूर्ण ब्रह्मांड की शक्ति का समावेश उनमें है। माता बगलामुखी की उपासना शत्रुनाश, वाकसिद्धि, वाद विवाद में विजय के लिए की जाती है। इनकी उपासना से शत्रुओं का नाश होता है तथा भक्त का जीवन हर प्रकार की बाधा से मुक्त हो जाता है। बगला शब्द संस्कृत भाषा के वल्गा का अपभ्रंश है, जिसका अर्थ दुलहन होता है। अत: मां के अलौकिक सौंदर्य और स्तंभन शक्ति के कारण ही इन्हें यह नाम प्राप्त है।
देवी रत्नजडित सिंहासन पर विराजती होती हैं। रत्नमय रथ पर आरूढ़ हो शत्रुओं का नाश करती हैं। देवी के भक्त को तीनो लोकों में कोई नहीं हरा सकता है। उनकी पूजा करने वाला जातक जीवन के हर क्षेत्र में सफलता पाता है। पीले फूल और नारियल चढ़ाने से देवी प्रसन्न होतीं हैं। देवी को पीली हल्दी के ढेर पर दीप-दान करें, देवी की मूर्ति पर पीला वस्त्र चढ़ाने से बड़ी से बड़ी बाधा भी नष्ट होती है। बगलामुखी देवी के मन्त्रों से दुखों का नाश होता है।
महाभारत काल से है संबंध
विश्व के सर्वाधिक प्राचीन बगलामुखी मंदिर नलखेड़ा (मध्य प्रदेश) में स्थित है। यह शमशान क्षेत्र में स्थित हैं। कहा जाता है कि इसकी स्थापना महाभारत युद्ध के 12 वें दिन स्वयं धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान श्री कृष्ण के निर्देशानुसार की थी। देवी बगलामुखी तंत्र की देवी है।
भारत में मां बगलामुखी के तीन ही प्रमुख ऐतिहासिक मंदिर माने गए हैं जो क्रमश: दतिया (मध्यप्रदेश), कांगड़ा (हिमाचल) तथा नलखेड़ा में हैं। तंत्र साधना में सिद्धि प्राप्त करने के लिए पहले देवी बगलामुखी को प्रसन्न करना पड़ता है।
अगर सिद्धि प्राप्त हो जाए तो उसे तामसिक कार्यों अथवा अपने निजी स्वार्थ में प्रयोग नहीं करना चाहिए। इस शक्ति का प्रयोग देश और विश्व की मंगल कामना, धर्म की रक्षा और मानव कल्याण के लिए प्रयोग करना चाहिए।
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