मल्टीमीडिया डेस्क। जगद्गुरु आदि शंकराचार्य अलौकिक प्रतिभा, प्रकाण्ड पांडित्य, प्रचंड कर्मशीलता के धनी थे। आज से करीब ढाई हजार वर्ष पहले वैशाख शुक्ल पंचमी को उनका अवतरण हुआ था। हिंदू धर्म की ध्वजा को देश के चारों कोनों में फहराने वाले और भगवान शिव के अवतार आदि शंकराचार्य की जयंती इस बार 20 अप्रैल को मनाई जाएगी।
असाधारण प्रतिभा के धनी आद्य जगद्गुरु शंकराचार्य ने शैशव काल में ही संकेत दे दिया कि वे सामान्य बालक नहीं है। जब वह मात्र तीन साल के थे तब पिता का देहांत हो गया। तीन साल की उम्र में ही उन्हें मलयालम का ज्ञान प्राप्त कर लिया था। सात वर्ष के हुए तो वेदों के विद्वान, 12 वर्ष में सर्वशास्त्र पारंगत और 16 वर्ष में ब्रह्मसूत्र- भाष्य रच दिया।
16 वर्ष की अवस्था में 100 से भी अधिक ग्रंथों की रचना कर चुके थे। बाद में माता की आज्ञा से वैराग्य धारण कर लिया था। मात्र 32 साल की उम्र में केदाननाथ में उनकी मृत्यु हो गई। लुप्त हो रहे सनातन धर्म की पुनर्स्थापना, तीन बार भारत भ्रमण, शास्त्रार्थ दिग्विजय, भारत के चारों कोनों में चार मठों की स्थापना, चारों कुंभों की व्यवस्था, वेदांत दर्शन के शुद्धाद्वैत संप्रदाय के शाश्वत जागरण के लिए दशनामी नागा संन्यासी अखाड़ों की स्थापना, पंचदेव पूजा प्रतिपादन को उन्हीं ने शुरू किया था।
शंकराचार्य के अनमोल वचन
सबसे उत्तम तीर्थ आपका मन है, जो विशेष रूप से शुद्ध किया गया हो।
यह मोह से भरा संसार सपने की तरह है। यह तब तक ही होता है, जब तक व्यक्ति अज्ञान रूपी निद्रा में सोया होता है।
सत्य की परिभाषा है, जो सदा था, सदा है और सदा रहेगा।
जैसे दीपक को चमकाने के लिए दूसरे दीपक की जरूरत नहीं होती। वैसे ही आत्मा भी स्वयं ज्ञान का स्वरूप है, उसे और किसी के ज्ञान की जरूरत नहीं होती।
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