Saturday, 24th May 2025

सर्जिकल स्ट्राइक पर बोले पीएम, ये मोदी है... उसी भाषा में जवाब देना जानता है

Thu, Apr 19, 2018 6:44 PM

लंदन.प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुधवार को लंदन स्थित वेस्टमिन्स्टर हॉल में 'भारत की बात, सबके साथ' नाम के कार्यक्रम में हिस्सा लिया। यहां उन्होंने सवाल-जवाब के अंदाज में प्रसून जोशी के साथ भारतीय समुदाय को संबोधित किया। मोदी ने भारत के लोगों का शुक्रिया अदा करते हुए कहा कि भारत के लोकतंत्र की वजह से एक चायवाला रॉयल पैलेस तक पहुंचा है। उन्होंने कहा कि भारत में जो चाय बेचता था वो नरेंद्र मोदी था, और जो लंदन आया है वो सवा सौ करोड़ देशवासियों का सेवक है। इसके अलावा मोदी ने पहली बार विदेश में सर्जिकल स्ट्राइक पर बात की। उन्होंने कहा, “सर्जिकल स्ट्राइक की योजना बनाई गई और उसे 100 फीसदी अंजाम दिया गया। अगर कोई हमपर छिपकर हमला करे तो ये मोदी है, जो उनको उन्हीं की भाषा में जवाब देना जानता है।”

 

मेरा यहां आना सवा सौ करोड़ हिंदुस्तानियों के संकल्प का नतीजा

- मोदी ने कहा, “प्रसून जी, मैं सबसे पहले तो आप सबका आभारी हूं कि इतनी बड़ी तादाद में आपका दर्शन करने का सौभाग्य मिला। आपने धरती की धूल से अपनी बात को शुरू किया है। आप कविराज हैं तो रेलवे से रॉयल पैलेस की तुकबंदी आपके लिए सरल है, लेकिन जिंदगी का रास्ता बड़ा कठिन होता है। जहां तक रेलवे स्टेशन की बात है तो वो मेरी अपनी व्यक्तिगत जिंदगी की कहानी है। मेरी जिंदगी की संघर्ष का स्वर्णिम पृष्ठ है। जिसने मुझे जीना सिखाया, जूझना सिखाया और जिंदगी अपने लिए नहीं औरों के लिए भी हो सकती है, ये रेल की पटरियों पर दौड़ती हुई और उससे निकलती हुई आवाज से मैंने बचपन से सीखा। वो मेरी अपनी बात है, लेकिन रॉयल पैलेस नरेंद्र मोदी का नहीं। ये मेरी कहानी नहीं है। वो रॉयल पैलेस सवा सौ करोड़ हिंदुस्तानियों के संकल्प का परिणाम है। रेल की पटरी वाला मोदी नरेंद्र मोदी, रॉयल पैलेस वाला सवा सौ करोड़ हिंदुस्तानियों का सेवक है। ये भारत के लोकतंत्र की ताकत और सामर्थ्य है कि जहां एक ऐसा अहसास होता है, जो जगह कुछ परिवारों के लिए रिजर्व रहती है, लोकतंत्र में जनता-जनार्दन ईश्वर का रूप है, जो फैसला कर ले तो चाय बेचने वाला व्यक्ति भी रॉयल पैलेस में आ सकता है।”

लोगों के सवाल, मोदी के जवाब

1) सवाल:जब देश की बात आती है, तो आप बहुत खुदकश होकर उसे देखते हैं। आज सब लोग बदलाव की बात करते हैं। बदलाव सोच में आता है, एक्शन में आता है फिर एक प्रक्रिया में आता है। बदलाव अपने साथ अधीनता, आतुरता लेकर आता है। एक वीडियो देखते हैं, इस संबंध में। ट्विटर पर प्रशांत दीक्षित जी है, उन्होंने कहा कि बहुत काम हो रहा है। पहले हमें दो कदम चलने की आदत थी तो अब बहुत ज्यादा चल रहे हैं। लेकिन फिर भी बेसब्री अभी-अभी-अभी क्यों नहीं। इसे कैसे देखते हैं?

मोदी: “इसे अलग तरीके से देखता हूं। जिस पल संतोष का भाव पैदा हो जाता है, तो जिंदगी आगे बढ़ती नहीं है। हर आयु में, हर युग में, हर अवस्था में कुछ ना कुछ नया करने का, नया पाने का मकसद गति देता है। वरना, मैं समझता हूं कि जिंदगी रुक जाती है। कोई कहता है कि बेसब्री बुरी चीज है, तो मैं समझता हूं कि अब वे बूढ़े हो चुके हैं। मेरी नजर में बेसब्री तरुणाई की पहचान भी है। जिसके घर में साइकिल है, स्कूटर चाहता है, वो है तो कार चाहता है। ये जज्बा नहीं है तो कल साइकिल चली गई, तो कहेगा बस में चलेंगे। ये जिदंगी नहीं है। आज सवा सौ करोड़ देशवासियों के मन में उमंग, आशा, अपेक्षा निकलकर आ रही है। एक समय था कि गर्त में था सब। मुझे खुशी है कि हमने एक ऐसा माहौल बनाया कि लोग हमसे ज्यादा अपेक्षा कर रहे हैं। आज से 15-20 साल पहले जब अकाल की परिस्थिति पैदा होती थी तो गांव के लोग सरकारी दफ्तर में मेमोरेंडम देते थे और इस बात की मांग करते थे कि इस बार अकाल हो जाए तो हमारे यहां मिट्टी खोदने का काम दीजिए। हम रोड पर मिट्टी डालना चाहते हैं और इससे सड़क बन जाए। आज मेरा अनुभव है। जिसके पास सिंगल हैंड रोड है, वो कहता है कि डबल रोड बनाइए। मुझे याद है कि मैं गुजरात के आखिरी छोर की तहसील से ड्राइवर मिलने आए, मुझसे कहा कि पेवर रोड चाहिए ताकि पैदावार को नुकसान ना हो। मैं बेसब्री को बुरा नहीं मानता। मां-बाप तीनों बच्चों को प्यार करते हैं, लेकिन काम एक से कहते हैं। जो करेगा, उसी से तो कहेंगे ना। देश अपेक्षा करता है तो इसीलिए कि आज उसके दिमाग में भर दो वो करके तो रहेगा ही। पहले एक दिन में जितने रास्ते बनते हैं, उसका तीनगुना रास्ता बना रहे हैं। हर काम में ये हो रहा है। अपेक्षा है, क्योंकि भरोसा है।”


2) सवाल:आपने इस बेसब्री को बखूबी समझा। इसके सकारात्मक नजरिए को बताया। मोदी जी लोगों की बेसब्री एकतरफ। क्या कभी आप बेसब्र हो जाते हैं सरकारी कामकाज के तरीकों से, या कभी निराशा होती है कि बुलेट ट्रेन की स्पीड से नहीं चल रहा है काम?

मोदी:“मुझे पता नहीं था कि कवि के भीतर भी कोई पत्रकार बैठा है। मैं मानता हूं कि जिस दिन बेसब्री खत्म हो जाएगी, उस दिन देश के काम नहीं आऊंगा। हर शाम सोता हूं तो दूसरे दिन का सपना लेकर सोता हूं। हर सुबह लक्ष्य होता है मेरे पास। निराशा का सवाल है, मैं समझता हूं कि खुद के लिए जब कुछ लेना, पाना, बनना होता है तो वो आशा और निराशा से जुड़ता है। जब सर्वजन हिताय-सर्वजन सुखाय के संकल्प को लेकर चलते हैं, तो निराशा का कोई कारण नहीं होता। मैं कभी-कभी कहता था कि एक ग्लास आधा भरा है तो एक व्यक्ति मिलेगा कि ग्लास आधा है, दूसरा कहेगा ग्लास आधा खाली है। मुझे पूछो तो कहूंगा कि आधा पानी से भरा है, आधा हवा से भरा है। वही सरकार, वही कानून, वही ब्यूरोक्रेट्स, वही तौर-तरीके, उसके बावजूद चार साल का लेखा-जोखा लेंगे तो तब के एक्शन और आज के एक्शन में जमीन-आसमान का अंतर दिखेगा। अगर आपके पास नीति स्पष्ट हो, इरादे नेक हो और सबके हित और सुख के लिए काम करने का इरादा हो तो इसी व्यवस्था से आप मनचाहा काम ले सकते हैं। अगर काम नहीं होता है तो मैं निराश नहीं होता। मैं दूसरा रास्ता ढूंढता हूं और करके रहता हूं।”

3) सवाल:प्रियंका वर्मा जी हैं दिल्ली से। हम सरकार क्यों चुनते हैं ताकि सरकार काम कर सके। आप आए तबसे सिस्टम बदल दिया। आपने सरकार के साथ हम सबको भी काम पर लगा दिया। ऐसा पहले क्यों नहीं होता था?

मोदी: “1857 से ले लीजिए 1947 तक। आप कोई भी साल उठा लीजिए, हिंदुस्तान का कोई भी कोना उठा लीजिए। कोई ना कोई आजादी के लिए शहीद हुआ है। किसी ना किसी नौजवान ने जिंदगी जेल में बिताई। आजादी का संघर्ष रुका नहीं था। महात्मा गांधी ने क्या किया। इस पूरी भावना को उन्होंने एक नया रूप दे दिया। हर आदमी को उन्होंने जोड़ा। उन्होंने कहा कि झाड़ू लेकर सफाई करो आजादी मिलेगी। टीचर हो अच्छी तरह पढ़ाओ आजादी मिलेगी। उन्होंने आजादी को जनआंदोलन में बदल दिया। हर आदमी को उसकी क्षमता का काम दे दिया। लोगों को भरोसा हो गया। मैं समझता हूं कि मरने वालों की कमी नहीं थी, लेकिन वो आते थे शहीद हो जाते थे, फिर कोई दूसरा शहीद हो जाता था। गांधी जी ने पूरे हिन्दुस्तान में कोटि-कोटि जनों को खड़ा कर दिया, जिसकी वजह से आजादी मिलना सरल हो गया। विकास भी जनआंदोलन बन जाना चाहिए। अगर कोई सोचे कि सबकुछ सरकार करेगी तो ये सही नहीं है। आजादी के बाद एक माहौल बन गया कि सबकुछ सरकार करेगी। धीरे-धीरे जनता और सरकार के बीच दूरी बढ़ती गई। बस में कोई अकेला बैठा है, अब रास्ता काटना है। वो सीट में छेद कर देता है और काटता रहता है। जब वो ये सोचे कि बस मेरी है, सरकार मेरी है और देश मेरा है, ये भाव बनना चाहिए। ये भाव प्रबल होना चाहिए। लोकतंत्र एग्रीमेंट नहीें है कि 5 साल में पूछूंगा कि क्या काम करूंगा। ये भागीदारी का काम है। मेरा मानना है कि साझीदारी वाले लोकतंत्र के लिए काम करना चाहिए। लोकतंत्र में जनता पर जितना भरोसा करेंगे, जोड़ेंगे परिणाम मिलेगा। टॉयलेट बनाने के काम से जनता जुड़ी और ये काम हो गया। रिजर्वेशन में लिखवाया कि मैं सीनियर सिटीजन हूं, लेकिन ये सुविधा नहीं चाहता। 40 लाख लोगों ने सब्सिडी नहीं ली और वे पूरी टिकट लेकर जाते हैं। अगर मैं कानून बनाता तो जुलूस निकाला जाता, पुतले जलते। पॉपुलैरिटी रेटिंग आती। कहा जाता कि मोदी गिर गया। देश में ईमानदार लोगोें की कमी नहीं है। हम लोगों का काम है कि देश की ताकत को समझना और उसे जोड़ना। मेरी ये कोशिश है कि हमें ही देश चलाना है ये अहंकार सरकारों को छोड़ देना चाहिए।

4) सवाल: मयूरेश खोजनानी पूछना चाहते हैं, जब आपने पाकिस्तान पर सर्जिकल स्ट्राइक करने का हिम्मतभरा कदम उठाया था, तब आपके मन में कैसी भावना थी?

मोदी: “मैं आपका आभारी हूं कि वाणी से अपनी भावनाओं को प्रकट नहीं कर पा रहे हैं, लेकिन आपने एक्शन से अपनी भावनाओं को प्रकट किया और शब्दों से आपके साथी ने मुझे इस बात को पहुंचाया। ये दृश्य हृदय को छूने वाला है। इसीलिए मैंने इन सबके लिए एक शब्द प्रयोग किया है, दिव्यांग। मैं ऐसे दिव्यांग को सलाम करता हूं। सर्जिकल स्ट्राइक भारत का हजारों वर्षों का इतिहास है। किसी भी युग में भारत ने किसी की भी जमीन हड़पने का प्रयास नहीं किया है। बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि प्रथम और द्वितीय विश्वयुद्ध में हिंदुस्तान के डेढ़ लाख सिपाहियों ने शहादत दी थी। ये बहुत बड़ा बलिदान था। आज भी यूएन की पीस कीपिंग फोर्स में सबसे ज्यादा योगदान करने वाला देश हिंदुस्तान है। हिंदुस्तान का चरित्र अजेय और विजयी रहने का है, लेकिन किसी के हक को छीनना भारत का चरित्र नहीं है। भगवान राम और लक्ष्मण के लंका छोड़ते वक्त का जो सिद्धांत है, तब भी हमने यही देखा। लेकिन, जब कोई टेररिज्म एक्सपोर्ट करने को उद्योग बना ले, देश के नागरिकों को मार दे, युद्ध लड़ने की ताकत नहीं है, पीठ पर वार करे तो ये मोदी है, उसी भाषा में जवाब देना जानता है। टैंक में सोये हुए जवानों को कुछ बुजदिल रात में मौत के घाट उतार दे, आप मुझे कहेंगे कि मैं जवाब ना दूं। आप ये कहेंगे कि मैं ईंट का जवाब पत्थर से ना दूं। इसलिए सर्जिकल स्ट्राइक की गई। जो योजना बनी थी, उसे 100 फीसदी अंजाम दिया गया। जिसने इस ऑपरेशन को अंजाम दिया, उसे मीडिया तक पहुंचने से पहले पाकिस्तान को बता दो कि हमने ये ऑपरेशन अंजाम दिया है और अपने फौजियों की लाशें उठा लो। 12 बजे वो टेलिफोन पर आए, हमने उन्हें जानकारी दी। इसके बाद हमने दुनिया को बताया। ये बताने के लिए था कि अब हिंदुस्तान बदल चुका है।”

5) सवाल:सेना के इतने त्याग के बावजूद हम इस पर राजनीति देखते हैं। सेना की वीरता पर लोग सवालिया निशान उठाते हैं?

मोदी- “मैं इस मंच का उपयोग राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों के लिए आलोचना के लिए नहीं करूंगा। मैं प्रार्थना करूंगा कि ईश्वर उन्हें सद्बुद्धि दे।"

6) सवाल: मोदी जी आपने लालकिले से टॉयलेट जैसे मुद्दे पर बात की। ये जो प्राथमिकताएं बदली हैं, या जो आप तय करते हैं, ये कैसे तय करते हैं। ये मुद्दे कैसे ऊपर आए?

मोदी-“मैं ये तो नहीं कहूंगा कि आजादी के 70 साल में किसी सरकार का इस विषय पर ध्यान नहीं था। ये उनके साथ अन्याय होगा। लालकिले से मैंने सभी राज्य सरकारों का योगदान करने की बात कही थी। लेकिन, क्या कारण है कि इतनी योजनाएं हैं, इतना संघर्ष रहा है...सामान्य आदमी की जिंदगी क्यों नहीं बदलती। गांधीजी ने सिद्धांत दिया था कि कोई भी नीति बनाते वक्त ये देखिए कि आखिरी छोर पर बैठे हुए व्यक्ति पर नीति का क्या असर होगा। मुझे ये बात गले उतरी। मैं जानता हूं कि मैंने ऐसे कठिन काम सिर पर लिए हैं, उन्हें कोई निगेटिव पेंट भी कर सकता है। तो क्या ये काम छोड़ देने चाहिए?

लालकिले से भावनाएं बताईं और देश ने मेरा साथ दिया

- मोदी ने कहा, “कल्पना कर सकते हैं किसी छोटी बालिका के साथ बलात्कार होता है, तो हम क्या कहेंगे कि आपकी सरकार में इतने बलात्कार होते हैं और हमारी सरकार में कम होते हैं। ये ठीक नहीं है। मैंने लालकिले से इसे अलग तरीके से रखा। बेटी के लिए सारे सवाल पूछे जाते हैं, कभी बेटों से भी पूछना चाहिए कि कहां गए थे। ये देश के लिए चिंता का विषय है, ये पाप करने वाला किसी का बेटा है। आप कल्पना कर सकते हैं कि आजादी के इतने सालों के बाद भारत में सेनिटेशन का कवर 35-40 फीसदी के आसपास था। गरीब मां शौचालय जाने के लिए सूर्योदय से पहले जाती है, दिन में जरूरत हो तो शाम का इंतजार करती है। क्या हम टॉयलेट नहीं बना सकते। ये सवाल मुझे सोने नहीं देता। तब जाकर मुझे लगा कि मैं लालकिले पर जाकर अपनी भावनाएं बता दूंगा। मैंने देखा कि देश ने साथ दिया। 3 लाख गांव खुले में शौच से मुक्त हो गए।”

किताब पढ़कर नहीं सीखी गरीबी

- “इसका एक और कारण है। मुझे किताब पढ़कर गरीबी सीखनी नहीं पड़ रही है, मुझे टीवी के पर्दे पर गरीबी के बारे में नहीं देखना। मैं गरीबी की जिंदगी देखकर आया हूं इसलिए मैं मन से मानता हूं कि राजनीति जो कहे, मेरी राष्ट्रनीति और समाजनीति कहती है कि इनकी जिंदगी में बदलाव लाना है। मैंने बिजली के लिए लालकिले से घोषणा की। 18 हजार गावों में बिजली पहुंचाने का काम पूरा हुआ। कुछ गांव बचे हैं। लास्ट मैन डिलिवरी लोकतंत्र में सरकारों की प्राथमिक जिम्मेदारी है। पहले गांव में बिजली का बीड़ा उठाया, अब घर में बिजली पहुंचाने का बीड़ा उठाया। 4 करोड़ परिवार ऐसे हैं जहां 18वीं शताब्दी की जिंदगी है और घर में दीया जलता है। मैंने सौभाग्य योजना के तहत उन घरों में बिजली का कनेक्शन देने का बीड़ा उठाया। कम्प्यूटर, मोबाइल, टीवी चलाएंगे। दुनिया के साथ जुड़ने के लिए उनके भीतर भी बेसब्री पैदा करनी है। मैं गरीबों का सशक्तिकरण करके गरीबी से लड़ने के लिए साथियों की फौज खड़ी करना चाहता हूं। गरीबी हटाओ के नारे से कुछ नहीं होता।”

7) सवाल: मोदीजी आप पूरी मेहनत कर रहे हैं, लेकिन क्या अकेले देश बदल पाएंगे?

मोदी: “मैं मेहनत करता हूं, ये बात आपने कही। मैं समझता हूं कि देश में इस विषय पर विवाद नहीं है। मैं मेहनत करता हूं वो मुद्द नहीं है, अगर ना करता तो मुद्दा है। सवा सौ करोड़ देशवासियों ने मुझे क्यों बताया है। ना मेरी कोई चाची है और ना मेरा कोई वंशवाद है। मेरे पास एक ही पूंजी है, कठोर परिश्रम, प्रामाणिकता और मेरे सवा सौ करोड़ देशवासियों का प्यार। मुझे ज्यादा से ज्यादा मेहनत करनी चाहिए। मैं देशवासियों से कहना चाहूंगा कि मैं भी आपके जैसा ही सामान्य नागरिक हूूं। मुझमें वो सारी कमिया हैं, जो सामान्य आदमी में होती है। आप मुझे अपने जैसा ही मानो, जो हकीकत है। मैं जहां बैठा हूं, वो व्यवस्था का हिस्सा है। मेरे भीतर एक विद्यार्थी है। मैं शिक्षकों का आभारी हूं कि उन्होंने मेरे भीतर के विद्यार्थी को कभी मरने नहीं दिया। मुझे जो दायित्व मिलता है, उससे मैं सीखने और समझने की कोशिश करता हूं। मेरे पास अनुभव नहीं है, मुझसे गलतियां हो सकती हैं। मैंने भरोसा दिया था कि गलतियां कर सकता हूं, लेकिन ये गलत इरादे से कभी नहीं करूंगा। लंबे समय तक गुजरात में मुख्यमंत्री का काम किया और अब 4 साल से प्रधानसेवक का काम कर रहा हूं। गलत इरादे से कोई काम नहीं करूंगा ये देश को वादा किया है।”

नोटबंदी के फैसले पर भी देश मेरे साथ था

- पीएम ने कहा, “मैंने कभी नहीं सोचा कि देश मैं बदलूंगा, लेकिन ये विश्वास है कि लाखों समस्याएं हैं तो सवा सौ करोड़ समाधान भी है। मिलियन प्रॉब्लम्स हैं तो बिलियन सॉल्यूशन भी हैं। अर्जेंटीना के प्रधानमंत्री मेरे अच्छे मित्र हैं, उन्होंने कहा कि नोटबंदी के वक्त मैं और पत्नी चर्चा करते थे कि मेरा दोस्त गया। 86 फीसदी करेंसी कारोबारी व्यवस्था से गायब हो जाए, लेकिन देशवासियों पर मेरा भरोसा था कि मेरा देश ईमानदारी के लिए जूझ रहा है। मेरा सामान्य आदमी कष्ट झेलने को तैयार है। ये मेरे देश की ताकत है तो मुझे अपनी जिंदगी इस ताकत के अनुरूप ढालना चाहिए। दरअसल, मोदी की जरूरत है, मुझपर पत्थर फेंकते हैं, कचरा फेंकते हैं, गालियां देते हैं, मैं अकेला हूं झेलता रहता हूं। मैंने कभी लिखा था- जो लोग मुझे पत्थर फेंकते हैं, मैं उस पत्थरों से ही रास्ता बना देता हूं और उसी पर आगे बढ़ता हूं। मेरा कॉन्सेप्ट टीम इंडिया का रहा है। सरकार रुकावट बनना बंद कर दे ना तो भी देश आगे बढ़ जाता है।”

8) सवाल: सैमुअल डाउजेंट ने हेल्थ सेक्टर को लेकर मोदी केयर और ओबामा केयर के बारे में पूछा।


मोदी: “बच्चों को पढ़ाई, युवा को कमाई, बुजुर्गों को दवाई.. ये तीन चीजें हैं। ये हैं जो स्वस्थ समाज के लिए चिंता करनी चाहिए। कितना ही अच्छा परिवार हो, लेकिन उस परिवार में अगर एक बीमारी आ जाए तो पूरा प्लान खत्म हो जाता है। बीमारी पूरे परिवार को तबाह करके चली जाती है। एक व्यक्ति नहीं पूरा परिवार बीमार हो जाता है, सारी व्यवस्था बीमार हो जाती है। 
कुछ लोग इसे मोदी केयर के रूप में प्रचारित कर रहे हैं। योजना आयुष्मान भारत है।”

9) सवाल:संतोष पाटिल ने कहा कि आज जगदगुरु बसवेश्वर जी की जयंती है। आप उनके विचारों को, जीवन को कैसे देखते हैं?

मोदी: “12वीं सदी के ये महापुरुष हैं। भगवान बसवेश्वर के वचन पढ़ने चाहिए, ये सभी भाषाओं में उपलब्ध हैं। हमें अपनी महानताओं का पता ही नहीं हैं। संत बसवेश्वर ने लोकतंत्र के लिए 12वीं सदी से चिंतन शुरू किया। एक संस्था शुरू किया, उसमें एक महिला प्रतिनिधि रहती थीं। जाति-पाति में देश बिखरा था, उन्होंने सबको एक छत्र में लाने का बहुत बड़ा काम किया था। उनका एक वचन है कि जहां ठहराव है, वहां जिंदगी समाप्त है और जहां पर गति है, वहां जिंदगी के नए आयाम की संभावनाएं रोज नई होती हैं। उन्होंने ठहराव को मृत्यु माना है। लोकतंत्र, नारी सशक्तिकरण के लिए, सामाजिक सशक्तिकरण के लिए उन्होंने जो किया वो बेहद अहम है।”

10) सवाल:मोदी मॉडल ऑफ गवर्नेंस क्या है?

मोदी: “कोई भी सरकार में विफल होने नहीं आता। कुछ ना कुछ करने के इरादे से आई हैं, लेकिन देखा गया है कि एक ऐसा हमारे देश में सरकारों ने रवैया अपनाया कि लोग सरकार पर आश्रित हो जाएं। सरकार के बिना उनका गुजारा ही ना हो। मेरा मानना है कि ये कॉन्सेप्ट समाज को अपाहिज बना देता है। अगर गरीबी हटानी है तो गरीबों को शक्तिशाली बनाकर हटाया जा सकता है ना कि उनको वैसा ही रखकर। मेरा मूल सिद्धांत रहा है कि समाज में जो भी शक्ति है उसे सहायता कैसे दें। इसके लिए हमने प्रधानमंत्री मुद्रा योजना बनाई। अब तक देश के 11करोड़ लोगों को मुद्रा योजना का लाभ मिल चुका है। इस योजना में लोन लेने वालों में 75 प्रतिशत महिलाएं हैं। जो साहस करता है उसका साथ देना ये हमारा दायित्व है।”

11) सवाल:जब आप बात करते हैं स्कीम्स की, लोगों तक पहुंचने की तो लगता है कि आप काम कर रहे हैं, क्या देश को भी ये अहसास होता है?

मोदी: “मुझे याद है जब मैं पहली बार गुजरात का मुख्यमंत्री बना 2001 में तब मैंने पुलिस स्टेशन, कार्यालय और असेंबली कुछ नहीं देखा था। लेकिन लोग तो आ जाते हैं माला लेकर, उन्होंने कहा कि मोदी जी कुछ करो ना करो इतना जरूर करना कि खाना खाते समय बिजली जरूर मिले। आज अगर लोगों से पूछो कि अंधेरा क्या होता है तो आपको पता चलेगा कि इन 5 वर्षों में हम पिछली सरकारों के मुकाबले कहां हैं। कंपरेटिव स्टडी करोगे तो पता चलेगा कि हमने कितनी मेहनत की है। 2014 के पहले खबरें रहती थी कि इतना गया इतना खत्म। आज होता है कि कितना आया? पहले सवाल होता है ये नहीं हुआ, आज सवाल होता है, अगर ये हो सकता है, लेकिन मोदीजी ये क्यों नहीं हुआ।”

12) सवाल: ये फकीरी आपमें कहां से आई?


मोदी: “ये काफी पर्सनल सवाल है। मुझे कविताएं याद नहीं रहती हैं। लेकिन, सोशल मीडिया में मैं उस कविता को डाल दूंगा। रमता राम अकेला में मैंने भावों को व्यक्त किया है। ये फकीरी जो है, वो मन की अवस्था से जुड़ा विषय है। हालात इसे नहीं पैदा करते हैं, ये भीतर से होता है। लोगों को गिफ्ट मिलते हैं, वो उनके बारे में सोचते हैं। मुझे इसकी इच्छा नहीं होती। मुझे जो मिलता है वो सरकारी कोषागार में डाल देता हूं। मैंने इसका मूल्यांकन और नीलामी करवानी शुरू कर दी। जब मैंने गुजरात छोड़ा था, 100 करोड़ से ज्यादा रुपए मिले इस नीलामी से। ये राशि मैंने बच्चियों की शिक्षा के लिए दे दी। जब प्रधानमंत्री बना तो मैंने अफसरों को बुलाया और कहा कि जो विधायक के नाते कमाता था, वो पैसे पड़े हैं.. वो कहां ले जाऊंगा। 5-6 लाख रुपए थे। मैंने कहा कि मैं सरकार को दे देना चाहता हूं और इच्छा है कि गांधीनगर के सचिवालय में जो ड्राइवर और प्यून हैं, उनके लिए ये अमाउंट छोड़ दूं। उसके ब्याज से उन्हें मदद मिलती रहे ऐसा करिए। मेरे अफसरों ने कुछ नहीं कहा। दो दिन के बाद उन्होंने कहा कि हम आपसे घर में मिलने आना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि पता नहीं कब आपको पैसों की जरूरत पड़ जाए और आपके पास हों नहीं, अफसरों ने पैसे नहीं देने दिए। आखिरकार बहुत समझाने पर मान गए और सारे पैसे नहीं लिए, लेकिन छोटा सा फाउंडेशन बनाया। मैं ऐसे अभावों में पैदा हुआ हूं इसलिए मुझ पर किसी चीज का प्रभाव नहीं होता। मैं औलिया हूं, मेरा कोई लेना-देना नहीं है।”

13) सवाल: हमारे युवा प्रधानमंत्री जी आप हम सभी भारतीय युवाओं के लिए रोल मॉडल बन चुके हैं। दिन में 20-20 घंटे काम करना छोटी बात नहीं है। आपके अंदर इतनी ऊर्जा आती कहां से है। हमें पता है कि आप योगा करते हैं। आप हमें बताएं कि देशहित में हम अपनी ऊर्जा का उपयोग कर सकें।

मोदी: “इसके कई जवाब हो सकते हैं। मैं पिछले दो दशक से रोज एक किलो, दो किलो गालियां खाता हूं। सीधी-सरल बात बताऊं। पुरानी घटना आपने सुनी होगी कि पहाड़ पर तीर्थ स्थान था और तराई में कोई संत बैठे थे और एक 8 साल की बच्ची अपनी 3 साल के उम्र के भाई को उठाकर उस पहाड़ पर चढ़ रही थी। संत ने पूछा कि थकान नहीं लग रही है क्या, बच्ची ने जवाब दिया कि ये तो मेरा भाई है। संत ने फिर पूछा कि थकान नहीं लग रही है क्या? बच्ची ने फिर जवाब दिया कि ये तो मेरा भाई है। संत ने फिर कहा कि रिश्तेदार नहीं पूछ रहा हूं, थकान नहीं लग रही है क्या? उसने कहा कि ये मेरा भाई है, भाई की थकान नहीं होती है। मेरे लिए सवासौ करोड़ देशवासी मेरा परिवार हैं। जहां पर आप अपनापन अनुभव करते होंगे, कितने ही थके हों, सोने का मन कर रहा हो, शरीर साथ ना दे रहा हो। लेकिन, फोन आ जाए कि भतीजे की तबीयत खराब है और वो अस्पताल में हैं, आप तुरंत भागते हैं और रातभर सेवा में लगे रहते हैं। हर पल त्रिपुरा, केरल या दिल्ली से कोई खबर आ जाती है फिर मन करता है कि चलो उठो दौड़ो। आज प्रधानमंत्री हूं लोग सब करेंगे, चाय-पानी लाएंगे। कल मैं किसी पर बोझ नहीं बनना चाहता। मैं हंसते-खेलते बात करते चला जाना चाहता हूं। शरीर को जितना फिट रख सकता हूं, काम ले सकता हूं, नियमों का पालन कर सकता हूं उसी को जीने का प्रयास करता हूं। विरासत में बहुत कुछ मिल सकता है, लेकिन खुद को फिट रखना आपको ही करना पड़ता है।”

14) नए वर्ल्ड में भारत का क्या रोल देखते हैं आप?

- “आपके पासपोर्ट की ताकत बढ़ी है कि नहीं। आपका कोई संबंधी हिन्दुस्तान में रहता है ये जानकर आप गर्व करते हैं कि नहीं। अब पूरे विश्व में भारत का लोहा माना जाता है। सिर्फ सवा सौ करोड़ का देश है। सबसे बड़ा मार्केट है, इसलिए नहीं बल्कि जो सच है डंके की चोट पर बोलना। 70 साल तक कोई भारतीय प्रधानमंत्री इजरायल ना जाए। हिंदुस्तान में दम होना चाहिए कि जब मुझे इजरायल जाना है तो मैं हिम्मत के साथ वहां जाऊंगा और जब मुझे फिलिस्तीन जाना हो तो मैं वहां भी जाऊंगा। जरूरत पड़े तो मैं सऊदी अरब भी जाऊंगा और एनर्जी और सिक्युरिटी के लिए ईरान भी जाऊंगा। 23 साल तक कोई यूएई गया नहीं था। आज विश्व के सभी देशों के साथ हम बराबरी के साथ खड़े हैं। कभी मेरी आलोचना होती थी कि मोदी देश का भट्टा बिठा देगा। विदेश नीति तो समझ नहीं पाएगा। लेकिन आज 4 साल बाद कोई ये नहीं कह सकता और इसकी वजह मोदी नहीं है, बल्कि मोदी को सवा सौ करोड़ लोगों पर भरोसा है। मुझे विश्वास है कि मैं दुनिया को भारत का सच समझा सकता हूं। ये भारत का गर्व है कि प्रिंस चार्ल्स खुद भारत आए थे, सिर्फ मुझे निमंत्रण देने के लिए कि आप कॉमनवेल्थ समिट में आएं। क्वीन ने मुझे पर्सनल चिट्ठी लिखी थी कि इस बार तो आप रहिए ही।”

हर किसी की मदद करने का लक्ष्य

- “एक समय था जब यमन ग्राउंड पर चर्चा होती थी तो पश्चिमी देशों की बात होती थी। भारत की कोई बात नहीं करता था। लेकिन जब यमन से भारत ने अपने 5 हजार लोगों को निकाला तो दुनिया ने अपील की आप मदद करें और भारत ने 2 हजार लोगों को निकालने में मदद की। भारत ने म्यांमार से बांग्लादेश से भागे रोहिंग्याओं को भूखों नहीं मरने दिया और अपने पड़ोसी के पास स्टीमर भर-भर के चावल पहुंचाएं। अपने पड़ोसी नेपाल में भूकंप के वक्त हमने अपने लोगों को भेजकर मदद की। हमारा कहना है, ना हम किसी से आंख झुकाकर बात करेंगे ना आंख उठाकर बात करेंगे। हम आंख मिलाकर बात करेंगे और आज विश्व जिस अवस्था में पहुंच रहा है, भारत अगर क्लाइमेट चेंज की बात करता है तो सोलर अलायंस की बात लेकर आया है। हर इंटरेशनल समिट में भारत एजेंडा सेट करता है। जी-20 समिट के अंदर ब्लैक मनी के खिलाफ भारत ने एजेंडा सेट किया। भारत आज ट्रेड सेंटर बन रहा है।”

आलोचना से पनपता है लोकतंत्र

- “अगर लोकतंत्र में आलोचना नहीं होती तो वो लोकतंत्र नहीं होता। मैं मानता हूं कि अगर डेमोक्रेसी की कोई ब्यूटी है तो वो क्रिटिसिज्म है। क्रिटिसिज्म से ही तपकर डेमोक्रेसी पनपती है। शासन में बैठे लोगों को भी वो सतर्क रखती है। अगर कोई आलोचना करता है तो मैं उसकी तारीफ करता हूं। आलोचना करने के लिए बहुत मेहनत करनी पड़ती है, इतिहास जानना पड़ता है, रिसर्च करनी पड़ती है। आज इतनी तेजी है कि आपाधापी का युग है, इसलिए क्रिटिसिज्म ने दुर्भाग्य से एलिगेशन का रूप ले लिया है। इसलिए एक तंदरूस्त लोकतंत्र के लिए क्रिटिसिज्म करना चाहिए लेकिन एलिगेशन से बचना चाहिए। मुझे याद है कि सरकार में मुझे कोई अच्छी खबर भी देता है तो मैं कहता हूं कि ये तो मैं देख लूंगा लेकिन ये बताओ इसमें कमी क्या है। अगर मैं सुनना ही बंद कर दुंगा तो इससे कोई भला नहीं होगा। लेकिन मुझसे सवाल है कि आप इतनी क्रिटिसिज्म पर बोलते क्यों नहीं।”

15) सवाल: आप कैसे चाहते हैं कि इतिहास आपको कैसे याद रखे?

मोदी: आप में से कोई बता सकता है कि वेद किसने लिखे। 5 हजार पुराने ग्रंथ। अगर इतने बड़े रचयिता का नाम इतिहास में दर्ज नहीं है तो फिर मोदी क्या है? वो तो छोटी सी चीज है। इतिहास में नाम दर्ज कराना मोदी का मकसद नहीं है, ना इसके लिए मोदी पैदा हुआ है। लोग मुझे सवासौ करोड़ भारतीयों की तरह ही याद रखें। इतिहास में अमर होना मेरी ख्वाहिश नहीं है। मकसद है तो मेरा देश अजर-अमर रहे। मेरे देश के लिए दुनिया गर्व से कहे कि ये देश विश्व को संकट से निकालने का सामर्थ्य रखता है। मोदी की छवि चमकाने में इंट्रेस्ट नहीं है, हिंदुस्तान की छवि चमकाने में मेरा इंट्रेस्ट है।

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