Sunday, 25th May 2025

सोहराबुद्दीन केस में जज रहे लोया की मौत की जांच एसआईटी नहीं करेगी, सुप्रीम कोर्ट में सभी याचिकाएं खारिज

Thu, Apr 19, 2018 6:27 PM

महाराष्ट्र सरकार ने इस केस की स्वतंत्र जांच कराने का विरोध किया था।

महाराष्ट्र सरकार ने इस केस की स्वतंत्र जांच कराने का विरोध किया था।

- सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जज लोया की मौत प्राकृतिक थी। इस संबंध में दायर की गईं याचिकाएं न्यायपालिका को बदनाम करने की साजिश का हिस्सा है।

 

नई दिल्ली. सोहराबुद्दीन एनकाउंटर केस की सुनवाई करने वाले जज बीएच लोया की मौत की स्वतंत्र जांच स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम (एसआईटी) से नहीं कराई जाएगी। कोर्ट ने कहा कि जज लोया की मौत प्राकृतिक थी। सुप्रीम कोर्ट ने इस संबंध में दायर की गईं सभी याचिकाओं को खारिज करते हुए कहा कि यह न्यायपालिका को बदनाम करने की साजिश का हिस्सा है।

महाराष्ट्र सरकार ने किया था स्वतंत्र जांच का विरोध

- केस की स्वतंत्र जांच का महाराष्ट्र सरकार ने विरोध किया था। उसका कहना था कि ये याचिकाएं राजनीति से प्रेरित हैं और किसी एक शख्स को निशाने पर रखकर दायर की गई हैं।

- वहीं, याचिकाकर्ताओं का कहना था कि लोया मामले में अब तक जिस तरह का घटनाक्रम हुआ, उससे निष्पक्ष जांच की जरूरत बढ़ गई है।

क्या है जज लोया की मौत का मामला?

- सीबीआई के स्पेशल जज बीएच लोया की मौत 1 दिसंबर 2014 को नागपुर में हुई थी। तब वे अपने कलीग की बेटी की शादी में जा रहे थे। बताया जाता है कि उन्हें दिल का दौरा पड़ा था।
- पिछले साल नवंबर में जज लोया की मौत के हालात पर उनकी बहन ने शक जाहिर किया। इसके तार सोहराबुद्दीन एनकाउंटर से जोड़े गए। दावा है कि परिवार को 100 करोड़ रुपए की रिश्वत देने की कोशिश की गई थी।

सुप्रीम कोर्ट के 4 जजों ने सुनवाई पर उठाए थे सवाल
- सुप्रीम कोर्ट के चार जजों जस्टिस जे चेलमेश्वर, रंजन गोगोई, कुरियन जोसेफ और एमबी लोकुर ने 12 जनवरी को प्रेस कॉन्फ्रेंस कर चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा पर काम का बंटवारा ढंग से नहीं करने का आरोप लगाया था। 
- इसी दौरान उन्होंने कहा था कि जस्टिस लोया का केस किसी सीनियर जज के पास जाना चाहिए था, लेकिन इसे जूनियर जज की बेंच के पास भेजा गया। इसके बाद जस्टिस अरुण मिश्रा ने इस केस की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था।
- अब इस केस की सुनवाई चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुआई वाली बेंच कर रही है। इसमें जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ भी हैं।

क्या है सोहराबुद्दीन एनकाउंटर केस?

- सीबीआई के मुताबिक गुजरात के आतंकवाद निरोधी दस्ते (एटीएस) ने सोहराबुद्दीन शेख और उसकी पत्नी कौसर बी को उस वक्त अगवा कर लिया था जब वे हैदराबाद से महाराष्ट्र के सांगली जा रहे थे।

- नवंबर 2005 में गांधीनगर के करीब उसकी कथित फर्जी एनकाउंटर में हत्या कर दी गई। यह दावा किया गया कि शेख के पाकिस्तान के आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा के साथ संबंध थे।

- पुलिस ने दिसंबर 2006 में मुठभेड़ के चश्मदीद गवाह और शेख के साथी तुलसीराम प्रजापति की भी कथित तौर पर गुजरात के बनासकांठा जिले के चपरी गांव में हत्या कर दी। अमित शाह तब गुजरात के गृह राज्यमंत्री थे। उन पर दोनों घटनाओं में शामिल होने का आरोप था।

अमित शाह समेत कई आरोपी हो चुके बरी
- सोहराबुद्दीन एनकाउंटर केस को 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र की ट्रायल कोर्ट में ट्रांसफर कर दिया था। 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने प्रजापति और सोहराबुद्दीन शेख के केस को एक साथ जोड़ दिया। 
- पहले इस केस की सुनवाई जज जेटी उत्पत कर रहे थे, लेकिन 2014 में अचानक उनका तबादला कर दिया गया था। फिर केस की सुनवाई जज बीएच लोया ने की।
- सोहराबुद्दीन एनकाउंटर केस में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह, राजस्थान के गृहमंत्री गुलाबचंद कटारिया, राजस्थान के बिजनेसमैन विमल पाटनी, गुजरात पुलिस के पूर्व चीफ पीसी पांडे, एडीजीपी गीता जौहरी, गुजरात पुलिस के ऑफिसर अभय चुडासम्मा और एनके अमीन को बरी किया जा चुका है। पुलिस अफसरों समेत कुल 23 आरोपियों के खिलाफ अभी भी जांच चल रही है।

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