Sunday, 13th July 2025

लोगों से पानी के पैसे तो लिए पर सरकार को नहीं दिए, निकायों पर एक अरब बकाया

Wed, Mar 28, 2018 3:15 PM

रायपुर. आम आदमी तीन महीने पानी का बिल जमा न करे तो उसके घर का नल कनेक्शन काटने की नौबत आ जाती है। ऐसी कार्रवाई करने वाले निकाय खुद जलकर जमा करने के मामले में लापरवाह हैं। प्रदेश के अधिकतर नगर निगम, नगर पालिका, नगर पंचायत समेत निकायों पर कुल एक अरब रुपए बकाया हैं। मार्च का बिल जोड़ दें तो यह राशि और भी अधिक है। इन निकायों ने सिंचाई विभाग से पानी तो खरीदा, लेकिन इसके एवज में पैसे नहीं दिए। यही वजह है कि ज्यादातर निकाय अब डिफाल्टर की श्रेणी में आ गए हैं। वाटर सप्लाई का जिम्मा संभालने वाला पीएचई डिपार्टमेंट भी बकायादारों की लिस्ट में है। सभी निकाय पीने के पानी के टैक्स की वसूली जनता से कड़ाई से करते हैं।

रायपुर, बिलासपुर और भिलाई बड़े बकाएदार

- जल कर से उनके खाते में करोड़ों रुपए जमा हो रहे हैं। इसके बावजूद वे सिंचाई विभाग को समय पर भुगतान नहीं करते। जिन निकायों का बिल बकाया है, उनमें रायपुर, भिलाई, राजनांदगांव समेत सभी निगम शामिल हैं। केवल कोरबा नगर निगम व डोंगरगढ़ पालिका ही समय पर बिल चुका रहे हैं।

- कोरबा में बड़े कारखाने हैं। इस वजह से यहां के निगम को काफी टैक्स मिलता है। हालांकि भिलाई नगर निगम और फैक्ट्रियों की भरमार वाले रायगढ़, रायपुर समेत कई निगम ऐसा कर सकते हैं, लेकिन वे पानी का पैसा नहीं दे रहे।

- सिंचाई विभाग का दावा है कि ये निगम एग्रीमेंट से अधिक पानी का दोहन या इस्तेमाल कर रहे हैं। बिलों का भुगतान न होने से सिंचाई विभाग का बजट बिगड़ गया है। विभाग चाहे तो पानी की सप्लाई रोक सकता है, लेकिन यह अत्यावश्यक सेवाओं में आता है, इसलिए ऐसा संभव नहीं। इसी का फायदा उठाकर निकाय बिल चुकाने में रुचि नहीं ले रहे।

सिंचाई विभाग 52 पैसे में 1000 लीटर पानी देता है

सिंचाई विभाग निकायों और पीएचई को 52 पैसे प्रति घनमीटर पानी उपलब्ध कराता है। एक घनमीटर में एक हजार लीटर पानी होता है। यह रेट 2015 से लागू है। इसके पहले 2006 में 20 पैसे प्रति घनमीटर था। हर साल दो पैसे दाम बढ़ाने की नीति थी। बाद में 2015 में शासन ने तय किया जब तक वह नहीं कहेगा रेट नहीं बढ़ेंगे।


पहले भी सरकार माफ कर चुकी है 43 करोड़ रुपए
पानी बिल के मामले में नगरीय निकायों का यह रवैया पुराना है। पहले भी जब उन पर करीब 43 करोड़ रुपए बकाया थे तो सरकार से गुजारिश कर यह राशि माफ करा चुके हैं। 5-6 साल पहले नगरीय प्रशासन विभाग ने कैबिनेट से यह प्रस्ताव मंजूर कराया था। हालांकि प्रस्ताव से पहले सिंचाई विभाग की सहमति नहीं ली थी। सीधे जनता से जुड़ा मुद्दा होने के कारण कैबिनेट ने इस शर्त के साथ प्रस्ताव मंजूर किया था कि भविष्य में निकाय नियमित रूप से जलकर जमा करेंगे। इस शर्त का भी अब पालन नहीं किया जा रहा।

नगरीय प्रशासन विभाग से मांगी जाएगी रकम
सिंचाई विभाग चाहता है कि इन शहरों में पानी की सप्लाई बाधित न हो और निकाय उसके बिलों का भुगतान भी करते रहें। इसके लिए वह जल्द ही नगरीय प्रशासन विभाग और पीएचई विभाग से बातचीत करने के लिए बैठक करने वाला है। इन विभागों से आग्रह किया जाएगा कि बिलों का समय पर भुगतान करें। पीएचई की सामूहिक नल-जल योजना जैसी 11 योजनाएं तो सिंचाई विभाग से मिलने वाले पानी के भरोसे ही चल रही हैं।


निकायों से बात करेंगे
सिंचाई डिपार्टमेंट के सेक्रेटरी सोनमणि बाेरा के मुताबिक, वसूली नियमित प्रक्रिया है। इसके लिए समय-समय पर अभियान भी चलाते हैं। हमारा प्रयास रहता है कि संबंधित निकाय बिलों का नियमित भुगतान करें। उनसे बात भी करेंगे। उपभोक्ताओं से आग्रह भी करेंगे कि पानी के सदुपयोग के उपाय करें।

नगरीय प्रशासन विभाग डॉ. रोहित यादव ने बताया कि नगरीय प्रशासन विभाग को कई बार कम राजस्व मिलता है। हम अपनी देनदारियों व प्राप्तियों का आंकलन कर रहे हैं। पहले भी हमने सिंचाई विभाग को पानी के बिलों का भुगतान पार्ट पेमेंट से किया है। इस बार भी एकमुश्त नहीं कर सके तो पार्ट पेमेंट करेंगे ही।

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