रतलाम/इंदौर। अंग्रेजी के पेपर में 18 प्रश्नों में से तीन के ही उत्तर लिख पाया था। पेपर बिगड़ने से डिप्रेशन में आ गया और कीटनाशक पी लिया। अब ठीक हूं। अगले साल मेहनत करूंगा और पास हो जाऊंगा। नादानी में मैंने बहुत बड़ी गलती कर ली थी। अब पछतावा हो रहा है। ऐसी गलती कोई अन्य स्टूडेंट नहीं करे। यह कहना है अंग्रेजी का पेपर बिगड़ने के बाद कीटनाशक पीने वाले भेड़ली निवासी नीलेश पारगी का।
- नीलेश ने बताया चचेरे भाई राहुल ने भी दसवीं की प्राइवेट परीक्षा दी है। बुधवार को परीक्षा के बाद गुरुतेग बहादुर स्कूल से दोनों घर लौटे। रास्ते में राहुल को बताया याद किए प्रश्न आए ही नहीं, पेपर बिगड़ गया। राहुल ने कहा उसका पेपर अच्छा गया। इसके बाद शिवगढ़ तक दोनों में बात नहीं हुई। शाम 4 बजे भेड़ली पहुंचने के बाद नीलेश को घर छोड़कर राहुल अपने घर चला गया। नीलेश के परिजन तेरमाबोयड़ी मामा के यहां शादी में गए थे। नीलेश अकेला था। शाम 4.30 बजे उसने कीटनाशक पी लिया। उल्टियां की तो रिश्तेदारों ने उसे शिवगढ़ अस्पताल में भर्ती कराया। मां सावित्री ने बताया नौवीं में दो बार फेल होने के बाद दसवीं का प्राइवेट फॉर्म भरा था। नीलेश से छोटी बहन निकिता आठवीं और छोटा भाई निखिल 7वीं में पढ़ता है। पिता पृथ्वीराज पारगी व दादा वालजी खेती करते हैं। नीलेश खेती में हाथ बंटाता है।
सख्ती से चैकिंग के कारण तनावग्रस्त बच्चे
- प्राइवेट स्टूडेंट के परीक्षा केंद्रों को माध्यमिक शिक्षा मंडल ने अतिसंवेदनशील घोषित किया है। संवेदनशील घोषित होने के कारण अन्य परीक्षा केंद्रों की तुलना में इन सेंटरों पर अधिक चैकिंग होती है। सख्ती से चैकिंग के कारण बच्चे घबरा जाते हैं। प्राइवेट पढ़ाई करने वाले बच्चों को प्रोत्साहित करने के बजाय इस आदेश से प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।
परीक्षा के समय काउंसिलिंग करें
- काउंसलर पांडेय ने सुझाव दिया कि रेग्युलर स्टूडेंट से स्कूल में टीचर बातचीत कर समस्या का समाधान करते हैं। प्राइवेट स्टूडेंट्स के लिए भी परीक्षा केंद्र स्तर पर काउंसिलिंग की व्यवस्था होना चाहिए। ग्रामीण क्षेत्र के विद्यार्थियों के लिए इसकी जरूरत है। काउंसिलिंग टीम गठित कर परीक्षा से पहले या बाद में ऐसे विद्यार्थियों से बातचीत करना चाहिए। मानसिक तनाव से गुजर रहे बच्चों की पहचान कर उनकी काउंसिलिंग करना चाहिए।
हार्मोंस में बदलाव व असमंजस के कारण बच्चों पर दबाव
- गुरु तेग बहादुर पब्लिक स्कूल के वाइस प्रिंसिपल और काउंसलर अवनीश कुमार पांडेय ने बताया 13 से 15 वर्ष तक की उम्र में शरीर में हार्मोंस के बदलाव के कारण मानसिक दबाव रहता है। उचित मार्गदर्शन के अभाव में इस उम्र के बच्चे असमंजस में रहते हैं। छोटी सी घटना को बड़ी समझकर भविष्य के प्रति चिंतित हो जाते हैं। सिर्फ परीक्षा के समय नहीं जुलाई से ही विद्यालय और पारिवारिक स्तर पर तथा कोचिंग क्लासों में भी बच्चों की सतत काउंसिलिंग होना चाहिए।
पेपर बिगड़ने पर घबराएं नहीं, दो महीने बाद फिर परीक्षा होगी
- प्रभारी जिला शिक्षा अधिकारी अमर वरधानी ने बताया बच्चों को पेपर बिगड़ने पर घबराना नहीं चाहिए। बच्चों का साल खराब नहीं होगा। शासन ने 'रुक जाना नहीं' योजना के तहत व्यवस्था की है कि जिस विषय में बच्चा फेल हुआ है दो महीने बाद उतने विषयों की परीक्षा दोबारा दे सकता है।
एक्सपर्ट ने दिए विद्यार्थियों को सुझाव
- दुनिया में हर समस्या का समाधान है। बातचीत कर समस्या शेयर करें। माता-पिता बच्चों पर नंबर के लिए दबाव न बनाएं। छात्रों के भविष्य निर्माण के लिए शासन की कई योजनाएं हैं, जिसकी जानकारी छात्रों को दें। पेपर देकर घर लौटे बच्चे से माता-पिता अवश्य बातचीत करें।
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