Saturday, 24th May 2025

मोसुल में हम फोटो दिखाकर पूछते- कोई हिंदुस्तानी इधर आया था क्या- वीके सिंह

Wed, Mar 21, 2018 6:25 PM

नई दिल्ली.इराक के मोसुल से करीब 4 साल पहले अगवा 39 भारतीय जिंदा नहीं हैं। आईएसआईएस के आतंकियों ने सबकी हत्या कर दी थी। हत्याएं कब हुईं, यह साफ नहीं है। इन्हें खोजने के लिए विदेश राज्य मंत्री जनरल वीके सिंह पिछले साल जुलाई में इराक गए थे। उन्होंने भास्कर के लिए लिखे विशेष लेख में बताया- आईएसआईएस के खूनी खेल के बाद कैसे उन्होंने भारतीयों की खोज करने के लिए ऑपरेशन चलाया?

 

मोसूल पहुंचा तो वहां बारूदी सुरंगें बिछी थीं

- जनरल वीके सिंह के मुताबिक, ''पिछले साल 9 जुलाई को मोसुल आजाद हुआ था। 10 को मैं वहां के लिए निकल गया था। मोसुल पर 2014 से आईएस

का कब्जा था। जब मैं वहां पहुंचा तो लड़ाई खत्म नहीं हुई थी। यहां-वहां बारूदी सुरंगें बिछी थीं। आईईडी लगे थे। बियाबान रेगिस्तान। कुर्दिश सैनिकों की मदद से मैंने एरबिल सीमा से मोसुल देखने की कोशिश की। ठहरने की जगह नहीं थी। हमारे साथ चार लोग और थे।''

फर्श पर लेटकर रातें बिताईं

- ''हमें गवर्नर के पीए का कमरा दिया गया। वहां फर्श पर लेटकर रातें बिताईं। पड़ताल के दौरान हम लोगों से मिलते और अपने लोगों के फोटो दिखाकर पूछते कि क्या कोई हिंदुस्तानी इधर आया था? कुछ मना कर देते। कुछ झूठे जवाब से परेशान करते। वहां मौजूद सेना ने हमें मोसुल जाने नहीं दिया। उनका मानना था कि खतरा बरकरार है। बारूदी सुरंगें हटाई जा रही थीं। तीन दिन बाद हम खाली हाथ लौट आए।''

बांग्लादेशियों के साथ अली बनकर बचा हरजीत

- ''अगली बार अक्टूबर 2017 में फिर वहां पहुंचे। घंटों सड़कों पर घूम-घूमकर लोगों से बातें की। टीवी-रेडियो पर भी बोला कि किसी हिंदुस्तानी की कोई सूचना मिले तो बताएं। जिस टेक्सटाइल मिल में हमारे लोग काम करते थे, उसके मालिक से मुलाकात हुई। उसने और वहां हमारे लोगों को खाना खिलाने वाले ने बताया कि इन लोगों को आईएस आतंकियों ने देख लिया था। फिर इन्हें पकड़कर जेल में रखा। कुछ बांग्लादेशी भी साथ थे, जिन्हें जाने दिया गया। उन्हीं के साथ हरजीत मसीह भी बांग्लादेशी युवक अली बनकर भाग निकला।''

बदूश में सामूहिक कब्र का पता चला

- ''आईएस ने इसके बाद 39 भारतीयों को बदूश भेज दिया। फिर हम बदूश पहुंचे। वहां हमें सामूहिक कब्र का पता चला। जो एक टीले के नीचे था। वहीं हमने ग्राउंड पेनीट्रेशन रडार का इंतजाम किया। इससे शव की पुष्टि हुई। हमने प्रशासन से टीले को खुदवाने को कहा। वहां जो अवशेष और शव निकले उनमें कुछ लंबे बाल भी थे। हाथ का कड़ा भी मिला। और शवों की संख्या भी 39 थी। अवशेषों को बगदाद भेजा गया। वहां मार्टियर फाउंडेशन ने डीएनए जांच की।''

मिशन ने सेना के दिनों की याद दिलाई

- ''इसके बाद हमने लापता लोगों के परिवारों से लिए डीएनए सैंपल को शवों से मैच कराना शुरू किया। सबसे पहले संदीप कुमार का डीएनए मैच हुआ। फिर 5 और, 10 और..। सोमवार रात 38 डीएनए मैच होने की जानकारी दी गई। एक का डीएनए 70% मैच हुआ है। मैं तीन बार इराक गया। पहले तीन दिन, फिर चार दिन और इस साल जनवरी में एक दिन के लिए। ये मिशन मुझे सेना के दिनों की याद दिलाता है, जब हम टारगेट तक पहुंचने के लिए अपना सबकुछ दांव पर लगा देते हैं।''

हरजीत की कहानी, उसी की जुबानी...

- दूसरी ओर, आतंकियों के चंगुल से बचकर निकले हरजीत मसीह ने बताया, ''मैं जून 2013 में मोसलु गया था। आईएस के करीब 50 नकाबपोश आतंकी हमें अगवा कर एक टेक्स्टाइल फैक्ट्री में ले गए। वहां भारतीयों और बांग्लादेशियों को अलग-अलग किया गया। हम 40 भारतीयों को पहाड़ी इलाके में ले गए। सबको कतार में बैठाकर अंधाधुंध फायरिंग कर दी। चीख-पुकार के बीच गोलियां की आवाज गूंजती रही।''

- ''कुछ घंटे बाद जब होश आया तो मेरे चारों तरफ खून ही खून दिखा। सभी 39 साथी मर चुके थे। गोली मेरे दाएं पैर और हाथ को छूकर निकल गई थी। मैं वहां से जैसे-तैसे निकला। टैक्सी पकड़कर एयरपोर्ट पहुंचा। दसूरी टैक्सी ने मुझे आईएस के कब्जे वाली चेकपोस्ट तक पहुंचा दिया।''

- ''मैंने उन्हें बताया कि मैं बांग्लादेशी हूं, मेरा पासपोर्ट खो गया है। उन्होंने मुझे जाने दिया। मुझे मेरी कंपनी वापस भेज दिया। वहां मैंने किसी से फोन मांगकर भारतीय दूतावास से संपर्क किया। वहां से 14 जून 2014 को स्वदेश लौट आया।''
 
 

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