Sunday, 25th May 2025

मध्यप्रदेश: 12 हजार सिंधी विस्थापितों को राहत, ​मर्जर प्रभावितों को मालिकाना हक देने पर कैबिनेट की मंजूरी

Sat, Mar 17, 2018 6:15 PM

मर्जर प्रभावितों की राजधानी की 3 विधानसभा क्षेत्राों में करीब 2800 एकड़ जमीन विवाद में फंस गई थी।

 

भोपाल. भोपाल के 2 लाख से ज्यादा मर्जर प्रभावितों और सिंधी विस्थापितों को उनकी जमीन का मालिकाना हक मिल सकेगा। कैबिनेट ने शुक्रवार को इसकी मंजूरी दी। कैबिनेट के फैसले से राजधानी के 14 गांवों के लोगों को राहत मिली है। इनमें बैरागढ़ के तीन गांव लाऊखेड़ी, बोरवन और बहेटा, हलालपुर, बरेठा तथा निशातपुरा, शाहपुरा, कोटरा सुल्तानाबाद और सेवनिया गौड़ शामिल हैं। मर्जर प्रभावितों की राजधानी की तीन विधानसभा क्षेत्र हुजूर, उत्तर और दक्षिण विधानसभा करीब 2800 एकड़ जमीन विवाद में फंस गई थी। इसी आधार पर 2017 में तत्कालीन कलेक्टर निशांत वरवड़े ने कोहेफिजा, शहर भोपाल, धरमपुरी, छोला और नयापुरा में भी रोक लगा दी थी। हालांकि ईदगाह हिल्स इलाके के बारे में अभी कोई फैसला नहीं लिया गया है।


यह है मामला
- भोपाल रियासत के 30 अप्रैल 1949 के मर्जर एग्रीमेंट के परिप्रेक्ष्य को आधार मानते हुए तत्कालीन कलेक्टर आरके माथुर ने 2004 में स्वप्रेरणा निगरानी प्रकरण दर्ज करके नामांतरण, एनओसी और बिल्डिंग परमिशन, सीमांकन और डायवर्सन और खरीद फरोख्त पर रोक लगा दी थी।

- जून 2012 में तत्कालीन कलेक्टर निकुंज श्रीवास्तव ने इन प्रकरणों को खत्म कर दिया था और यह जमीन शासकीय और अशासकीय होने के विवाद के चलते निराकरण के लिए राज्य सरकार को भेज दिया था। 11 साल से इन जमीनों पर रोक लगी हुई थी। 
- अक्टूबर 2013 में तत्कालीन प्रमुख सचिव राजस्व अजीत केसरी ने प्रकरण समाप्त कर भोपाल कलेक्टर को भेज दिया गया था और स्वयं निर्णय लेने की बात कही थी, तभी से मामला विवाद में था।

सिंधी विस्थापित मामला

- भारत-पाकिस्तान के बीच हुए विभाजन के बाद मध्यप्रदेश में बसे सिंधी विस्थापितों को जमीनों के मालिकाना हक संबंधी जो विवाद लंबित हैं, उनका भी निपटारा किया जाएगा। ऐसे विस्थापितों के मामले भोपाल, कटनी बालाघाट, मंडला, जबलपुर और बुरहानपुर जिलों में लंबित हैं।

- विस्थापितों के पास अगर पट्टा है तो उसे रिन्यू किया जाएगा और संबंधित को मालिकाना हक दिया जाएगा। यदि अतिरिक्त जमीन कब्जे में है तो उसका मालिकाना हक भी दिया जाएगा। विस्थापितों के अधिकांश मामले राज्य सरकार और केंद्र के पुनर्वास विभाग के अधीन आ रही जमीनों के हैं। भोपाल में ऐसी जमीनें हलालपुर और बैरागढ़ के पुराने बैरक सी और टी वार्ड में है। इस तरह के अलग-अलग 109 प्रकरणों को सुलझाया जाएगा।

- पुनर्वास अधिनियम 2010 समाप्त होने के कारण मालिकाना हक के विवाद उलझ गए गए थे। कई विस्थापितों के पास रजिस्ट्री नहीं बल्कि अपंजीकृत दस्तावेज हैं, उनके भी मालिकाना हक मान्य किए जाएंगे। वहां नियमानुसार धनराशि और जुर्माना वसूला जाएगा। बकाया राशि ली जाएगी, लेकिन ब्याज माफ रहे उस पर ब्याज माफ रहेगा।

- आवंटित जमीन के अलावा जिस जमीन पर अतिरिक्त कब्जा है उसके संबंध में नियमितीकरण की कार्रवाई कर मालिकाना हक देंगे। 
- उदाहरण के लिए 2000 की कलेक्टर गाइड लाइन के हिसाब से यदि किसी के पास 500 वर्ग फीट आवासीय जमीन है तो जमीन की कीमत की पांच प्रतिशत राशि ली जाएगी। कमर्शियल जमीन की राशि की 20 प्रतिशत राशि वसूली जाएगी। इन जमीनों पर प्रतिवर्ष 7.5 प्रतिशत लीज रेंट लिया जाएगा।

30 साल का पट्टा मिलेगा

मध्यप्रदेश भू राजस्व संहिता में धारा 162 जोड़ी गई है। इसके तहत शहरी क्षेत्र में जो लोग सरकारी जमीन पर 2000 से काबिज हैं उन्हें प्रीमियर लेकर 30 साल का पट्टा दिया जाएगा। ऐसे मामलों में पट्टाधारी को 18 साल पुरानी स्थिति में कब्जा साबित करना होगा। इस संबंध में शीघ्र ही विधानसभा में विधेयक लाया जाएगा। इसके तहत शहरी सीमा से लगे हुए गांवों तथा राष्ट्रीय एवं राज्य राजमार्ग के दोनों तरफ 500 मीटर क्षेत्र शहरी क्षेत्र में 60 वर्ग मीटर में ही दिए जाएंगे।

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