मास्को.रूस में 18 मार्च को राष्ट्रपति चुनाव होने हैं। व्लादिमीर पुतिन चौथी बार पद की दौड़ में हैं। उनके सामने 7 राजनीतिक दलों ने उम्मीदवार उतारे हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि यह चुनाव कहने भर को हैं। सबको पता है कि पुतिन ही मेजॉरिटी से चुनाव जीतेंगे। ओपिनियन पोल में भी वेे सबसे आगे हैं। पुतिन को 70% वोट मिलने के आसार हैं। पुतिन सोवियत संघ के दौर में वहां की खुफिया एजेंसी केजीबी में 17 साल जासूस भी रहे हैं।
पुतिन और चुनाव के बारे में वो सबकुछ जो आप जानना चाहते हैं...
रूस में राष्ट्रपति के पास हैं सारी शक्तियां
- रूस में सारी शक्तियां राष्ट्रपति के पास ही हैं। राष्ट्रपति ही प्रधानमंत्री को नियुक्त करता है।
- यहां तक की रूस की संसद ही राष्ट्रपति के अनुमोदन पर राजनीतिक दलों को पहचान देता है।
- वहां वेस्टर्न स्टाइल डेमोक्रेटिक नहीं है। जैसे कि अमेरिका में दो दलीय व्यवस्था है, लेकिन सरकार के कामकाज में विपक्ष का पूरी तरह हस्तक्षेप होता है। जबकि, रूस में राष्ट्रपति ही सबकुछ है। उसका देश की पार्टियों पर भी पूरा नियंत्रण होता है। यहां मैनेज डेमोक्रेसी है। इलेक्शन का प्रबंधन काफी कमजोर है। इसे क्रेमलिन (राष्ट्रपति ऑफिस) मैनेज करता है।
17 साल तक केजीबी के जासूस भी रहे हैं पुतिन
- पुतिन को उनकी मजबूत पर्सनालिटी का भी फायदा मिलता है। वे सोवियत संघ के दौर में वहां की खुफिया एजेंसी कोमितेत गोसुदरास्तवेनोए बेजोपास्नोस्ती (केजीबी) में17 साल तक जासूस भी रहे हैं।
- वे अपनी स्पीच में जनता को यकीन दिलाते हैं कि उनका मकसद रूस को सोवियत यूनियन की तरह शक्तिशाली बनाना है।
- उन्होंने सीरिया, यूक्रेन और चेचन्या के मुद्दे पर जनता का दिल जीता है। अमेरिकी चुनाव में रूस के हस्तक्षेप की खबरों और पश्चिमी देशों द्वारा रूस पर लग रहे प्रतिबंधों ने भी पुतिन की लोकप्रियता बढ़ा दी है। हालांकि, रूस की अर्थव्यवस्था डगमगा रही है। मंदी जैसी स्थिति है। जीडीपी गिर रही है। ये पुतिन की चुनौतियां हैं।
पुतिन का खुलासा: मेरे बाबा लेनिन-स्टालिन के रसोइए थे
- पुतिन ने चुनाव से ठीक पहले एक डॉक्यूमेंट्री में खुलासा किया कि उनके बाबा स्पिरिडॉन पुतिन मार्क्सवादी नेता व्लादिमीर लेनिन और जोसेप स्टालिन के रसोइए थे। पुतिन बताते हैं कि उनके पिताजी भी कभी-कभी स्टालिन के घर जाते थे और आकर बताते थे कि वो लोग कैसे रहते हैं।
- पुतिन 2000 से लगातार रूसी सत्ता के केंद्र में बने हैं। 2000 और 2004 में राष्ट्रपति बने। रूस में कोई लगातार दो बार से ज्यादा राष्ट्रपति नहीं रह सकता। इसलिए 2008 में सहयोगी मदवेदेव को राष्ट्रपति बनवाकर खुद प्रधानमंत्री बने। 2012 में पुतिन फिर राष्ट्रपति बने और राष्ट्रपति का कार्यकाल 4 से बढ़ाकर 6 साल करा दिया। करीब 3 लाख करोड़ रुपए संपत्ति वाले पुतिन अब चौथी बार मैदान में हैं।
इस बार निर्दलीय चुनाव लड़ रहे
- पुतिन इस बार अपनी पार्टी यूनाइटेड रशिया की जगह निर्दलीय मैदान में है। ऐसा उन्होंने खुद को पार्टी से भी बड़ा दिखाने के लिए किया है।
- पुतिन के विरोधी कहते हैं कि यहां सिर्फ दिखावे का लोकतंत्र है। 2012 में वोटिंग के दो घंटे बाद पुतिन को विजेता घोषित कर दिया गया था। दो घंटे में 11 करोड़ वोटों की गिनती कैसे हुई? 2015 में उनके विरोधी बोरिस नेम्तसोव की हत्या कर दी गई। इस बार उन्हें टक्कर दे रहे विपक्षी नेता एलेक्सी नावाल्नी को करप्शन में फंसाकर आयोग्य साबित कर दिया।
रूस मंदी में, चुनाव से पहले न्यूनतम वेतन 13 हजार रुपए हुआ
- बढ़ती महंगाई और पश्चिमी देशों द्वारा रूस पर लगाए गए अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध बड़ी चुनौती हैं इसकी वजह से मंदी जैसे हालात हैं।
- पुतिन के 18 साल के शासन में हर तीन साल पर न्यूनतम भत्ते में कमी आई है। रूस की अर्थव्यवस्था तेल और गैस पर टिकी है। इसकी कीमत गिर चुकी है।
- विरोध से बचने के लिए चुनाव से पूर्व पुतिन ने न्यूनतम वेतन 13 हजार रुपए कर दिया है।
भारत पर असर: रूस-चीन में बढ़ रही दोस्ती, अच्छे संकेत नहीं है
- मौजूदा हालात में पुतिन का शक्तिशाली होना भारत के लिए बिल्कुल पॉजिटिव नहीं है। क्योंकि रूस और चीन साथ आ रहे हैं। दोनों का एजेंडा वेस्ट का विरोध है।
- रूस के पाक से संबंध मजबूत हुए हैं। वो तालिबानी आतंकियों का समर्थन कर रहा है और भारत की दोस्ती उन देशों से बढ़ी है, जो चीन के खिलाफ हैं।
दुनिया पर असर: रूस व पश्चिमी देशों के बीच परेशानी बढ़ेगी
- पुतिन के मजबूत होने से रूस और वेस्ट के बीच दिक्कत बढ़ेगी। वो और अधिक मजबूती के साथ वेस्ट का विरोध करेंगे। रूस खुद को अमेरिका के समकक्ष रखना चाहता है। यही वजह है कि वो यूक्रेन से लेकर सीरिया तक अमेरिका को हर जगह चुनौती दे रहा है। इसके अलावा ब्रिटेन से भी उसके रिश्ते काफी तनावपूर्ण हैं।
राष्ट्रपति बनने के लिए 50% से ज्यादा वोट हासिल करने होते है
- रूस में राष्ट्रपति को प्रत्यक्ष तौर पर जनता चुनती है। बहुदलीय व्यवस्था है। रूस की 14.2 करोड़ आबादी है। इनमें करीब 11 करोड़ वोटर हैं। राष्ट्रपति बनने के लिए 50% से ज्यादा वोट हासिल करने होते हैं। अगर कोई उम्मीदवार यह आंकड़ा नहीं छू पाता है, तो 3 हफ्ते बाद यानी 8 अप्रैल को दोबारा चुनाव होंगे। अब तक सिर्फ 1996 में ही दोबारा चुनाव कराने की नौबत आई है।
- यहां उप-राष्ट्रपति का पद ही नहीं होता है। अगर राष्ट्रपति की मौत हो जाए या पद से हटा दिया जाए तो प्रधानमंत्री नए राष्ट्रपति के चुनाव तक कार्यकारी राष्ट्रपति रहता है। 3 माह में राष्ट्रपति चुनाव कराने होते हैं।
ये भी जानें...
- 1963 करोड़ रुपए चुनावी खर्च के तौर पर दिए गए हैं रूस के चुनाव आयोग को
- 14 हजार के करीब बैलेट प्रोसेसिंग व इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग सिस्टम हर केंद्र पर।
- 42 लाख रुपए के खर्च से इस बार राष्ट्रपति चुनाव का लोगो तैयार किया गया है।
- रूसी महिलाओं को दुनिया में सबसे पहले रूसी क्रांति के बाद 1917 में मतदान का हक मिला था। इसके बाद जर्मनी में 1919, अमेरिका में 1920, ब्रिटेन में 1928, स्पेन में 1931 और फ्रांस में 1944 में महिलाओं को वोटिंग का हक मिला था।
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