रायपुर। अबूझमाड़ छत्तीसगढ़ स्थित एक ऐसा इलाका, जिसके बारे में पूरी तरह आज भी कोई नहीं जानता। यहां अब भी कैसे और कितने हैं आदिवासी हैं, किसी को नहीं पता। इनकी सही संख्या तो छोड़िए, यह रोंगटे खड़े कर देने वाला ऐसा रहस्यमय इलाका है जिसका आज इस इक्कीसवीं सदी में भी राजस्व सर्वेक्षण नहीं हो पाया है। प्रयास अब भी जारी है।
अब भी नहीं जाता कोई अंदर : प्राकृतिक सौंदर्य से भरे मगर बाहरी दुनिया से पूरी तरह कटे अबूझमाड़ में जिंदगी आपकी कठोरतम परीक्षा लेती है। हालात का अंदाजा इसी से लगा लीजिए कि सन 1986 में बीबीसी की टीम ने किसी तरह यहां के घोटुलों में रहे नग्न जोड़ों की फिल्म उतार ली थी, इसके बाद इस इलाके में बाहरी दुनिया के लोगों का प्रवेश पूरी तरह प्रतिबंधित कर दिया गया। अब जाकर, सन 2009 में छत्तीसगढ़ सरकार ने यह प्रतिबंध हटाया। हालांकि इसके बाद भी कोई बाहरी आदमी अबूझमाड़ के अंधकार से घिरे जंगलों में नहीं जाता।
इतना घना कि नहीं पहुंचती सूरज की किरणें : नारायणपुर जिले से लेकर महाराष्ट्र तक लगभग 4400 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला अबूझमाड़ का जंगल आजादी के 70 साल बाद भी दुनिया के लिए अबूझ पहेली ही है। अबूझमाड़ के जंगलों में आज भी आदिम संस्कृति फल फूल रही है।
माड़िया आदिवासियों का घर
चारों ओर ऊंचे पहाड़ों, नदियों-नालों से घिरे अबूझमाड़ में अनुमानत: 237 गांव हैं जिनमें माड़िया जनजाति रहती है। माड़िया जनजाति दो उपवर्ग में विभाजित है -अबूझ माड़िया और बाइसन हार्न माड़िया। अबूझ माड़िया पहाड़ों पर रहते हैं जबकि बाइसन हार्न माड़िया इंद्रावती नदी के मैदानी जंगलों में। बाइसन हार्न माड़िया नाम इसलिए दिया गया है क्योंकि ये घोटुल में या अन्य खास मौकों पर समूह नृत्य के दौरान बाइसन यानी गौर के सींग का मुकुट पहनते हैं। अबूझमाड़ के दुरूह जंगलों में निवासरत माड़िया जनजाति का बाहरी दुनिया से संपर्क सिर्फ नमक, तेल तक है।
Comment Now