नई दिल्ली. कोमा में जा चुके या मृत्यु शैय्या पर पहुंच चुके लोगों को निष्क्रिय इच्छामृत्यु (Passive Euthanasia) का हक होगा। सुप्रीम कोर्ट की कॉन्स्टीट्यूशन बेंच ने शुक्रवार को यह अहम फैसला सुनाया। कोर्ट ने इस मामले में 12 अक्टूबर को फैसला सुरक्षित रखा था। आखिरी सुनवाई में केंद्र ने इच्छा मृत्यु का हक देने का विरोध करते हुए इसका दुरुपयोग होने की आशंका जताई थी। फैसला देने वाली बेंच में चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस एके सीकरी, जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस डीवाय चंद्रचूड़ और जस्टिस अशोक भूषण शामिल थे।
एनजीओ ने लगाई थी पिटीशन
- एक एनजीओ ने लिविंग विल का हक देने की मांग को लेकर पिटीशन लगाई थी। उसने सम्मान से मृत्यु को व्यक्ति का हक बताया था।
- लिविंग विल में व्यक्ति जीवित रहते वसीयत लिख सकता है कि लाइलाज बीमारी की वजह से मृत्यु शैय्या पर पहुंचने पर उसके शरीर को लाइफ सपोर्टिंग सिस्टम पर न रखा जाए।
केंद्र ने कहा- मेडिकल बोर्ड ही करता है फैसला
- बहस के दौरान केंद्र ने कहा था कि अरुणा शानबाग केस में कोर्ट मेडिकल बोर्ड को ऐसे दुर्लभ मामलों में लाइफ सपोर्टिंग सिस्टम हटाने का हक दे चुका है। वैसे भी हर केस में आखिरी फैसला मेडिकल बोर्ड की राय पर ही होगा। अगर कोई लिविंग विल करता भी है तो भी मेडिकल बोर्ड की राय के आधार पर ही लाइफ सपोर्टिंग सिस्टम हटाया जाएगा।
लिविंग विल क्या है?
- यह एक लिखित दस्तावेज होता है, जिसमें आपको बता दें कि 'लिविंग विल' एक लिखित दस्तावेज होता है जिसमें कोई मरीज पहले से अपनी इच्छा लिख देता है कि मृत्यु शैया पर पहुंचने या रजामंदी नहीं दे पाने की स्थिति में पहुंचने पर उसे किस तरह का इलाज दिया जाए।
इच्छामृत्यु क्या है?
- किसी गंभीर या लाइलाज बीमारी से पीड़ित शख्स को दर्द से निजात देने के लिए डॉक्टर की मदद से उसकी जिंदगी का अंत करना
है। यह दो तरह की होती है। सक्रिय इच्छामृत्यु (Active Euthanasia), निष्क्रिय इच्छामृत्यु (Passive Euthanasia)।
सक्रिय इच्छामृत्यु क्या है?
- इसमें मरीज को जहर या पेनकिलर के इन्जेक्शन का ओवरडोज देकर मौत दी जाती है। इसे भारत समेत ज्यादातर देशों में अपराध माना जाता है। सुप्रीम कोर्ट ने इसे मंजूरी नहीं दी है।
निष्क्रिय इच्छामृत्यु क्या है?
- अगर कोई लंबे समय से कोमा में है तो उसके परिवार वालों की इजाजत पर उसे लाइफ सपोर्ट सिस्टम से हटाना निष्क्रिय इच्छामृत्यु है। सुप्रीम कोर्ट ने मुंबई की नर्स अरुणा शानबाग मामले में दायर पिटीशन पर 7 मार्च 2011 को निष्क्रिय इच्छामृत्यु की इजाजत दे दी थी। हालांकि, कोर्ट ने अरुणा शानबाग के लिए दायर की गई पिटीशन खारिज कर दी थी।
केंद्र सरकार किस बात के खिलाफ थी?
- केंद्र सरकार लिविंग विल के खिलाफ है। वह अरुणा शानबाग मामले में दिए गए सुप्रीम कोर्ट के फैसले के आधार पर सक्रिय इच्छामृत्यु पर सहमति देने को तैयार है। उसका कहना है कि इसके लिए कुछ शर्तों के साथ ड्राफ्ट तैयार है। इसमें जिला और राज्य के मेडिकल बोर्ड सक्रिय इच्छामृत्यु पर फैसला करेंगे। लेकिन मरीज कहे कि वह मेडिकल सपोर्ट नहीं चाहता यह उसे मंजूर नहीं है।
पहली बार 2011 में शुरू हुई थी इच्छामृत्यु पर बहस
- इच्छामृत्यु को लेकर सबसे पहले बहस साल 2011 में शुरू हुई थी। जब 38 साल से कोमा की स्टेट में रह रहीं केईएम अस्पताल की नर्स अरुणा शानबाग को इच्छा मृत्यु देने के लिए सुप्रीम कोर्ट में एक पिटीशन दायर की गई थी।
- अरुणा शानबाग के साथ 27 नवंबर 1973 में अस्पताल के ही एक वार्ड ब्वॉय ने रेप किया था। उसने अरुणा के गले में कस दी थी जिससे वे कोमा में चली गईं। वे 42 साल तक कोमा में रहीं। अरुणा की स्थिति को देखते हुए उनके लिए इच्छामृत्यु की मांग करते हुए एक पिटीशन दायर की गई थी, लेकिन तब कोर्ट ने यह मांग ठुकरा दी थी।
- इसके अलावा केरल के एक टीचर ने भी कोर्ट के सामने इच्छामृत्यु की मांग रखी थी। जिसे केरल हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया था।
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