इंदौर। 34 साल पहले जब महिलाएं घर की चहारदीवारी से बाहर निकलने में संकोच करती थीं, उस दौर में छोटे से मोहल्ले से कुटीर उद्योग शुरू कर परिवार का संबल बनी और अब सांवेर रोड औद्योगिक क्षेत्र में बड़ी फैक्टरी की संचालक है।
फैक्टरी भी इस लिहाज से अनूठी है कि इसमें 60 प्रतिशत महिला कर्मचारी हैं। यहां महिलाएं काम करने जाती हैं और तैयार होकर बाहर आती हैं। फैक्टरी के अंदर ही ब्यूटी पॉर्लर बना दिया गया है। फैक्टरी में नियम है कि महिला कर्मचारी काम के साथ खुद पर भी ध्यान देंगी। उनके लिए ब्यूटी पॉर्लर में आना भी जरूरी है।
1984 में नंदानगर क्षेत्र में एक गृहिणी आशा दरियानी ने कुटीर उद्योग के तौर पर घर में बच्चों के लिए मिठाई-टॉफी बनाना शुरू किया था। अब वे डायरेक्टर के तौर पर सांवेर रोड औद्योगिक क्षेत्र में करीब सवा दो लाख वर्गफीट में फैली 'आशा कन्फेक्शनरी" फैक्टरी संचालित कर रही हैं। मौजूदा सालाना टर्नओवर सवा सौ करोड़ के पार पहुंच चुका है। 66 वर्ष की हो चुकी आशा दरियानी को 2017 में उद्योग मंत्रालय राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित कर चुका है।
असर काम पर
डायरेक्टर दरियानी के मुताबिक फैक्टरी में 800 से ज्यादा कर्मचारी हैं। 468 महिलाएं हैं जो पूरे दिन प्रोडक्शन से लेकर क्वालिटी कंट्रोल और पैकेजिंग सेक्शन तक में काम कर रही हैं। सिर्फ नाइट शिफ्ट और लोडिंग-अनलोडिंग जैसे कामों के लिए पुरुष कर्मचारी हैं। यहां काम कर रही ज्यादातर महिलाएं औसत पढ़ी-लिखी हैं और कमजोर आर्थिक पृष्ठभूमि की हैं। ये नौकरी के अलावा शायद ही खुद के लिए समय निकालती पाती हैं। लिहाजा हमने फैक्टरी में न केवल ब्यूटी पॉर्लर बनाया बल्कि हर 15 दिन में प्रत्येक कर्मचारी के लिए वहां जाना भी जरूरी किया है।
पॉर्लर में फुल टाइम प्रोफेशनल स्टाफ है। महिला कर्मियों को सैनिटरी पैड से लेकर टूथ ब्रश तक फैक्टरी दे रही है। सिलसिला शुरू हुए पांच साल होने जा रहे हैं। असर काम पर नजर आता है अच्छा दिखने, सेहतमंद रहने पर कर्मचारियों का कॉन्फिडेंस बढ़ता है।
नियम ऐसे
- 15 दिन में महिलाओं का पॉर्लर का उपयोग जरूरी।
- हेयरकट न कराएं तो भी पेडिक्योर-मेनिक्योर जरूरी।
- फैक्टरी से सभी कर्मचारियों को महीने में दो टूथ ब्रश दिए जाते हैं।
- पुराने टूथ ब्रश जमा कराना होता है ताकि देख सकें कि उपयोग किया या नहीं।
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