चेन्नई। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की हालत सुधारने के लिए उनमें डाली जा रही पूंजी पर सख्त निगरानी और अनुशासन की जरूरत है। इस काम को अंजाम देने के लिए निजी क्षेत्र के सहयोग की जरूरत है। मुख्य आर्थिक सलाहकार (सीईए) अरविंद सुब्रमणियन ने शनिवार को यह बात कही।
वह मद्रास मैनेजमेंट एसोसिएशन के वार्षिक सम्मेलन, 2018 को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा, 'भारत में बैंकिंग सेक्टर के विकास की राह में सबसे बड़ी बाधा दोहरी बैलेंस शीट है। मुझे लगता है कि इस समस्या के समाधान के लिए चार 'आर' की जरूरत है। रिकॉग्निशन यानी पहचान, रिजॉल्यूशन यानी समाधान, रीकैपिटलाइजेशन यानी पुनर्पूंजीकरण और रिफॉर्म यानी सुधार।'
सीईए ने कहा कि पहले कदम के तहत बैंकों के फंसे कर्जों और दबाव वाले कर्जों की पहचान की जानी चाहिए। दूसरा कदम है रिजॉल्यूशन का और संभवतः दिवालिया कानून बनाते समय सरकार व रिजर्व बैंक ने इसी को ध्यान रखा होगा।
तीसरा कदम, पुनर्पूंजीकरण का है। सरकार ने चालू वित्त वर्ष में बैंकों में 2.10 लाख करोड़ रुपए की पूंजी डालने की बात कही है। चौथे कदम यानी सुधार के मोर्चे पर सख्ती की जरूरत है। बैंकों को पुनर्पूंजीकरण के रूप में डाली जा रही पूंजी की सख्त जांच और निगरानी होनी चाहिए।
यह सब बेहद अनुशासित रूप से होना जरूरी है। ऐसा सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में निजी क्षेत्र की सहभागिता से ही संभव हो सकता है। उन्होंने कहा, 'हाल के दिनों में बड़े सरकारी बैंकों के संकट के चलते लोग इनमें निजी क्षेत्र की सहभागिता के बारे में गंभीरता से सोच रहे हैं।'
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