भोपाल। सुनने में आश्चर्य होगा, लेकिन यह सही है कि मप्र के ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाले लोग शहरियों की अपेक्षा शराब पर ज्यादा खर्च करते हैं। गांव में शराब पीने वाला व्यक्ति हर महीने 2 हजार रुपए, तो शहरी व्यक्ति लगभग 1400 रुपए की शराब महीने भर में पीता है।
यह आंकड़े पिछले दिनों मप्र की कैबिनेट बैठक में पेश की गई आबकारी नीति में सामने आए हैं। पिछले 13 सालों में शराब पीने वाले नागरिकों का शराब पर खर्च दोगुना हो गया है। 2003 में ग्रामीण हर महीने एक हजार रुपए शराब पर खर्च करते थे, वहीं 2016 में बढ़कर यह 2 हजार रु. प्रति महीना हो गया।
शहरी क्षेत्रों में 2003 में शहरी व्यक्ति करीब 450 रुपए हर महीने शराब पर खर्च करता था, यह बढ़कर 1400 रु. पर पहुंच गया। हालांकि आंध्रप्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, महाराष्ट्र और उप्र जैसे राज्यों में शराब पर मप्र से ज्यादा खर्च किया जाता है
राजस्व कमाने में आगे मध्य प्रदेश शराब दुकानों से राजस्व कमाने में इन राज्यों से आगे है। राजस्थान हर शराब दुकान से साल में 50 लाख रुपए कमाता है। उत्तर प्रदेश 80 लाख, महाराष्ट्र 1 करोड़ 20 लाख रुपए हर साल कमाता है, जबकि मध्य प्रदेश को 2 करोड़ 8 लाख रुपए एक शराब दुकान से आय होती है। हालांकि मध्य प्रदेश से ज्यादा राजस्व कमाने वाले भी कई राज्य हैं।
मध्यप्रदेश में एक लाख की आबादी पर 5 शराब दुकान
मप्र में हर एक लाख की आबादी पर 5 शराब दुकानें हैं। हरियाणा, राजस्थान, महाराष्ट्र, उप्र जैसे राज्यों से तुलना की जाए तो मप्र में शराब दुकानों की संख्या कम है। राजस्थान में हर एक लाख की आबादी पर 19, हरियाणा में 14, महाराष्ट्र में 13 और उत्तर प्रदेश में 9 शराब की दुकानें हैं।
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