भोपाल । वैसे तो सिर्फ उज्जैन स्थित महाकाल मंदिर में ही भगवान शिव की भस्म आरती होती है, लेकिन राजधानी में भी एक मंदिर ऐसा है जहां भोले की विशेष भस्म आरती शव की ताजी राख से की जाती है। यह मंदिर शहर के छोला विश्राम घाट में स्थित हैं।
इस मंदिर में मुक्तेश्वर महाकाल विराजमान हैं। यहां पर साल में दो बार मुक्तेश्वर महाकाल का विशेष श्रृंगार किया जाता है। जिसे देखने के लिए दूर दराज के क्षेत्रों से भी भक्त यहां आते हैं। उज्जैन में बाबा महाकाल की प्रतिदिन भस्म आरती की जाती है।
वहीं भोपाल के मुक्तेश्वर महाकाल मंदिर में भगवान भोलेनाथ का भस्म (शव भस्म) से श्रृंगार सावन के पहले सोमवार और शिवरात्रि को ही किया जाता है। मंदिर समिति के पदाधिकारियों ने बताया कि सुबह चार बजे से पूरे विधि-विधान के साथ ताजी भस्म से बाबा मुक्तेश्वर महाकाल की पूजा-अर्चना की जाती है।
भगवान शिव के भूतेश्वर रूप में दर्शन करने लगता है भक्तों तांता भगवान शिव के भूतेश्वर रूप में दर्शन करने हजारों श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं। साथ ही मेले का आयोजन भी किया जाता है। शिवरात्रि के अवसर पर भगवान शिव की साढ़े तीन सौ टन वजनी चांदी के पतरे से सजाई गई मुर्ति के साथ बारात निकाली जाती है। ढोल बाजों के साथ लोग भगवान शिव की बारात में शामिल होते हैं। सावन और शिवरात्रि के अवसर पर मेले का भी आयोजन किया जाता है।
मंदिर में शिव और शक्ति के एक साथ दर्शन
मंदिर में शिव और शक्ति के एक साथ दर्शन होते हैं। मंदिर में मां काली की प्रतिमा के ठीक सामने भोले बाबा की पिंडी है। मंदिर के पुजारी महंत गोपाल दास पुरोहित बताते हैं कि यह मंदिर अति प्राचीन है। भगवान भोले की उपासना के कई रूपों में की जाती है। मां काली से सामने ही मुक्तेश्वर बाबा का होना ही कई प्रकार के अनुष्ठानों और सिद्धि प्राप्ति के लिए उपासना करने वालों के लिए विशेष स्थान है।
ऐसे होता है भगवान का भस्म श्रृंगार
भस्म से श्रृंगार के लिए तैयारियां रात दो बजे से शुरू होती हैं। पूजन के लिए छोला विश्राम घाट से ताजी भस्म को सफेद कपड़े में लाया जाता है। पहले बाबा भोलेनाथ को स्नान कराया जाता है फिर चिताओं की ताजी भस्म से मंत्रोच्चार के साथ पूजाअर्चना की जाती है।
भगवान शिव भूतेश्वर स्वरूप में सभी को दर्शन देते हैं। पैर पुजाई की होती है रस्म: शिवरात्रि पर भोले का दुल्हे के रूप में श्रंगार किया जाता है। यही नहीं शिव बारात के बाद लोगों द्वारा नए वर-वधु के लिए पैर पुजाई की रस्म भी अदा की जाती है।
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