नई दिल्ली.सुप्रीम कोर्ट शुक्रवार को बोफोर्स घोटाले से जुड़ी पिटीशन पर सुनवाई करेगा। तोपों की खरीद में 64 करोड़ रु. की दलाली के मामले में बीजेपी नेता और वकील अजय अग्रवाल ने पिटीशन फाइल की है। कोर्ट ने पिछली सुनवाई में अग्रवाल से पूछा था कि थर्ड पार्टी के तौर पर पिटीशन दायर करने के पीछे उनका मकसद क्या है? बता दें कि भारतीय सेना के लिए 400 तोपें खरीदने की डील 1986 में हुई थी। इसमें इटली के कारोबारी ओत्तावियो क्वात्रोची को बड़ी दलाली मिली। कांग्रेस ने हमेशा राजीव गांधी के रोल से इनकार किया है। CBI जांच के बाद दिल्ली हाईकोर्ट ने 2004 में राजीव को क्लीन चिट दी थी।
- अग्रवाल ने 31 मई, 2005 को आए दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ पिटीशन फाइल की है। तब कोर्ट ने आरोपियों को बरी कर दिया था। शुक्रवार को इस मामले की सुनवाई सीजेआई दीपक मिश्रा, जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस डीवाय चंद्रचूड़ की बेंच के सामने होगी।
- 16 जनवरी को पिछली सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने अग्रवाल से पूछा था कि थर्ड पार्टी के तौर पर पिटीशन फाइल करने के पीछे उनका मकसद क्या है? आज वकील अग्रवाल कोर्ट को इसका जवाब देंगे।
- बता दें कि अजय अग्रवाल 2014 के लोकसभा इलेक्शन में सोनिया गांधीके लिए खिलाफ रायबरेली से चुनाव लड़ चुके हैं।
- बोफोर्स तोप घोटाले को आजाद भारत के बाद सबसे बड़ा मल्टीनेशनल स्कैम माना जाता है। 1986 में हथियार बनाने वाली स्वीडन की कंपनी बोफोर्स ने भारतीय सेना को 155mm की 400 तोपें सप्लाई करने का सौदा किया था। यह डील 1.3 अरब डाॅलर (डॉलर के मौजूदा रेट से करीब 8380 करोड़ रुपए) की थी।
- 1987 में यह बात सामने आई थी कि यह डील हासिल करने के लिए भारत में 64 करोड़ रुपए दलाली दी गई। उस समय केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी। राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे।
- स्वीडिश रेडियो ने सबसे पहले 16 अप्रैल 1987 में दलाली का खुलासा किया। इसे ही बोफोर्स घोटाला या बोफोर्स कांड के नाम से जाना जाता है। इसी घोटाले के चलते 1989 में राजीव गांधी की सरकार गिर गई थी।
- आेलोफ पाल्मे की बाद में हत्या हो गई थी।
- आरोप था कि राजीव गांधी परिवार के नजदीकी बताए जाने वाले इटली के कारोबारी ओत्तावियो क्वात्रोची ने इस मामले में बिचौलिए की भूमिका अदा की। इसके बदले में उसे दलाली की रकम का बड़ा हिस्सा मिला। दलाली देने के लिए एक मुखौटा कंपनी ए.ई. सर्विसेस बनाई गई थी। क्वात्रोची की 2013 में मौत हो गई थी।
- 1997 में इस मामले की जांच सीबीआई को सौंपी गई। जांच पूरी होने में 18 साल लगे, जिस पर 250 करोड़ रुपए खर्च हुए।
- सीबीआई जांच पर सुनवाई के बाद दिल्ली हाईकोर्ट ने राजीव गांधी को इस मामले में क्लीन चिट दे दी थी।
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