Thursday, 22nd May 2025

एक मौका और मिले तो टारगेट हिट कर शहीद हो जाऊं: आदित्य विक्रम पेठिया

Fri, Jan 26, 2018 6:27 PM

भोपाल। 'सीमा पर पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध। चारों तरफ जमकर गोलाबारी। मैं पश्चिमी सेक्टर में बतौर फ्लाइट लेफ्टिनेंट बॉम्बर स्क्वाड्रन पर तैनात था। 5 दिसंबर 1971 को पाकिस्तान के चिश्तियां मंडी इलाके में टैंकों को नेस्तनाबूत करने का आदेश मिला। तुरंत सर्च एंड स्ट्राइक ऑपरेशन शुरू कर दिया। तभी जानकारी मिली कि बहावलपुर से टैंकों को लेकर ट्रेन गुजर रही है। इसी इलाके में गोला-बारूद का डिपो भी था। बस फिर क्या था... मैंने तुरंत टारगेट किया और ट्रेन के साथ डिपो को भी उड़ा दिया।

हमारे लड़ाकू विमान को निशाना बना रही पाकिस्तान की एंटीएयरक्राप्ट गन को ध्वस्त करने के लिए मैंने एक बार फिर उड़ान भरी लेकिन निशाना साधने से पहले ही पाकिस्तान की एंटी एयरक्राफ्ट गन ने मेरे विमान को हिट कर दिया। जलते विमान से मैं पैराशूट की मदद से कूद गया। जहां उतरा वो पाकिस्तान की सीमा थी और मैं युद्धबंदी बना लिया गया। बस... यहीं चूक गया, इसकी टीस आज भी दिल में कसकती है। मौका मिले तो एक बार फिर एयरफोर्स ज्वाइन कर लूं और टारगेट हिट कर शहीद हो जाऊं।"

1971के भारत-पाक युद्ध की यह बात करते हुए रिटायर्ड एयर वाइस मार्शल आदित्य विक्रम पेठिया के चेहरे पर 45 साल पहले वाला फ्लाइट लेफ्टिनेंट का जोश झलक उठता है। वे और उनकी पत्नी भोपाल में ई-7, अरेरा कॉलोनी में रह रहे हैं।

युद्धबंदी के रूप में मिलीं अहसनीय यातनाएं

 

आदित्य को युद्धबंदी के तौर पर रावलपिंडी जेल में रखा गया। जहां कड़ाके की ठंड में पत्थर के प्लेटफॉर्म पर नंगे बदन सोना पड़ता था। हाथ-पैर रस्सी से बंधे रहते थे। वे बताते हैं- 'खाने में एक-दो रोटी मिल जाए तो बहुत था। जेल का कोई भी अफसर बैरक में कभी भी आता और जलती सिगरेट से दागकर चला जाता। बंदूक की बट, लाठियों और टेबल टेनिस के रैकेट की मार से शरीर की लगभग सारी हड्डियां टूट चुकी थीं। फिर भी जल्लादों का दिल नहीं पसीजता तो पायों के नीचे हथेलियां रखवाकर खाट पर कूदते थे।

एक समय ऐसा भी आया जब सिर्फ आवाज सुनाई देती थी कि कोई पीट तो रहा है, पर दर्द का अहसास खत्म हो गया। कंधे, घुटने, फेफड़ों समेत हर अंग जवाब दे चुका था। मैंने मौत को काफी नजदीक से महसूस किया लेकिन हिम्मत नहीं हारी। आखिरकार पाकिस्तान ने 5 महीने 3 दिन और 8 घंटे बाद रिहा कर दिया। रिहाई की खुशी तो थी पर जेल में अन्य युद्धबंदी साथियों की चिंता सताती रहती थी। अदम्य साहस के लिए पेठिया को 26 जनवरी 1973 को वीर चक्र से सम्मानित किया गया।"

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