बड़वानी। अस्सी के दशक में जब सामान्य तौर पर कुष्ठ रोगियों को छूना तो दूर, उन्हें देखने तक से आमजन कतराते थे, ऐसे समय में आशा की किरण के रूप में आशाग्राम ट्रस्ट का उद्भव हुआ। जिला मुख्यालय पर स्थापित इस संस्था ने कुष्ठ रोगियों को न सिर्फ अपनाया, बल्कि उन्हें स्वावलंबी बनाने की दिशा में भी प्रशंसनीय कार्य किया। संस्था के प्रमुख रहे हीरालाल शर्मा का निधन गत वर्ष जून माह में हुआ।
संस्था की स्थापना से अंतिम सांस तक उन्होंने तन, मन व धन से संस्था को सींचा और वटवृक्ष में रूप में तैयार किया। आज यह संस्था न सिर्फ कुष्ठ रोगियों बल्कि दिव्यांगों, वृद्धों, असहायों, मनोरोगियों आदि का बड़ा सहारा बन चुकी है। आशाग्राम ट्रस्ट के संस्थापक सचिव व अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय रीवा के पूर्व कुलपति डॉ. एसएन यादव ने बताया कि निमाड़ अंचल के बड़वानी-खरगोन जिले में कुष्ठ रोगियों की संख्या अधिक थी।
संस्था की शुरुआत से पूर्व ग्रामीण अंचलों में ऐसा अंधविश्वास फैला था कि कुष्ठ रोगी को जिंदा दफना दो तो अगली सात पीढ़ियों तक किसी को यह रोग नहीं होगा। ऐसी अमानवीय मान्यता के समय में संस्था ने अपना काम शुरू किया। ऐसे कुष्ठ रोगियों को संस्था ने अपनाया जिन्हें उनके परिवार वालों ने ही घर से बाहर कर दिया था।
ऐसे ठुकराए गए रोगियों को संस्था ने आसरा दिया और उन्हें आत्मसम्मान व आत्मनिर्भरता से जीवन जीने के लिए विभिन्न् व्यवसायों या कार्यों से जोड़ा। कुष्ठ रोगियों को प्रशिक्षण देकर व कृत्रिम अंग देकर आत्मनिर्भर बनाया गया। जो आशाग्राम जो कुष्ठ रोगियों की बस्ती थी, आज शहर का प्रमुख हिस्सा बन गया है।
वर्तमान में आशाग्राम में 98 कुष्ठ रोगी अपने कुल 350 परिवारजनों के साथ निवासरत हैं। ट्रस्ट व उसके ट्रस्टियों को एक दर्जन से अधिक राष्ट्रीयअंतरराष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुके हैं। इसके अतिरिक्त स्थानीय, जिला स्तरीय एवं संभाग स्तरीय कई समाजसेवी संस्थाओं द्वारा ट्रस्ट व ट्रस्टियों को विभिन्न् सम्मानों व पुरस्कारों से नवाजा गया है।
आशाग्राम ट्रस्ट के अन्य कार्य
- 2010 से ट्रस्ट में बड़वानी व खरगोन जिले में केअर इंडिया रायपुर के सहयोग से अ-क्षय भारत परियोजना का संचालन किया जा रहा है। इसके तहत टीबी के मरीजों व संभावित मरीजों को खोजना व उन्हें डाट्स उपलब्ध कराया जाता है।
- 1990 से ट्रस्ट में कृत्रिम अंग व उपकरण केंद्र की स्थापना की गई। मोबाइल यूनिट के माध्यम से सम्पूर्ण मप्र में शिविर स्थल पर ही द्विव्यांगों को कृत्रिम उपकरण उपलब्ध कराए जाते हैं।
- सर्वशिक्षा अभियान के सहयोग से ट्रस्ट द्वारा विशेष आवश्यकता वाले बच्चों के छात्रावास का संचालन 2009 से किया जा रहा है।
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