Thursday, 22nd May 2025

नक्सलियों से लोहा लेने कलम छोड़ शिक्षक ने उठा ली थी बंदूक

Thu, Jan 25, 2018 10:18 PM

कोरबा। नक्सलियों से लोहा लेने के जुनून कुछ ऐसा चढ़ा की बच्चों को पढ़ाने वाले शिक्षक मूलचंद कंवर ने कलम छोड़ खाकी वर्दी पहन ली और बंदूक उठा लिया। अभी उपनिरीक्षक बने दो साल ही नहीं हुए थे, पर नारायणपुर के इरपानार के जंगल में नक्सलियों से हुई मुठभेड़ में शहीद हो गया।

यह खबर उसके गांव घनाडबरी पहुंची तो शोक की लहर दौड़ गई और माहौल गमगीन हो गया। परिजनों पर मानों दुख का पहाड़ टूट पड़ा, पर इसके साथ ही शहादत के गर्व का भी एहसास गांव का हर शख्स कर रहा था।

कुसमुंडा के बाता-बिरदा के नजदीक स्थित घनाडबरी गांव में रहने वाला मूलचंद कंवर (30) की नौकरी शिक्षा कर्मी के रूप में लग गई थी, फिर भी पर कुछ कर गुजरने की कशक उसका पीछा कर रही थी।

यही वजह है कि वह जब कभी भी पुलिस विभाग में अवसर आता, वह पहुंच जाया करता था। वह अपने इस प्रयास में सफल रहा और दो साल पहले उपनिरीक्षक बन गया। भर्ती से पहले ही वह यह जानता था कि पोस्टिंग के साथ ही उसे धूर नक्सली क्षेत्र भेजा जाएगा और शायद उसकी इच्छा भी यही थी। ट्रेनिंग के साथ ही उसकी नियुक्ति नारायणपुर जिले में की गई।

बताया जा रहा है कि बुधवार को सुबह से ही डीआरजी और नक्सलियों के बीच मुठभेड़ चल रहा था। इस दौरान दो सबइंस्पेक्टर समेत चार जवान शहीद हो गए, जिसमें मूलचंद कंवर भी शामिल हैं।

शहीद जवानों का पार्थिव शरीर नारायणपुर के जिला अस्पताल में रखा गया है। गुरूवार को वैधानिक प्रक्रिया संपन्ना होने के बाद मूलचंद का पार्थिव शरीर घनाडबरी भेजा जाएगा और यहां राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार होगा।

चार भाई-दो बड़ी बहन, पत्नी प्रोफेसर

मूलचंद की पत्नी इंदुप्रभा पॉलीटेक्नीक कॉलेज जांजगीर में प्रोफेसर है। एक साल पहले ही शादी हुई थी। चार भाईयों में वह सबसे बड़ा था, जबकि उससे दो बड़ी बहन रामबाई व राजबाई है। राजबाई के पति का निधन हो जाने पर अनुकंपा नियुक्ति में ढेलवाडीह में नौकरी करती है। माता मगधनबाई एवं पिता बंधन सिंह गांव में ही खेती किसानी करते हैं।

पोड़ी-उपरोड़ा में बच्चों को पढ़ाया पांच साल

करीब पांच साल तक पोड़ी-उपरोड़ा में शिक्षा कर्मी के रुप में मूलचंद ने बच्चों को पढ़ाया। बहन रामबाई ने नईदुनिया को बताया कि दशहरा पर्व के अवसर पर उसका भाई मूलचंद घर आया था, नक्सली क्षेत्र में होने की वजह से उसकी चिंता हमेशा लगी रहती थी, पर वह हमेशा कहता था कि अपने बहादुर भाई पर भरोसा करे, मुझे कुछ नहीं होगा। 3 दिन रूकने के बाद वापस लौट गया था।

हौसले की मिसाल 

संभावना है कि गणतंत्र दिवस 26 जनवरी को ही मूलचंद का अंतिम संस्कार घनाडबरी में हो सकता है। नारायणपुर से मिली सूचना के बाद कुसमुंडा टीआई ने इसकी जानकारी उसके परिजनों तक प्रेषित की। कुछ परिजन रायपुर के लिए रवाना हो गए हैं।

उसके बेहद नजदीकी दोस्त नागेश्वर कंवर को तो अभी विश्वास ही नहीं हो रहा कि उसका दोस्त अब इस दुनिया में नहीं रहा। वह अक्सर मूलचंद के हौसले की मिसाल दोस्तों के बीच दिया करता था।

Comments 0

Comment Now


Videos Gallery

Poll of the day

जातीय आरक्षण को समाप्त करके केवल 'असमर्थता' को आरक्षण का आधार बनाना चाहिए ?

83 %
14 %
3 %

Photo Gallery