नई दिल्ली. भारत ने पहली बार 10 ASEAN देशों के प्रमुखों को बतौर मेहमान गणतंत्र दिवस 2018 के मौके पर बुलाया है। इन देशों में कंबोडिया, इंडोनेशिया, मलेशिया, म्यांमार, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड, वियतनाम, ब्रूनेई और लाओस शामिल हैं। पहली बार यह भी हो रहा है कि भारत ने गणतंत्र दिवस के मेहमानों को बुलाने में व्यक्तियों की बजाय क्षेत्र को अहमियत दी है। मोदी सरकार की इस पॉलिसी के मायने जानने के लिए विदेश मामलों के जानकार रहीस सिंह से बात की।
1) इंडो-पैसिफिक पॉलिसी पर फोकस
भारत की पॉलिसी इंडो-पैसिफिक पर फोकस हो गई है। वह अमेरिका और चीन की तरह इस इलाके में अपना दबदबा रखना चाहता है। भारत यह भी बताना चाहता है कि इस इलाके में मौजूद आसियान देशों के बीच भारत की अमेरिका और चीन से ज्यादा अहमियत है।
2) एक्ट ईस्ट पॉलिसी को तरजीह
एक्ट ईस्ट पॉलिसी भारत ने शुरू की थी। इससे हम अपनी इकोनॉमी बढ़ाना चाहते थे। इस पॉलिसी में माना जाता है कि उन देशों में जाइए जो हमसे सांस्कृतिक तौर पर जुड़े हैं। इनमें ज्यादातर आसियान देश हैं।
3) हिंद महासागर में होगा पावर बैलेंस
स्ट्रैटेजिक महत्व के रूप में भी इन देशों की अहमियत है। चीन का स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स ग्वादर से शुरू होकर फिलीपींस तक जाता है। उसका न्यू मैरीटाइम सिल्क रूट भी इंडोनेशिया से शुरू होकर जिबूती (हॉर्न ऑफ अफ्रीका) तक जाता है। इसके मुकाबले अगर हम इस इलाके में मौजूद आसियान देशों से बेहतर रिश्ते बनाते हैं तो हिंद महासागर में पावर बैलेंस करने में कामयाब होंगे।
4) साउथ चाइना सी में भारत का दबदबा बनाने की कोशिश
- आसियान के कुछ देश चीन से डरे हुए हैं। वे चाहते हैं कि चीन को काउंटर करने के लिए वे भारत को आगे लेकर आएं। साउथ चाइना सी का विवाद भी इसकी बड़ी वजह है। वियतनाम, फिलीपींस, मलेशिया और ब्रूनेई इस विवाद से सीधे तौर पर जुड़े हैं। वे इलाके में चीन के मुकाबले भारत को तैयार करना चाहते हैं।
5) आसियान के साथ रिश्तों के 25 साल पूरे
- विदेश मंत्रालय के मुताबिक, भारत और आसियान देशों के रिश्तों को 25 साल पूरे होने जा रहे हैं। 5 साल स्ट्रैटजिक रिलेशनशिप के पूरे हो रहे हैं। इस मौके पर भारत में और आसियान देशों में मौजूद एंबेसीज में प्रोग्राम होंगे,
जिनकी थीम 'शेयर्ड वैल्यूज, शेयर्ड टारगेट (साझा मूल्य, साझा लक्ष्य)' होगी।
44 साल बाद रिपब्लिक-डे पर एक से ज्यादा मेहमान
- ऐसा 44 साल बाद होने जा रहा है कि जब भारत में रिपब्लिक-डे की परेड देखने के लिए एक से ज्यादा विदेशी मेहमानों को बुलाया गया है। इससे पहले 1968 में फिर 1974 में एक से ज्यादा विदेशी मेहमान बुलाए गए थे।
- 1968 में युगोस्लाविया के राष्ट्रपति जोसफ ब्रोज टीटो और सोवियत यूनियन के प्रधानमंत्री एलेक्सी कोशिगिन को इस मौके पर बुलाया गया था।
- 1974 में टीटो रिपब्लिक-डे पर श्रीलंका के प्रधानमंत्री सिरिमावो भंडारनायके के साथ दोबारा भारत के मेहमान बने।
मोदी ने शपथग्रहण में बुलाए थे SAARC देशों के प्रमुख
- बता दें कि इससे पहले नरेंद्र मोदी ने मई 2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद अपने शपथग्रहण समारोह में सार्क देशों के प्रमुखों को बुलाया था।
- इस समारोह में पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका, नेपाल, मॉरिशस और मालदीव के प्रमुखों को बुलाया गया था।
ASEAN क्या है?
- ASEAN का फुल फॉर्म (Association of Southeast Asian Nations) है।
- 10 देश- ब्रुनेई, कंबोडिया, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, म्यांमार, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड और वियतनाम इसके मेंबर हैं।
- इसकी एशियन रीजनल फोरम (एआरएफ) में अमेरिका, रूस, भारत, चीन, जापान और नॉर्थ कोरिया समेत 27 मेंबर हैं।
- यह ऑर्गनाइजेशन 1967 को थाईलैंड की राजधानी बैंकॉक में बनाया गया था।
- इसके फाउंडर मेंबर थाईलैंड, इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलिपींस और सिंगापुर थे।
- 1994 में आसियान ने एआरएफ बनाया, जिसका मकसद सिक्युरिटी को बढ़ावा देना था।
ये हैं रिपब्लिक-डे परेड में बतौर मेहमान शामिल होने वाले प्रमुख नेता
1) आंग सान सू ची: म्यांमार की प्रमुख। दिल्ली के लेडी श्रीराम कॉलेज से पढ़ीं। मोदी ने सितंबर 2017 में म्यांमार दौरे के वक्त वहां के रखाइन राज्य में खुशहाली के लिए खास कोशिशें करने का वादा किया था।
2) नुआन जुंग फुक: वियतनाम के प्रधानमंत्री। वियतनाम भारत का अहम डिफेंस पार्टनर, चीन के खिलाफ भारत का मददगार है। पीएम बनने के बाद फुक का पहला भारत दौरा है।
3) रोड्रिगोदुतेर्ते: फिलीपींस के राष्ट्रपति। भारत के साथ मजबूत रिश्तों के हिमायती। बतौर राष्ट्रपति पहली भारत यात्रा। आसियान समिट में मोदी से मिले थे।
4) नजीब रजाक: मलेशिया के प्रधानमंत्री। 2017 में भारत आए थे। दोनों देशों के बीच काफी अच्छे कारोबारी रिश्ते हैं। अप्रैल में ही 36 अरब डॉलर (229 हजार करोड़ रुपए) के करार हुए थे।
5) ली सीन लुंग: सिंगापुर के प्रधानमंत्री। मोदी से काफी अच्छे रिश्ते। साउथ चाइना सी मसले में भारत को आगे बढ़ाता रहा है। मोदी की एक्ट ईस्ट एशिया पॉलिसी के सपोर्टर।
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