पटना.पत्रकारिता के इतिहास में पहली बार दैनिक भास्कर टीम ने बिहार में गंगा के बीच में जाकर गंगा की स्थिति जानी। स्थिति चौंकाने वाली निकली। कदम-कदम पर गंगा बिलखती हुई नजर आई। कहीं आस्था का कचरा तो कहीं अवैध खनन, फरक्का बराज ने तो जैसे सांसें ही रोक दीं। बालू-माफिया गंगा के हर घाट पर रोज जख्मों को कुरेदते नजर आते हैं।
- चौसा से नदी मार्ग से देखें तो 554 किलोमीटर (झारखंड और बंगाल सीमा समेत) की गंगा का अब तक हवाई सर्वे ही हुआ है। कहावत है- नदी की गहराई देखनी है तो उसमें उतरकर देखिए। भास्कर ने ऐसा ही किया। भीषण ठंड-कोहरे के बीच पहली बार 17 दिन तक हमारी टीम नाव में गंगा के बीच में रही। इससे गंगा की स्थिति बिलकुल साफ होकर सामने आई। अब गंगा में सीवरेज के बाद सबसे अधिक गंदगी आस्था के कचरे की ही है। कहीं श्मशान घाट, कहीं मृत पशु और कहीं फूल-फल। सूखती गंगा में कहीं कहीं प्लास्टर आफ पेरिस की बड़ी प्रतिमाएं भी बोट से टकराती हैं। लेकिन, फिर गंडक, कोसी जैसी सहायक नदियां मिलकर नई धारा, नया जीवन दे देती हैं। पढ़िए सीनियर जर्नलिस्ट शशि भूषण और फोटो जर्नलिस्ट संदीप नाग की रिपोर्ट।
शुरुआत:बिहार में गंगा
- चौसा से सोन-गंगा संगम के पश्चिमी छोर तक गंगा दियारा तो रचती है, लेकिन टापू नहीं। डोरीगंज तक रेंगती पहुंचने वाली गंगा को पहली बार धारा सरयू देती है। इस प्रवाह में नदी खूब करवट बदलती है। कटाव करती है। जमीन कभी यूपी तो कभी बिहार में उगती है। इसी जमीन को लेकर दोनों राज्यों में विवाद आजादी के बाद से आज तक कायम है।
संगम:लेकिन बंटती है धारा
- डोरीगंज के तिवारी घाट से गंगा की धाराओं का विभाजन शुरू होता है। नदी के बीच टापू यहीं से उगने शुरू होते हैं। पटना-छपरा के बीच सबलपुर, वैशाली के राघोपुर, मुंगेर के हेमजापुर-जाफरनगर-जमीन डिग्री-तौफीर आदि टापूनुमा दियारे रचने का सिलसिला झारखंड के साहेबगंज और कटिहार के कारगिल दियारे तक कायम रहता है।
अंत में: मरगंगा-गंगहारा
- चौसा से साहेबगंज के बीच जगह-जगह मरती भी है और हारती भी। लोक प्रचलित शब्द मरगंगा और गंगहारा इसी का बोध कराते हैं। मरगंगा, यानी गंगा की वह धारा जो मर गई। और गंगहारा यानी गंगा की वह धारा जो गंगा की ही दूसरी धारा के आगे कमजोर पड़ गई। बिहार में ही एक नदी कई-कई धाराओं में विभाजित होकर बहती है।
जैसे-जैसे आगे बढ़ते गए,बदलता गया गंगा का स्वरूप
0-100 km:गंगा की एक धारा, लेकिन डोरीगंज के तिवारी घाट तक पहुंचते-पहुंचते 1.5 km का विस्तार 4 km का।
101-183 km: गंगा की धारा का विभाजन शुरू होता है। इनलैंड-आइलैंड बनने शुरू होते हैं।
184-425 km: गंगा, मरगंगा व गंगहारा बनती हुई साहेबगंज तक पहुंचती है। इनलैंड-आइलैंड रचती है। गाद भरती है। दोनों छोर या कहें चारों छोर पर
कटाव।
426-554 km: फरक्का में गंगा की कमर में बंधी रस्सी (बराज) की वजह से गंगा छटपटाती है। गाद भरने का असर किनारों पर घाव की तरह दिखता है। किनारे भंसते (कटते) हैं।
कोसी को कोसिए मत...बिहार की ऐसी नदियों से ही गंगा में धार
- गंगा जहां बिहार में प्रवेश करती है वह बक्सर जिले का चौसा है, उस पार यूपी का गाजीपुर जिला। यहीं कैमूर पर्वतमाला के सारोदाग से निकलने वाली कर्मनाशा गंगा में समाती है। कर्मनाशा रोहतास व कैमूर की दुर्गावती, धर्मावती व कुदरा जैसी बरसाती नदियों का पानी गंगा में उड़ेलती है। यहीं से दैनिक भास्कर टीम की मोटरबोट गंगा में उतरी।... नदी में प्रवाह नहीं के बराबर। मुहाने पर गाद। गंगा यहां बमुश्किल 500 मीटर में है।
इसी घाट पर स्नान करते थे राम-लक्ष्मण
- कर्मनाशा-गंगा संगम बक्सर से करीब 14 किमी पश्चिम है। बक्सर के रामरेखा घाट को शाहाबाद का लोक सर्वाधिक पवित्र स्थान मानता है। यहां लोक मान्यता है कि राम-लक्ष्मण इसी घाट पर स्नान करते थे। रामरेखा घाट के सटे पूरब ताड़का नाला गंगा में गंदा पानी भरता है। आगे वीर कुंवर सिंह सेतु। पुल बक्सर को बलिया से जोड़ता है। पुल के आगे गंगा सुस्त चाल से आगे बढ़ती है। कहीं-कहीं धारा मुश्किल से 100-150 मीटर चौड़ी है।
- पुल के पश्चिम बयासी को बलिया से जोड़नेवाला पीपा पुल है। पीपा पुल और निर्माणाधीन पुल के बीच तापी और राजगुरू ड्रेजर ड्रेजिंग कर रहे हैं। काम समाप्त हो चुका है। नदी में 30-35 किमी की दूरी तय करने के बाद सती घाट है। सरयू का पानी गंगा में प्रवाह रचता है। नदी की यह चाल मुश्किल से छह सात-किमी तक कायम रहती है। फिर मंथर पड़ जाती है। अब गंगा भोजपुर और छपरा के बीच बह रही है। कई धाराओं में बंट जाती है।
दियारे में दिखे बंदूकधारी
- दियारे में बंदूकधारी लोगों का समूह दिखा। यह आरा का इलाका है। रामपुर-बिंदगांवा मौजा के पास बलवन टोला में सोन-गंगा का संगम है। संगम के नोज पर थोड़ी सी जमीन पटना जिले की है लेकिन खेती दूसरे जिले के लोग करते हैं। सोन-गंगा का पुराना संगम दीघा में था। सोन में उतना ही पानी है जितना मुहाने को जिंदा रखने के लिए जरूरी होता है। मनेर के हरदी छपरा से पूर्व बढ़ने पर ईंट भट्ठे की चिमनियां कतार से दिखती हैं। यह शाहपुर का इलाका है। यहां से डाउन स्ट्रीम में नदी दानापुर और दीघा के जयप्रकाश सेतु के पास से उत्तर की ओर धुमाव लेती हुई पटना शहर से काफी दूर जा चुकी है। उतनी दूर कि नदी की पेटी से शहर नहीं दिखता।
- बाढ़ के आगे बढ़ते ही गंगा उत्तर की ओर मुड़ती है। मुख्य धारा से छिटकी एक पतली धार यहां मलई दीयर का निर्माण करती है। दरियापुर से आगे गंगा से एक छोटी धार फूटती है, जिसे मर-गंगा (मरंगा) कहते हैं। हरोहर का पानी मर-गंगा की धार में पानी भरता है। सूर्यगढ़ा में नदी फिर दो भागों में बंटती है और एक लंबे टापू का निर्माण करती है जो मुंगेर तक फैला है। मुंगेर के आगे गोगरी होते हुए बहती है जहां इसे बरहखाल के नाम से जाना जाता है। यहां से मधुरापुर होते हुए, बिहपुर तक पहुंचती है। बिहपुर से यह दक्षिण की ओर साहेबगंज तक पहुंचती है, जहां लोग गंगा की एक धार को कलबलिया धार कहते हैं, जिसमें बरसात के मौसम में ही पानी आता है। गंगा की एक धारा का नाम गंगा चरण भी है।
- अजगैबीनाथ मंदिर के उत्तर गंगा की एक धार फूटती है जिसे लोग यमुनिया या जओनिया कहते हैं। यहां से पथरघाट तक नदी पथरीले इलाकों से होकर गुजरती है। इसके उत्तर कलबलिया के मुहाने पर सहली है। कुरसेला में कोसी की विशाल धारा मिलती है। यहां एक धार को गंगा प्रसाद भी कहते हैं। कुरसेला के कोसी-गंगा संगम के बाद नदी कटिहार, पश्चिम बंगाल के मालदा, झारखंड के साहेबगंज का सिमाना रचती हुई फरक्का पहुंचती है। गंगा में बूढ़ी गंडक, कोसी पानी भरती हैं। बाढ़ के लिए बदनाम इन नदियों के सहारे ही गंगा में धार है। इन्हें कोसिए मत!
- पटना के गांधीघाट और गायघाट के बीच व गांधीसेतु के पश्चिम संगम की अनोखी तस्वीर। भारत के नक्शे सी उभरती आकृति। हरे रंग के पानी वाली गंगा और मटमैली गंडक के संगम के बीच में टापू-सा दिखाई देने वाला हिस्सा सारण के सबलपुर दियारे का है।
Comment Now