लाभ का पद के मामले में दिल्ली की सत्ताधारी आम आदमी पार्टी (आप) पार्टी के 20 विधायकों के भाग्य का फैसला शुक्रवार को आ सकता है. चुनाव आयोग ने इस मामले में बैठक की. चुनाव आयोग अपना फैसला करने के बाद राष्ट्रपति के पास इसकी मंजूरी के लिए भेजेगा.
इन विधायकों को संसदीय सचिव बनाए जाने के बाद से ही इनकी सदस्यता पर खतरा मंडरा रहा है. मुख्य चुनाव आयुक्त एके ज्योति अपने रिटायरमेंट से पहले सारे पेंडिंग केस को खत्म करना चाह रहे हैं, इसलिए आयोग फटाफट पुराने मामलों का निपटारा कर रहा है. वह 22 को रिटायर हो जाएंगे.
हालांकि सत्ताधारी पार्टी का कहना है कि चुनाव आयोग इसका फैसला नहीं कर सकता, इसका फैसला अदालत में किया जाना चाहिए.
आप पार्टी की दिल्ली सरकार ने मार्च 2015 में 21 विधायकों को संसदीय सचिव के पद पर नियुक्त किया जिसको लेकर प्रशांत पटेल नाम के वकील ने लाभ का पद बताकर राष्ट्रपति के पास शिकायत करते हुए इन विधायकों की सदस्यता खत्म करने की मांग की थी. हालांकि विधायक जनरैल सिंह के पिछले साल विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा देने के बाद इस मामले में फंसे विधायकों की संख्या 20 हो गई है.
दूसरी ओर, केंद्र सरकार ने विधायकों को संसदीय सचिव बनाए जाने के फैसले का विरोध करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट में आपत्ति जताई और कहा था कि दिल्ली में सिर्फ एक संसदीय सचिव हो सकता है, जो मुख्यमंत्री के पास होगा. इन विधायकों को यह पद देने का कोई संवैधानिक प्रावधान नहीं है.
संविधान के अनुच्छेद 102(1)(A) और 191(1)(A) के अनुसार संसद या फिर विधानसभा का कोई सदस्य अगर लाभ के किसी पद पर होता है तो उसकी सदस्यता जा सकती है. यह लाभ का पद केंद्र और राज्य किसी भी सरकार का हो सकता है.
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