Saturday, 24th May 2025

20 लाख की रद्दी ले भागा कबाड़ी, चैक हुआ बाउंस, फर्जी निकला पता

Fri, Jan 19, 2018 8:39 PM

राजीव सोनी, भोपाल। मध्यप्रदेश के जनगणना मुख्यालय से एक कबाड़ी 20 लाख रुपए से अधिक की रद्दी लेकर फरार हो गया। विभागीय अफसरों ने टेंडर शर्तों की अनदेखी कर डिमांड ड्राफ्ट के बजाय कबाड़ी को चैक लेकर यह रद्दी सौंप दी। चैक बाउंस हो गए और कबाड़ी का पता भी फर्जी निकला।

मामले की दो साल से विभागीय जांच चल रही है। इस मामले में तत्कालीन कार्यालय प्रमुख केआर नायक को तबादले पर अंडमान भेजा गया है। केन्द्रीय गृह मंत्रालय के अधीन आने वाले जनगणना विभाग का यह मामला वर्ष 2010 का है। पांच साल तक यह मामला दबा रहा, फिर जांच बैठाई गई।

विभागीय सूत्रों का कहना है कि तत्कालीन विभाग प्रमुख ने इंदौर के नरेंद्र कुमार इंजीनियर एवं ठेकेदार (कबाड़ी) को रद्दी की यह खेप देने का निर्णय लिया था, लेकिन टेंडर की शर्तों की अनदेखी कर उसे डिमांड ड्राफ्ट के स्थान पर चैक लेकर कार्यालय से रिकार्ड उठा लेने दिया। रद्दी कई दिन तक ट्रकों से ढोई गई।

विभाग ने करीब 20 लाख रुपए के चैक भुगतान के लिए जब बैंक में भेजे तो वे बाउंस हो गए। कबाड़ी का पता भी खोजबीन में फर्जी निकला।

मध्यप्रदेश के जनगणना मुख्यालय से एक कबाड़ी 20 लाख रुपए से अधिक की रद्दी लेकर फरार हो गया।

इस मामले में टेंडर कमेटी के प्रमुख रहे एवं तत्कालीन डिप्टी डायरेक्टर केआर नायक को विभाग ने तबादले पर अंडमान भेजकर 2015 में विभागीय जांच बैठा दी। फौरी तौर पर दो लिपिकों को निलंबित भी किया गया, जो अब बहाल हो चुके हैं, लेकिन दो साल बाद भी विभागीय जांच का नतीजा सामने नहीं आ पाया और न ही दोषी अधिकारी को दंडित किया गया। मामला पुलिस जांच में भी नहीं सौंपा गया।

छग के अधिकारी कर रहे जांच

 

विभाग ने छत्तीसगढ़ में पदस्थ अपने एक ज्वाइंट डायरेक्टर को मामले की जांच सौंपी है। वर्ष 2001 की जनणना संबंधी रिकार्ड की बिक्री में यह फर्जीवाड़ा हुआ। विभाग की निर्धारित प्रक्रिया है कि पुरानी जनगणना संबंधी विस्तृत रिकार्ड हटा दिया जाता है। उसके बाद 2011 में नई जनगणना हो चुकी। हर दस साल में होने वाली जनगणना का यह रिकार्ड अनुपयोगी हो जाता है।

मामले पर मौन हैं अधिकारी

 

जनगणना विभाग में रद्दी घोटाला होने के करीब साढ़े चार साल बाद नए प्रमुख के रूप में ज्वाइंट डायरेक्टर पीके चौधरी ने पद संभाला, तब इस फर्जीवाड़े का खुलासा हुआ। उसके बाद ही मामला भारत के नियंत्रक महालेखा परीक्षक और जनगणना आयुक्त की जानकारी में लाया गया। घोटाले के सात साल बाद भी विभागीय अफसर मामले पर चुप्पी लगाए हैं।

गोपनीय मामला, बात नहीं करेंगे 

 

रद्दी घोटाले की जांच चल रही है। यह बेहद गोपनीय और विभाग का आंतरिक मामला है। इस मसले पर मैं कुछ भी बात नहीं कर सकता।

 

- एके सक्सेना, उप महारजिस्ट्रार मप्र

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