नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट जज विवाद के 6 दिन बाद भी सुलहें की कोशिशें जारी हैं। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया दीपक मिश्रा और उन पर आरोप लगाने वाले जस्टिस जे चेलमेश्वर, जस्टिस रंजन गोगोई , जस्टिस एम बी लोकुर और जस्टिस कुरियन जोसफ के बीच गुरुवार को दूसरी मीटिंग हुई। यह मुलाकात करीब आधा घंटा चली। न्यूज एजेंसी के सूत्रों के मुताबिक इसमें केसेस अलॉटमेंट पर चर्चा की गई। इससे पहले पांचों जज 16 जनवरी को बैठकर बातचीत कर चुके हैं।
मीटिंग में किस मुद्दे पर चर्चा हुई?
- न्यूज एजेंसी के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट के टॉप पांचों जजों ने इस मीटिंग में केसेस के अलॉटमेंट प्रोसेस पर बनाए जा रहे मैकेनिज्म पर चर्चा की।
पहली मीटिंग कब हुई थी?
- 16 जनवरी को। यह मीटिंग करीब 15 मिनट चली थी।
- इस मुलाकात के पहले अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल और सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन ने कहा था कि मामले को जल्द सुलझा लिया जाएगा। इस मामले में बार एसोसिएशन ऑफ इंडिया ने भी पहल की थी। इनकी एक कमेटी सुप्रीम कोर्ट के सभी जजों से मिली भी थी।
अटॉर्नी जनरल ने कहा था- प्याले में आया तूफान है ये
- सोमवार को अटॉर्नी जनरल वेणुगोपाल बोले थे कि मामले को सुलझा लिया गया है। ये महज प्याले में आए तूफान की की तरह है।
क्या है ये मामला?
- 12 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट के 4 जजों ने पहली बार अभूतपूर्व कदम उठाया था। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के बाद दूसरे नंबर के सीनियर जज जस्टिस जे चेलमेश्वर, रंजन गोगोई, मदन बी लोकुर और कुरियन जोसेफ ने मीडिया में 20 मिनट बात रखी थी। दो जज बोले थे, दो चुप ही रहे थे।
- जस्टिस चेलमेश्वर ने चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के तौर-तरीकों पर सवाल उठाए थे। कहा था- "लोकतंत्र दांव पर है। ठीक नहीं किया तो सब खत्म हो जाएगा।" चीफ जस्टिस को दो महीने पहले लिखा 7 पेज का पत्र भी जारी किया। इसमें कहा गया कि चीफ जस्टिस पसंद की बेंचों में केस भेजते हैं। चीफ जस्टिस पर महाभियोग के सवाल पर बोले कि यह देश तय करे। उन्होंने जज लोया की मौत के केस की सुनवाई पर भी सवाल उठाए।
जजों ने चीफ जस्टिस पर क्या आरोप लगाए थे?
1.चीफ जस्टिस ने अहम मुकदमे पसंद की बेंचों को सौंप दिए। इसका कोई तर्क नहीं था। यह सब खत्म होना चाहिए। कोर्ट में केस अलॉटमेंट की मनमानी प्रॉसेस है।
2. जस्टिस कर्णन पर दिए फैसले में हममें से दो जजों ने अप्वाइंटमेंट प्रॉसेस दोबारा देखने की जरूरत बताई थी। महाभियोग के अलावा अन्य रास्ते भी खोलने की मांग की थी।
3. कोर्ट ने कहा था कि एमओपी में देरी न हो। केस संविधान पीठ में है, तो दूसरी बेंच कैसे सुन सकती है? कॉलेजियम ने एमओपी मार्च 2017 में भेजा पर सरकार का जवाब नहीं आया। मान लें कि वही एमओपी सरकार को मंजूर है।
Comment Now