भोपाल। प्रदेश में सरकारी सिस्टम से फीस बंटवाई और सरकार को सौ करोड़ रुपए की बचत हो गई। पढ़ने-सुनने में थोड़ा अजीब लगता है, लेकिन यह सच है कि सरकारी सिस्टम से फीस बंटवाने पर उसे सौ करोड़ बच गए। पिछड़ा वर्ग कल्याण की पोस्ट मैट्रिक छात्रवृत्ति में ऐसा ही कुछ हुआ है। चालू वित्तीय वर्ष में पिछले साल की तुलना में करीब सौ करोड़ रुपए छात्रवृत्ति कम लगेगी। इसकी वजह छात्रवृत्ति या छात्रों की संख्या में कटौती नहीं, बल्कि तय नियम का पालन कराना है।
सरकार ने बस किया यह कि फीस नियामक आयोग ने जो फीस तय की थी, जिलों में उसकी केपिंग (तय फीस के हिसाब से छात्रवृत्ति तय) करा दी। इससे दस हजार रुपए की जगह जिन कॉलेजों को बीस से लेकर पचास हजार रुपए प्रति छात्र छात्रवृत्ति दी जा रही थी, वो पूरी तरह से बंद हो गई। इतना ही नहीं, आधा दर्जन से ज्यादा जिला अधिकारी गड़बड़ी करने के कारण मुश्किल में फंस गए हैं। अब नौबत आपराधिक प्रकरण बनने तक आ गई है।
पिछड़ा वर्ग के छात्र आर्थिक अभाव में उच्च शिक्षा से वंचित न रह जाएं, इसलिए सरकार ट्यूशन फीस छात्रवृत्ति के तौर पर देती है। पहले निजी कॉलेज वाले मनमर्जी से फीस वसूला करते थे, लेकिन फीस नियामक आयोग ने फीस तय कर दी। पिछड़ा वर्ग एवं अल्पसंख्यक कल्याण विभाग ने 2013 में छात्रवृत्ति के नियम बना दिए। इसके हिसाब से कलेक्टर की अध्यक्षता वाली कमेटी को जिम्मेदारी सौंपी गई कि वो तय फीस के आधार पर छात्रवृत्ति तय करके दावा प्रस्तुत करे। पिछले तीन-चार साल में छात्रवृत्ति में हुए घोटालों को लेकर विभाग सतर्क हुआ और प्रदेशभर में 2014-15, 2015-16 और 2016-17 में दी गई छात्रवृत्ति की मुख्यालय से अधिकारियों के दल भेजकर जांच कराई।
इसमें खुलासा हुआ कि ट्यूशन फीस तय होने के बावजूद जिलों में तय छात्रवृत्ति से 10 से लेकर 30 हजार रुपए तक प्रति छात्र अतिरिक्त दे दिए। नौ जिलों की जांच में 14 हजार से ज्यादा छात्रों को 12 करोड़ रुपए ज्यादा देने के मामले सामने आ चुके हैं। जांच का सिलसिला अभी चल रहा है। उधर, विभाग को एक बड़ी कामयाबी यह मिली कि पिछले साल जहां 550 करोड़ रुपए की छात्रवृत्ति दी गई थी, वो चालू वित्तीय वर्ष में घटकर साढ़े चार सौ करोड़ रुपए के आसपास आ गई है।
गड़बड़ी नहीं खुली लूट है, जो मान्य नहीं: थेटे
विभाग के सचिव रमेश थेटे ने बताया कि जब हमे यह पता लगा कि जिलों में नियम के अनुसार छात्रवृत्ति नहीं बंट रही है तो हमने जांच कराने का फैसला किया। लेखों की जांच हुई तो गड़बड़ियां खुलने लगीं। दोषी अधिकारियों को कारण बताओ नोटिस देकर जवाब मांगे जा रहे हैं। संतुष्टि लायक जवाब नहीं होने पर आपराधिक प्रकरण भी दर्ज कराए जाएंगे, क्योंकि ये खुली लूट है, जो मान्य नहीं है। सख्ती के चलते उम्मीद है कि छात्रवृत्ति वितरण में इस साल सरकार को करीब सौ करोड़ रुपए की बचत होगी। यह तब है जब छात्रों की संख्या बढ़कर साढ़े पांच लाख के आसपास हो गई है।
जिलों ने खुद घटा ली मांग
सूत्रों का कहना है कि जब जांच का सिलसिला शुरू हुआ तो जिलों से छात्रवृत्ति की मांग घटने लगी। कुछ जिलों ने तो बाकायदा लिखकर दे दिया कि हमारी मांग को तीन से लेकर पांच करोड़ रुपए तक घटा दिया जाए। इसके मायने यह हुए कि यदि सख्ती नहीं बरती जाती तो अधिक छात्रवृत्ति देने के नाम पर खजाने को लुटाने का जो खेल चल रहा था, वो चलता रहता। सूत्रों का कहना है कि छात्रवृत्ति वितरण में हुई गड़बड़ी के लिए कलेक्टरों की जिम्मेदारी भी बनेगी, क्योंकि वे जिला स्तरीय समिति के अध्यक्ष हैं।
यहां उजागर हो चुकी है गड़बड़ी
जिले--राशि
रीवा--3.21 करोड़
छिंदवाड़ा--2.76 करोड़
सतना--2.18 करोड़
कटनी--1.56 करोड़
बालाघाट--86 लाख
टीकमगढ़--43 लाख
गुना--42 लाख
मुरैना--35 लाख
बैतूल--26 लाख
(राशि रुपए में)
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