Saturday, 24th May 2025

कोयले की खपत में 25 फीसदी की कमी, फिर भी बिजली महंगी

Thu, Jan 4, 2018 7:26 PM

भोपाल। प्रदेश के बिजली संयंत्रों में कोयले की खपत में लगभग 25 फीसदी की कमी आई है। कोयले के दाम में भी कोई वृद्धि नहीं हुई है। फिर भी बिजली न सिर्फ महंगी मिल रही है, बल्कि कंपनियों ने दाम और बढ़ाए जाने के लिए नियामक आयोग में अपील की है।

लागत घटने के बाद भी राज्य सरकार अपने संयंत्रों को पूरी क्षमता के साथ नहीं चला रही है। इसकी वजह है पॉवर परचेस एग्रीमेंट और फिक्स चार्ज। इन दिनों बिजली कुल मांग का लगभग 25 फीसदी आपूर्ति ही सरकारी संयंत्रों से हो रही है। 11दिन से बिरसिंहपुर संयंत्र की 500 मेगावाट की इकाई बंद है। एक अन्य इकाई भी बंद हो गई।

सिंगाजी की सुपर क्रिटीकल यूनिट में भी क्षमता से आधा उत्पादन हो रहा है। यही वजह है कि इंटर स्टेट सेक्टर सहित निजी कंपनियों से सरकार छह हजार मेगावाट बिजली खरीद कर सप्लाई कर रही है।

बिजली की लागत घटी फिर भी दाम ज्यादा 

 

- प्रदेश में सबसे ज्यादा बिजली उत्पादन वाले बिरसिंहपुर संयंत्र में पहले एक यूनिट बिजली उत्पादन पर 800 ग्राम तक कोयला लगता था, जो अब घटकर 620 से 650 ग्राम औसतन लग रहा है।

- 210 मेगावाट वाले चचाई संयंत्र में 480 ग्राम कोयले में एक यूनिट बिजली बन रही है।

- सारणी संयंत्र में 900 से एक हजार ग्राम कोयले में एक यूनिट बिजली बनती थी, अब 750 ग्राम खपत हो रही है।

- सिंगाजी की सुपर क्रिटीकल यूनिट में 650 ग्राम कोयला एक यूनिट बिजली के लिए लगता है।

औसतन 25 फीसदी कोयले की खपत घटी 

 

कुल मिलाकर देखा जाए तो सरकारी संयंत्रों में कोयले की खपत में 25 फीसदी की कमी आई है। यानी कोयले की खपत घटने बावजूद बिजली कंपनियां लगातार दाम बढ़ा रही हैं। अब नियामक आयोग में फिर दाम बढ़ाने के लिए याचिका लगाई है।

सरकारी पॉवर हाउस ठप, खपाई जा रही निजी सेक्टर की बिजली

 

प्रदेश में जितनी बिजली उत्पादन क्षमता है। उसका मात्र 42 फीसदी वार्षिक उत्पादन हो रहा है। सवाल ये है कि जब हमारे संयंत्रों में लागत घट रही है तो उन्हें पूरी क्षमता के साथ क्यों नहीं चलाया जा रहा है। सात हजार करोड़ की लागत से सिंगाजी संयंत्र खंडवा में लगाया गया। उसका औसत वार्षिक उत्पादन साढ़े 27 फीसदी है। पूरे प्रदेश में यही औसत साढ़े 44 फीसदी है। अधिकांश संयंत्रों को सरकार बंद रखती है। इसका जवाब किसी के पास नहीं है कि 4080 क्षमता के बाद भी 2243 मेगावाट उत्पादन ही क्यों हो रहा है।

कहां कितना उत्पादन 

 

संयंत्र--क्षमता--उत्पादन

सिंगाजी--1200--663

सारणी--1330--850

बीएसआर--1340--540

चचाई--210--210

कुल--4080--2243

हाईडल से उत्पादन : 268 मेगावाट

कुल मांग : 8932 मेगावाट

सीधी बात: उपादन लागत भी घटी 

 

- एपी भैरवे, प्रबंध संचालक, मप्र पॉवर जनरेटिंग कंपनी 

 

सरकारी पॉवर हाउस अपनी पूरी क्षमता से क्यों नहीं चलाए जाते हैं?

- सारणी संयंत्र की कुछ यूनिट 40 साल पुरानी है। कुछ अन्य संयंत्रों में भी यही हाल है। इसलिए उनकी स्थिति के अनुरूप बिजली उत्पादन होता है। जहां-जहां नई यूनिट लगी हैं वे पूरी क्षमता के साथ चल रही हैं।

कोयले की खपत में कमी आई है। फिर भी बिजली के दाम क्यों बढ़ाए जा रहे हैं?

- ये बात सही है कोयले की गुण्ावत्ता में सुधार आने से खपत में कमी आई है। जीएसटी के कारण भी कुछ चार्जेस बढ़े हैं, लेकिन लागत घटने से एनर्जी चार्जेस कम हुए हैं। एनर्जी चार्जेस यानी एक यूनिट बिजली की उत्पादन लागत पहले तीन रुपए होता था, वह घटकर 2 रुपए 30 पैसे पर आ गया है।

बिरसिंहपुर संयंत्र की दो यूनिट खराब हैं।

- हां, 500 मेगावाट की यूनिट को ठीक होने में टाइम लगेगा। 200 मेगावाट वाली यूनिट जल्द शुरू हो जाएगी।

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